जम्मू-कश्मीर विधानसभा सचिवालय ने पुलवामा के विधायक वहीद-उर-रहमान पारा को डोडा विधायक मेहराज दीन मलिक की जन सुरक्षा अधिनियम (PSA) के तहत हिरासत को लेकर सोशल मीडिया पर कथित रूप से "भ्रामक" और "तथ्यात्मक रूप से गलत" टिप्पणी करने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया है.

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10 सितंबर 2025 की तारीख वाले LA-3657/Legn/2025 के तहत जारी नोटिस में कहा गया है कि पारा की टिप्पणियों से अध्यक्ष के पद की निष्पक्षता पर आक्षेप लगाने और एक संस्था के रूप में विधानसभा की गरिमा को ठेस पहुंचाने के समान है.

पत्र के बाद हुआ घटनाक्रम

यह घटनाक्रम डोडा के जिला मजिस्ट्रेट हरविंदर सिंह, IAS, से 8 सितंबर को भेजे गए एक पत्र के बाद हुआ है, जिसमें विधानसभा सचिवालय को मलिक की PSA के तहत हिरासत के बारे में सूचित किया गया था.

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प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमों के नियम 260 के अनुसार, सचिवालय ने सदन के सदस्यों को मलिक की हिरासत के बारे में सूचित करते हुए एक बुलेटिन प्रकाशित किया था. हालांकि, बाद में पारा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (जिसे पहले ट्विटर कहा जाता था) पर पोस्ट किया कि शर्मनाक आत्मसमर्पण.

'मुख्यमंत्री को कार्रवाई करनी चाहिए'

विधानसभा सचिवालय से एक निर्वाचित विधायक के विरुद्ध जन सुरक्षा अधिनियम (PSA) का समर्थन करना लोकतंत्र पर सीधा हमला है. जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री @OmarAbdullah को कार्रवाई करनी चाहिए. विधायक जैसा संस्थान, जो जनता की अंतिम संस्था है, को चुप न होने दें. आज मेहराज हैं, कल आप भी हो सकते हैं.

विधानसभा सचिवालय के अनुसार, बयान में गलती से यह कहा गया कि विधानसभा सचिवालय ने मलिक की जन सुरक्षा अधिनियम (PSA) के तहत नजरबंदी का "समर्थन" किया था, जबकि बुलेटिन केवल प्रक्रियात्मक नियमों के अनुपालन में जारी किया गया था.

'सदस्य की गिरफ्तारी में कोई भूमिका नहीं'

सचिवालय ने बाद में एक स्पष्टीकरण जारी किया, जिसमें कहा गया कि माननीय सदस्य की गिरफ्तारी या नजरबंदी में उसकी कोई भूमिका नहीं है. नोटिस में इस बात पर जोर दिया गया है कि निष्पक्षता अध्यक्ष के कार्यालय का एक मूलभूत गुण है.

साथ ही, पक्षपात या अनुचित आचरण का संकेत देने वाले किसी भी सार्वजनिक बयान को विशेषाधिकार हनन या सदन की अवमानना माना जा सकता है. नोटिस में लिखा है कि माननीय अध्यक्ष ने इस मामले को गंभीरता से लिया है.

पारा को 7 दिन में स्थिति स्पष्ट करने का निर्देश

नोटिस में लिखा है कि सदस्यों को दिए गए विशेषाधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग संस्था की पवित्रता को कम करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए. पारा को सात दिनों के भीतर व्यक्तिगत रूप से या लिखित रूप से अपनी स्थिति स्पष्ट करने का निर्देश दिया गया है, अन्यथा उनके विरुद्ध विशेषाधिकार हनन और अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाएग