जम्मू और कश्मीर में आरक्षण को तर्कसंगत बनाने पर लंबे समय से प्रतीक्षित और बहस वाली कैबिनेट सब-कमेटी की रिपोर्ट मंजूरी के लिए कैबिनेट को सौंप दी गई है. अब यह रिपोर्ट सरकार की ओर से क्लियर की जाएगी और J&K में लेफ्टिनेंट गवर्नर के ऑफिस में अंतिम मंजूरी के लिए भेजी जाएगी. यह जानकारी गुरुवार (30 अक्टूबर) को जम्मू-कश्मीर सरकार ने विधानसभा में दी.

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रिपोर्ट में कहा गया, "आरक्षण पर कैबिनेट सब-कमेटी ने अपनी रिपोर्ट मंत्रियों की परिषद को सौंप दी है और सक्षम अथॉरिटी से जरूरी मंजूरी मिलने के बाद इसे तय समय में अंतिम रूप दिया जाएगा."

सज्जाद गनी लोन और शब्बीर कुल्ले में पूछे थे सवाल

पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद गनी लोन और निर्दलीय विधायक शब्बीर कुल्ले द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में, सामान्य प्रशासन विभाग के प्रभारी मंत्री ने विधानसभा को बताया कि कैबिनेट सब-कमेटी ने सभी संबंधित पक्षों के साथ विचार-विमर्श और सलाह-मशविरे के बाद अपनी रिपोर्ट मंत्रियों की परिषद को सौंप दी है.

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रिपोर्ट को तय समय में दिया जाएगा अंतिम रूप

मंत्री ने कहा, ''सक्षम अथॉरिटी से जरूरी मंजूरी मिलने के बाद रिपोर्ट को तय समय में अंतिम रूप दिया जाएगा. मौजूदा आरक्षण नीति मोटे तौर पर संवैधानिक प्रावधानों और न्यायिक सिद्धांतों के अनुरूप है, जिसमें इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ (1992) फैसले में बताए गए सिद्धांत भी शामिल हैं.''इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आरक्षण आमतौर पर उपलब्ध रिक्तियों के 50% से ज़्यादा नहीं होना चाहिए.

मंत्री के जवाब में क्या कहा गया?

मंत्री के जवाब में कहा गया, "हालांकि, यह भी साफ किया जाता है कि यह सीमा कोई पक्का नियम नहीं है और असाधारण परिस्थितियों में इसमें छूट दी जा सकती है, जहां किसी खास राज्य या क्षेत्र की असाधारण परिस्थितियां और खास तथ्य ऐसे विभाग को सही ठहराते हैं, जो बहुत ज़्यादा विरोध वाली नई आरक्षण नीति के संभावित जारी रहने का संकेत देता है.''

सज्जाद गनी लोन ने की सरकार की आलोचना

वहीं, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष और हंदवाड़ा के विधायक सज्जाद गनी लोन ने सरकार की आलोचना करते हुए इसे जम्मू और कश्मीर में भर्ती और आरक्षण पर 'बुनियादी जानकारी' साझा करने से बचने की जानबूझकर की गई कोशिश बताया. सरकार पर इस मुद्दे पर स्पष्टीकरण मांगने की हर कोशिश को रोकने का आरोप लगाते हुए, लोन ने प्रशासन से भर्ती और आरक्षण डेटा को सार्वजनिक डोमेन में रखने में हिचकिचाहट पर सवाल उठाया.

'सरकार भर्तियों पर जानकारी शेयर क्यों नहीं करती'

उन्होंने पूछा, "सरकार भर्तियों पर बुनियादी जानकारी शेयर करने को तैयार क्यों नहीं है? वह आरक्षण के मुद्दे को हल करने की हर कोशिश को क्यों रोक रही है?" पिछले विधानसभा सत्र में अपने हस्तक्षेपों का जिक्र करते हुए, पीसी अध्यक्ष ने कहा, ''उनका इरादा मानव संसाधन विकास और क्षेत्रीय समानता पर आरक्षण नीतियों के व्यापक प्रभावों की जांच करना था. मैं रिज़र्वेशन के नतीजों, क्षेत्रीय असमानताओं और ह्यूमन रिसोर्स डेवलपमेंट पर इसके लंबे समय तक पड़ने वाले नेगेटिव असर को साफ़ तौर पर समझने के लिए जानकारी इकट्ठा करना चाहता था.”

यह दोहराते हुए कि इस मुद्दे का ऑब्जेक्टिव तरीके से अध्ययन किया जा सकता है, लोन ने आगे कहा, “मुझे अब भी लगता है कि रिजर्वेशन के असर का मैथमेटिकली मूल्यांकन करना संभव है. लेकिन ऐसा लगता है कि इस सरकार में आसान जवाब ढूंढना, जानकारी इकट्ठा करना एक लग्जरी बन गया है.”

हालांकि, सरकार ने कहा कि वह जम्मू और कश्मीर एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस, जम्मू और कश्मीर पुलिस (गैज़ेटेड) सर्विस, और जम्मू और कश्मीर अकाउंट्स सर्विस में जूनियर स्केल पदों के लिए सिलेक्शन का क्षेत्र-वार या जिला-वार डिटेल्स नहीं रखती है.