हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा नगर निगम शिमला के मेयर और डिप्टी मेयर का कार्यकाल ढाई साल से बढ़ाकर 5 साल करने के फैसले ने 30 अक्टूबर को हुई मासिक बैठक में जमकर हंगामा खड़ा कर दिया. बैठक शुरू होते ही बीजेपी पार्षदों ने नारेबाजी कर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया, जबकि कांग्रेस के कई पार्षदों ने भी इस निर्णय पर असहमति जताई.
विपक्ष का आरोप था कि यह फैसला लोकतांत्रिक परंपराओं और महिला प्रतिनिधित्व के खिलाफ है. हंगामा इतना बढ़ गया कि मेयर को बैठक कुछ देर के लिए स्थगित करनी पड़ी और कुछ पार्षद बैठक छोड़कर बाहर चले गए.
कांग्रेस पार्षदों ने जताई असहमति
नाभा वार्ड की पार्षद सिमी नंदा ने कहा कि वह सरकार और पार्टी दोनों के साथ हैं, लेकिन पहले से तय ढाई-ढाई साल के रोस्टर सिस्टम को बनाए रखना चाहिए. उनके मुताबिक, “यह मुद्दा पार्टी लाइन का नहीं, बल्कि प्रतिनिधित्व का है. सभी को बराबर अवसर मिलना चाहिए.” वहीं, कांग्रेस पार्षद कांता सुयाल ने कहा कि इस बार नगर निगम में महिलाओं की संख्या अधिक है, इसलिए उन्हें भी नेतृत्व का मौका मिलना चाहिए था. उन्होंने बताया कि BJP पार्षदों ने विरोध में नारेबाजी की, जबकि कांग्रेस पार्षदों ने मौन प्रदर्शन कर अपनी असहमति जताई.
BJP पार्षदों ने कहा- तानाशाही फैसला
बीजेपी पार्षद बिट्टू पाना और अन्य पार्षदों ने इस निर्णय को ‘तानाशाही और असंवैधानिक’ करार दिया. उनका कहना था कि पहले की व्यवस्था के अनुसार ढाई साल बाद महिला प्रतिनिधि को मौका दिया जाता था, लेकिन अब यह अधिकार छीन लिया गया है. पार्षदों ने आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर कर रही है और संविधान की मूल भावना के खिलाफ काम कर रही है. उन्होंने चेतावनी दी कि जब तक इस फैसले पर पुनर्विचार नहीं किया जाता, विरोध जारी रहेगा.
बैठक स्थगित, राजनीतिक माहौल गर्म
बैठक के दौरान शोर-शराबे के बीच मेयर ने स्थिति को संभालने की कोशिश की, मगर माहौल इतना गरमाया कि बैठक को कुछ देर के लिए स्थगित करना पड़ा. इसके बाद मेयर और कुछ कांग्रेस पार्षद हॉल से बाहर चले गए. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह विवाद आने वाले नगर निगम चुनावों से पहले प्रदेश की राजनीति में नई सरगर्मी ला सकता है. फिलहाल, शिमला नगर निगम में मेयर और डिप्टी मेयर का कार्यकाल पाँच साल करने का फैसला विपक्ष और सत्तापक्ष दोनों के भीतर असंतोष का कारण बना हुआ है.