Himachal Pradesh News: देश आज राष्ट्रीय बालिका दिवस मना रहा है. यह दिन असमानता को दूर कर बेटियों को अधिकार दिलाने के लिए मनाया जाता है. साल 1966 में इस दिन देश की इकलौती प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी ने बतौर प्रधानमंत्री पहली बार अपना कार्यभार संभाला था. देश-प्रदेश में भले ही बड़े-बड़े बैनर लगाकर इस दिन को मनाया जाता है, लेकिन यह सिर्फ खानापूर्ति ही है, क्योंकि देश की बेटियों को आगे बढ़ने के लिए आज भी संघर्ष करना पड़ता है. ऐसा ही एक संघर्ष हिमाचल प्रदेश की बेटी भी कर रही है.


एवरेस्ट फतह करना चाहती हिमाचल की बेटी
हिमाचल प्रदेश के जिला सोलन के ममलीग की रहने वाली बलजीत कौर बिना ऑक्सीजन विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट फतह करना चाहती हैं. इसके लिए उन्हें 35 लाख रुपए की आर्थिक सहायता की जरूरत है. हैरानी की बात है कि हिमाचल प्रदेश की खेल नीति में माउंटेनियरिंग को बतौर खेल शामिल नहीं किया गया है. इस वजह से बलजीत कौर को कोई मदद नहीं मिल पा रही है. बलजीत कौर ने 19 साल की उम्र में माउंटेनियरिंग शुरू की थी.


30 दिन में 5 चोटियां फतह किया 
19 साल की छोटी-सी उम्र में बलजीत कौर ने मनाली के देओ टिब्बा को फतह कर अपने करियर की शुरुआत की थी. बलजीत कौर माउंट पमोरी को फतह करने वाली भारत की पहली महिला बनी थीं. इसके अलावा बलजीत कौर ने 30 दिन के अंतराल में लगातार आठ हजार मीटर की ऊंचाई वाली पांच चोटियों को फतह कर दिखाया था. इनमें अन्नपूर्णा, कंचनजंगा, एवरेस्ट, लोतसे और मकालु चोटी शामिल थी.


बिना ऑक्सीजन ऊंचाई पर खतरा
हिमाचल की बेटी बलजीत कौर माउंटेनियरिंग के क्षेत्र में प्रशिक्षित हैं. वह माउंट मनासर को बिना ऑक्सीजन फतह कर चुकी हैं. अब उनका सपना विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह करने का है. बिना ऑक्सीजन माउंट एवरेस्ट को फतह करना जिंदगी के लिए बहुत बड़ा खतरा है. 8 हजार फीट की ऊंचाई को डेथ जोन माना जाता है. इसमें फ्रॉस्ट बाइट और चील ब्रेन का भी खतरा रहता है. बिना ऑक्सीजन इतनी अधिक ऊंचाई पर जाना जिंदा रहने की गारंटी को भी खत्म कर देता है. बलजीत कौर का कहना है कि वह इसके लिए पूरी तरह तैयार हैं. वे या तो जीतेंगी या फिर कुछ सीखेंगी. इससे पहले बलजीत कौर ने जब माउंट एवरेस्ट फतह की थी, तब उन्होंने दोस्तों से उधार और सेकेंड हैंड उपकरणों का इस्तेमाल किया था.


एचआरटीसी बस ड्राइवर की बेटी 
बलजीत कौर जिला सोलन के ममलीग के एक सामान्य परिवार से संबंध रखती हैं. साल 2003 में उनके पिता बतौर एचआरटीसी ड्राइवर रिटायर हुए हैं. वह घर पर अब खेती-बाड़ी करते हैं. बलजीत कौर की मां गृहिणी हैं और उन्हें अपने माता-पिता का माउंटेनियरिंग में आगे बढ़ने के लिए पूरा सहयोग मिलता है.


मंत्री विक्रमादित्य सिंह से मुलाकात
सोमवार को माउंटेनियर बलजीत कौर ने हिमाचल प्रदेश के खेल मंत्री विक्रमादित्य सिंह से मुलाकात की है. विक्रमादित्य सिंह ने इस बारे में विचार करने की बात कही है. साथ ही माउंटेनियरिंग के लिए खेल नीति में प्रावधान करने और उन्हें आर्थिक सहायता के बारे में भी विचार करने के लिए कहा है.


सरकारी मदद की है दरकार
माउंटेनियर बलजीत कौर को अब इंतजार है सरकार से मिलने वाली उस मदद का, जिसकी वे हकदार हैं. बलजीत कौर और बिना ऑक्सीजन माउंट एवरेस्ट को फतह करने के उनके सपने के बीच सिर्फ सरकार की छोटी सी आर्थिक सहायता का फासला रह गया है. उम्मीद है कि सरकार जल्द इस बारे में विचार कर बलजीत कौर को आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाएगी, ताकि बलजीत कौर देश और प्रदेश का नाम विश्व भर में रोशन कर सकें. अगर सरकार इस ओर नकारात्मक रवैया अपनाए रही, तो कई ऐसी बलजीत कौर का सपना टूट जायेगा, जिससे हिमाचल आगे बढ़ सकता है.


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