Himachal Pradesh News Today: हिमाचल प्रदेश में एक राज्यसभा सीट पर हुए चुनाव में कांग्रेस के बहुमत में होने के बावजूद बीजेपी की जीत के बाद जो सियासी संकट देखने को मिला, उससे पूरा देश बखूबी वाकिफ है. कांग्रेस के जिन छह विधायकों ने अपनी ही सरकार से बगावत की, उनमें एक नाम सुजानपुर से पूर्व विधायक राजिंदर राणा का भी है. राणा साल 2017 में सबसे पहले सुर्खियों में आए थे, जब उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार प्रो. प्रेम कुमार धूमल को ही चुनाव हरा दिया. 

साल 2017 के बाद राणा एक बार फिर साल 2024 में राष्ट्रीय सुर्खियों का हिस्सा बने हैं. राणा ने अपनी सरकार से ही बगावत क्यों की? इसका खुलासा भी हो चुका है. राजिंदर राणा ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लिखकर बगावत का खुलासा किया. उन्होंने कहा कि उनकी प्रतिबद्धता, निष्ठा समर्पण, विश्वास और जिम्मेदारी जनता से है, न कि सत्ता के शिखर पर बैठे किसी बौने शहंशाह से. 

राणा ने अपने फेसबुक पोस्ट पर लिखा, "हिमाचल चुनाव के दौरान हमने एक कांग्रेस कार्यकर्ता के तौर पर आपसे जो वादा किया था, वो आपको याद होगा. आपने हमारे वादे पर यकीन किया. हमें अपना कीमती वोट देकर वादे को हकीकत में तबदील करने का अवसर दिया. आपने देवभूमि की सेवा का मौका दिया, लेकिन उन वादों की आज हकीकत क्या है? इसके बारे में मैं अभी लिखने बैठ जाऊं, तो फिर वादाखिलाफी की एक पूरी किताब लिखनी पड़ जाएगी."

'शिमला-दिल्ली की दौड़ लगाता रहा, नहीं हुई सुनवाई'राणा ने आगे लिखा, "कभी सोचा नहीं था कि जिनके हाथों में खुशी फूल का मंजर देकर आया था, उनके हाथों का खंजर मेरे इंतजार में रास्ता तक रहा होगा. आपसे किए वादों को पूरा करने के लिए मैं सुजानपुर से शिमला और शिमला से दिल्ली तक की दौड़ लगाता रहा. हाथ जोड़कर गुहार लगाता रहा है कि हिमाचल और हिमाचलियत को बदनाम मत करो. जो वादा किया है, उसे पूरा करो. 

उन्होंने तंजिया अंदाज में कहा कि "लोगों के भरोसे, देवभूमि की पवित्रता और पावनता को कलंकित मत करो, लेकिन न तो शिमला के शहंशाह के दरबार में मेरी सुनवाई हुई और न ही हस्तिनापुर के दरकते सिंहासन पर सत्तारूढ़ सत्तानीशों ने मेरी बात पर गौर फरमाया."

'सुक्खू की किचन कैबिनेट में जाने का मौका'राजिंदर राणा ने एक शेर के जरिये प्रदेश सरकार पर निशाना साधते हुए लिखा, "आरजू थी इंसाफ की, हिस्से बस जिल्लत आयी." उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, "आखिर में मेरे पास बस दो विकल्प बचे थे. पहला- मैं सीएम सुक्खू के किचन कैबिनेट में शामिल होकर सत्ता सुख का आनंद उठाता. दिल्ली के कांग्रेस दरबारियों में अपना नाम लिखाकर सुख-चैन की बंसी बजाता और दूसरा- वही विकल्प जिस पर मैं इस वक्त चल रहा हूं. हिमाचल और हिमाचलियत को बचाने के लिए 'प्राण जाए पर वचन न जाए' की अपनी सनातन संस्कृति को अक्षुण्ण रखने के लिए बगावत करना.

'सत्ता साजिश और षड्यंत्र के खिलाफ...'राजिंदर राणा लिखते हैं, "मैंने दूसरे विकल्प को चुना, क्योंकि इसी देवभूमि की पवित्र-पावन भूमि ने मुझे बचपन से सिखाया है कि अगर सच के लिए बगावत करना जरूरी है, तो फिर बगावत से कभी हिचकना मत. देवभूमि की वो सीख, देवभूमि के वो संस्कार और देवभूमि की उस सनातन संस्कृति को मैंने सिर माथे पर सजाया और बगावत का बिगुल फूंक दिया. मौजूदा सत्ता की साजिश और षड्यंत्र के खिलाफ मेरी बगावत आखिरी मुकाम पर है. 

उन्होंने कहा कि बहुत जल्द आपको इसके परिणाम भी दिख जाएंगे. विश्वास कीजिए वो परिणाम हर तरह से हिमाचल और हिमाचलियत के लिए सुखद और मील का पत्थर साबित होंगे. सत्य और न्याय की मेरी लड़ाई में आप शुरू से मेरा साथ देते रहे हैं और उम्मीद है कि सच और न्याय की इस लड़ाई में प्रदेश के स्वाभिमान की इस लड़ाई में मुझे आपका आशीर्वाद और सहयोग मिलता रहेगा.'

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