Himachal News: छह दशकों तक गवर्नर जनरल और फिर भारत के वायसराय शिमला में ग्रीष्मकालीन प्रवास के दौरान वायसराय भवन का उपयोग करते थे. लार्ड लिटन ने अपने शासन के दौरान आवास बनाने के लिए आब्जरवेटरी हिल को चुना. ब्रिटिश हुकूमत के दौरान शिमला में वायसराय के रहने के लिए एक शानदार इमारत बनाई गई. साल 1886 में स्थल पर निर्माण शुरू हुआ. लेडी डफरिन ने 23 जुलाई 1888 को भवन में प्रवेश किया.

चाबा से हुई थी बिजली की व्यवस्था इस इमारत के लिए चाबा से बिजली की व्यवस्था की गई थी. ब्रिटिश शासन काल के दौरान यह पहली ऐसी इमारत थी, जहां बिजली की व्यवस्था की गई. स्वतंत्रता से पहले यहां से अंग्रेज शासक गर्मियों में हुकूमत चलाते थे. आजादी के बाद इस इमारत को राष्ट्रपति निवास बनाया गया और बाद में यह ज्ञान का केंद्र बना. अब यहां से ज्ञान का प्रकाश फैलता है और इसका नाम भी भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान है. आज इसी संस्थान की लाइब्रेरी में दो लाख से अधिक किताबों का खजाना है.

एक क्लिक पर उपलब्ध है दो लाख किताबों की जानकारीबड़ी बात यह है कि इन सारी किताबों की जानकारी एक क्लिक पर उपलब्ध है. संस्थान की सारी किताबों की सूची ऑनलाइन है और अब अध्ययन के शौकीन यहां आकर शॉर्ट टर्म मेंबरशिप लेकर अपनी ज्ञानवर्धन कर सकते हैं. यह शॉर्ट टर्म मेंबरशिप हफ्ते के लिए भी उपलब्ध है. देश-विदेश के अध्ययन प्रेमी इस लाइब्रेरी को देखने के लिए आते हैं. कई शोधकर्ताओं ने यहां लाइब्रेरी के लॉन्ग टर्म कार्ड भी बनाए हैं. हर साल 100 से अधिक शोधकर्ता विभिन्न कारणों से मेंबरशिप लेते हैं.

लाइब्रेरी में तिब्बती ग्रंथ भी मौजूदरोचक बात है कि यहां सभी किताबों की जानकारी ऑनलाइन मौजूद है. किस विषय की किताब किस खाने में है, ये सारी जानकारी माउस के एक क्लिक भर की दूरी पर है. लाइब्रेरी में तिब्बती भाषा के ग्रंथों सहित संस्कृत के कई प्राचीन ग्रंथ हैं. इसके अलावा गुरू ग्रंथ साहिब की दुर्लभ कलेक्शन भी यहां है. पूरे भारत देश में संत बसंत सिंह की हस्तलिखित कलेक्शन की सिर्फ तीन ही प्रतियां हैं. उनमें से एक प्रति यहां मौजूद है. संस्थान की लाइब्रेरी में मानविकी, इतिहास, दर्शन, धर्म, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, इतिहास, साहित्य, धर्म, कला, संस्कृति व राजनीति शास्त्र की किताबों का शानदार कलेक्शन है. इसके अलावा संस्थान का खुद का प्रकाशन भी है.

आंग सान सू की भी यहां थीं फैलोसंस्थान में फैलो और नेशनल फैलो को जिस भी विषय में कोई भी रेफरेंस बुक चाहिए हो, वो सहज ही उपलब्ध है. संस्थान में बर्मा की पूर्व शासक आंग सान सू की भी फैलो रह चुकी हैं. सू की के पति भी यहां फैलो थे. देश के जाने-माने विद्वान यहां फैलो रहे हैं. उनमें स्वर्गीय भीष्म साहनी, स्व. कृष्णा सोबती, स्व. ओमप्रकाश वाल्मीकि, गिरिराज किशोर, दूधनाथ सिंह, राजेश जोशी जैसे नाम शामिल हैं.

लोगों के लिए भी है आकर्षण का केंद्रसाल 1947 में देश के आजादी मिलने के बाद वायसराय भवन और इसकी संपदा भारत के राष्ट्रपति के अधिकार क्षेत्र में आई. इसके बाद इस इमारत को राष्ट्रपति निवास नाम दिया गया. 6 अक्तूबर 1964 को रजिस्ट्रेशन और सोसायटी एक्ट-1860 के तहत भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान सोसायटी का पंजीकरण हुआ. 54 दिन बाद देश के राष्ट्रपति प्रो. राधाकृष्णन ने राष्ट्रपति निवास में इस संस्थान का विधिवत उद्घाटन किया. प्रो. निहार रंजन रे संस्थान के पहले निदेशक बने थे. यहां हर साल लाखों की संख्या में पर्यटक घूमने के लिए भी पहुंचते हैं.

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