हरियाणा में 19 साल पुराना 'सरप्राइज' देगी कांग्रेस? दिलचस्प है CM चुनने का किस्सा
Haryana Election Result 2024: हरियाणा विधानसभा चुनाव रिजल्ट से पहले कांग्रेस में CM पद पर माथापच्ची शुरू हो गई है. इस बीच सवाल हैं कि क्या जीत की स्थिति में पार्टी 19 साल पुराना इतिहास दोहराएगी.
Haryana Congress CM Race: हरियाणा चुनाव में जिस तरह के एग्जिट पोल सामने आए हैं, अगर वही असली नतीजे भी होते हैं तो ये तो तय है कि हरियाणा में मुख्यमंत्री कांग्रेस का होगा. लेकिन वो होगा कौन, क्या भूपेंद्र सिंह हुड्डा, जिनकी नाम की चर्चा सबसे ज्यादा है. या फिर कुमारी सैलजा, जिन्होंने अपनी दावेदारी छोड़ी नहीं है. या फिर रणदीप सुरजेवाला, जिन्हें सत्ता मिली तो वो इनकार नहीं करेंगे. या फिर दीपेंद्र हुड्डा, जो हैं तो सांसद, लेकिन बनाने पर मुख्यमंत्री भी बन जाएंगे या फिर कोई और जिसका नाम आप सोच भी नहीं पा रहे होंगे.
क्या कांग्रेस अपने इन्हीं चर्चित चेहरों में से किसी पर दांव लगाएगी या फिर दोहराएगी 19 साल पुराना इतिहास, जिसने तब के सारे राजनीतिक पंडितों को हैरान कर दिया था.
दरअसल हरियाणा चुनाव की घोषणा के बाद से ही कांग्रेस में सबसे ज्यादा चर्चा इस बात की हो रही थी कि अगर कांग्रेस ने जीत दर्ज की तो मुख्यमंत्री कौन होगा? और इसको लेकर हरियाणा कांग्रेस में अलग-अलग दावेदार अलग-अलग वक्त पर सामने आते रहे. सबसे पहला नाम तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा का ही है, जो पहले भी कांग्रेस के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. बाकी कुमारी सैलजा से लेकर रणदीप सुरजेवाला के नाम भी सामने आए. ये भी कहा गया है कि इस बार भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपनी दावेदारी छोड़ देंगे और बेटे दीपेंद्र हुड्डा को अपनी कुर्सी सौंप देंगे. लेकिन आखिरी वक्त तक तय कुछ भी नहीं हुआ. हां इतना तय जरूर हुआ कि कुमारी सैलजा हों या फिर दीपेंद्र हुड्डा या फिर रणदीप सुरजेवाला, जो सांसद हैं, वो चुनाव नहीं लड़ेंगे.
जब भजनलाल की जगह भूपेंद्र हुड्डा को मिली कुर्सी
तो इस लिहाज से स्वाभाविक दावेदारी तो भूपेंद्र हुड्डा की ही बनती है. लेकिन भूपेंद्र हुड्डा को वो इतिहास भी याद है जब स्वाभाविक दावेदारी भजनलाल की हुआ करती थी, लेकिन भजनलाल की जगह भूपेंद्र हुड्डा को वो कुर्सी दे दी गई थी और तब आलाकमान का मतलब सिर्फ और सिर्फ सोनिया गांधी हुआ करता था. दरअसल 2005 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बंपर जीत मिली थी. और तब कांग्रेस ने 90 में से 67 सीटों पर जीत हासिल की थी.
हरियाणा कांग्रेस में उस वक्त भजनलाल की तूती बोलती थी. तो लगभग तय था कि मुख्यमंत्री तो भजनलाल ही बनेंगे. लेकिन ऐन वक्त पर सोनिया गांधी ने भजनलाल की जगह भूपेंद्र हुड्डा के नाम का ऐलान कर दिया. भूपेंद्र हुड्डा मुख्यमंत्री बन गए और तीन-तीन बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बन चुके भजनलाल पार्टी में किनारे कर दिए गए.
भजनलाल ने बनाई अपनी पार्टी
बाद में भजनलाल ने अपनी पार्टी बनाई. नाम रखा हरियाणा जनहित कांग्रेस. कांग्रेस का अच्छा-खासा नुकसान भी किया. लेकिन इतना नहीं कि कांग्रेस को 2009 का विधानसभा चुनाव जीतने में कोई दिक्कत हो. हालांकि बेटे कुलदीप विश्ननोई बीजेपी के साथ चले गए और अब भी हैं. लेकिन कांग्रेस आलाकमान को ये पता है कि आज की तारीख में भूपेंद्र हुड्डा कम से कम भजनलाल तो नहीं ही हैं. भजनलाल ने तो कांग्रेस का थोड़ा बहुत ही नुकसान किया था, लेकिन अगर भूपेंद्र हुड्डा नाराज हुए तो फिर कांग्रेस की मुसीबत तय है. क्योंकि एग्जिट पोल में जो सीटें कांग्रेस जीतती हुई नजर आ रही है, उनमें से अधिकांश विधायक भूपेंद्र हुड्डा खेमे के ही हैं और इसकी वजह ये है कि इस चुनाव में भले ही भूपेंद्र हुड्डा का नाम मुख्यमंत्री के तौर पर घोषित नहीं किया गया, लेकिन किसको कहां से टिकट मिलेगा, ये तय भूपेंद्र हुड्डा ने ही किया है.
क्या कांग्रेस आलाकमान करेगा खेला?
ऐसे में हुड्डा की दावेदारी तो मजबूत है ही, लेकिन आलाकमान के लिहाज से देखें तो फिर गांधी परिवार के सबसे करीबी दो और नेता हैं. और इसमें पहले पायदान पर हैं कुमारी सैलजा, जिनका कहना है कि कांग्रेस मेरे व्यापक अनुभव और पार्टी के प्रति मेरी अटूट निष्ठा को नजरअंदाज नहीं कर सकती. बाकी सुरजेवाला तो हैं ही, जिन्होंने बार-बार कहा है कि मुख्यमंत्री पद की महत्वाकांक्षा रखने में गलत ही क्या है. लेकिन एक और नेता है, जिसकी चर्चा भले ही न हो, लेकिन रेस में वो भी है. और उनका नाम है उदयभान, जो हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष हैं.
इससे भी बड़ी बात ये है कि वो भूपेंद्र हुड्डा के ही खेमे के हैं, तो मुख्यमंत्री के दलित चेहरे के तौर पर भूपेंद्र हुड्डा, कुमारी सैलजा की बजाय उदयभान के नाम पर भी सहमत हो सकते हैं ताकि अशोक तंवर के कांग्रेस में आने के बाद कुमारी सैलजा की महत्वाकांक्षा पर जो थोड़ा-बहुत ब्रेक लगा है, उदयभान उसे पूरी तरह रोक दें. जिससे कि आने वाले वक्त में दीपेंद्र हुड्डा की दावेदारी को कोई चुनौती न दे सकें. बाकी तो ये राजनीति है. कब किस करवट बैठेगी, कोई नहीं जानता.
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