Gujarat News: चैम्पियन तैराक माने जाने वाले लुप्तप्राय खराई ऊंट के मालिक पशुपालक खुद को भाग्यशाली मान सकते हैं. लेकिन जामनगर और देवभूमि द्वारका जिलों में इन ऊंटों के मालिकों को लगता है कि ये जानवर उनके लिए एक ज़िम्मेदारी है. इसी कारण उन्हें ऐसे खरीदारों की खोज है जो इनका भली-भांति खयाल रख सकें. इसकी वजह यह है कि इन ऊंटों को पर्याप्त खाना नहीं मिल रहा है.

जामनगर और देवभूमि द्वारका में करीब 600 खराई ऊंट

खराई ऊंट ज्यादातर मैंग्रोव पर भोजन करते हैं, जो समुद्री राष्ट्रीय उद्यान के पास पनप रहे हैं. संरक्षित क्षेत्र होने के कारण ऊंटों के भोजन के लिए वहां प्रवेश करने से मालिकों और वन विभाग के कर्मचारियों के बीच तकरार हो रही है. जामनगर और देवभूमि द्वारका दोनों जिलों में करीब 600 खराई ऊंट हैं.

वन विभाग ऊंटों को क्षेत्र में चरने की अनुमति नहीं देता

प्रजाति के सरंक्षण के लिए काम कर रही संस्था के कॉर्डिनेटर महेंद्र भनानी के मुताबिक 1994 में मरीन नेशनल पार्क बनने के बाद वन विभाग द्वारा लगातार इसकी सीमाओं का विस्तार किया गया है, नियम के अनुसार वन विभाग ऊंटों को उनके क्षेत्र में चरने की अनुमति नहीं देता है यदि यह स्थिति बनी रहती है तो खराई ऊंटों का जीवित रहना मुश्किल है. दो जिलों में प्रजनकों की मुख्य आय ऊंट के दूध के अलावा उन्हें परिवहन के साधन के रूप में उपयोग करना था. साथ ही वे कृषि गतिविधियों में भी लगे हुए हैं.

पर्याप्त भोजन नहीं मिलने पर मालिक बेचने को मजबूर

खंभालिया तालुका के एक ऊंट ब्रीडर लाखा रबारी के मुताबिक मेरे पास 25 ऊंट थे, लेकिन अब मैं उन्हें गिर सोमनाथ और कच्छ जिलों में बेच रहा हूं, क्योंकि उन्हें यहां पर्याप्त भोजन नहीं मिल रहा है. चुडेश्वर गांव के जग रबारी ने कहा, हम मांग करते हैं कि सरकार ऊंटों को चरने के लिए समुद्र के किनारे एक संरक्षित क्षेत्र घोषित करे. इन ऊंटों को कच्छ से आजादी से पहले यहां लाया गया था और अब वे पलायन करने के लिए मजबूर हैं. गिर संरक्षित क्षेत्र में ऐसे क्षेत्र हैं जहां कुछ नियमों और शर्तों के साथ पशुपालकों को अपने पशुओं को चराने की अनुमति दी जाती है.

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