अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम जमानत मिलने पर योगेंद्र यादव की प्रतिक्रिया आई. योगेंद्र यादव ने बुधवार (21 मई) को अपने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि 'शुक्र है. बस इतना ही कह सकते हैं.' इससे पहले 18 मई को योगेंद्र यादव ने महमूदाबाद की गिरफ्तारी को शॉकिंग बताया बताया था. उन्होंने ये भी कहा था कि प्रोफेसर को तो गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन क्या मध्य प्रदेश के मंत्री (विजय शाह) पर कोई कार्रवाई हुई जिन्होंने वास्तव में कर्नल सोफिया कुरैशी पर अपमान किया.
जांच पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत देते हुए प्रोफेसर को राहत तो थी लेकिन उनके खिलाफ जांच पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने हरियाणा के डीजीपी को निर्देश दिया कि वह मामले की जांच के लिए 24 घंटे के भीतर आईजी रैंक के अधिकारी के नेतृत्व में तीन-सदस्यीय एसआईटी का गठन करें, जिसमें एसपी रैंक की एक महिला अधिकारी भी शामिल हो.
जांच में मदद के लिए दी गई अंतरिम जमानत- कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को जांच में मदद के लिए अंतरिम जमानत दी गई है. शीर्ष अदालत ने महमूदाबाद को अपना पासपोर्ट जमा करने का निर्देश भी दिया. कोर्ट ने कहा कि एसआईटी में सीधे भर्ती किए गए तीन आईपीएस अधिकारी शामिल होने चाहिए- जो हरियाणा के निवासी नहीं होंगे. पीठ ने कहा कि आईजी रैंक के अधिकारी के अलावा दो अन्य पुलिस अधीक्षक या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारी होने चाहिए.
'दूसरों का सम्मान करना चाहिए था'
सोनीपत स्थित अशोका यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर की ऑनलाइन पोस्ट की जांच-पड़ताल करने वाली पीठ ने उनके शब्दों के चयन पर सवाल उठाते हुए कहा कि इनका इस्तेमाल जानबूझकर दूसरों को अपमानित करने या उन्हें असहज करने के लिए किया गया था. जस्टिस कांत ने कहा, ‘‘शब्दों का चयन जानबूझकर दूसरों को अपमानित करने या असहज करने के लिए किया गया. प्रोफेसर एक विद्वान व्यक्ति हैं और उनके पास शब्दों की कमी नहीं हो सकती... वे दूसरों को ठेस पहुंचाए बिना उन्हीं भावनाओं को सरल भाषा में व्यक्त कर सकते थे. उन्हें दूसरों की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए था. उन्हें सरल और तटस्थ भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए था, दूसरों का सम्मान करना चाहिए था.’’