दिल्ली की एक अदालत ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के पूर्व छात्र शरजील इमाम (Sharjeel Imam) के एक आवेदन पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. उसने फरवरी 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली के कई इलाकों में हुए सांप्रदायिक दंगों के पीछे की कथित बड़ी साजिश से संबंधित मामले में अंतरिम जमानत का आग्रह किया है. विशेष न्यायाधीश अमिताभ रावत ने इमाम और अभियोजन पक्ष की दलीलें सुनने के बाद मामले की सुनवाई 10 जून को मुकर्रर कर दी.


अपने आवेदन में, इमाम ने राजद्रोह पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश हवाला दिया है और दलील दी है कि निचली अदालत भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124 ए (राजद्रोह) को उसकी संवैधानिकता पर अंतिम निर्णय आने तक विचार में नहीं कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने मई में केंद्र सरकार को आईपीसी की धारा 124ए को स्थगित रखने का निर्देश दिया था और केंद्र और राज्य सरकारों से इस धारा में कोई मामला दर्ज करने से बचने को कहा था.


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शरजील इमाम पर संशोधन नागरिकता अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (NRC) को लेकर सरकार के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने का आरोप है, खासकर, दिसंबर 2019 में जामिया मिल्लिया इस्लामिया में जिसके कारण विश्वविद्यालय के बाहर के क्षेत्र में हिंसा हुई. 
उसके खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं और कड़े गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत आरोप लगाए गए हैं.


अप्रैल 2020 में, इमाम पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया था. दिल्ली पुलिस ने आरोप लगाया था कि उसके भाषण ने लोगों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा दिया जिसके कारण जामिया मिलिया इस्लामिया क्षेत्र में दंगे हुए. सीएए के समर्थकों और विरोधियों के बीच झड़पों के बाद फरवरी 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली के कई इलाकों में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए थे.


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