Lok Sabha Elections 2024: चार महीने बाद राजस्‍थान, मध्‍य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होंगे. इन तीन राज्‍यों के तत्काल बाद ही देशभर में लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो जाएगी, लेकिन मल्लिकार्जुन खरगे (Mallikarjun Kharge) के कांग्रेस अध्‍यक्ष बनने के बाद से कार्यसमिति (Congress Working Committee) तक नहीं बन पाई है. ऐसे में सवाल खड़ा हो रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) से 2024 में खरगे की कांग्रेस कैसे मुकाबला करेगी? खरगे के अध्‍यक्ष बने हुए लगभग 250 दिन पूरे हो चुके हैं, लेकिन वह अपनी टीम तक तैयार नहीं कर पा रहे हैं. जबक‍ि राजस्‍थान, हरियाणा, उत्तराखंड सहित कई राज्‍यों में पार्टी के भीतर गुटबाजी चरम पर है, जिसे सुलझाना उनके लिए एक बड़ी चुनौती है.


सबसे पहले जानिए क्‍या है कांग्रेस की कार्य समिति 
कांग्रेस कार्य समिति का पहली बार 1920 में गठन किया गया था, जिसकी अध्‍यक्षता विजयराघवाचार्य (C. Vijayaraghavachariar) ने की थी. वरिष्ठ नेताओं को इसमें शामिल किया गया था, जिसके जरिए पार्टी की महत्‍वपूर्ण नीति और संगठनात्‍मक मामलों पर फैसले करने के साथ ही राष्‍ट्रीय स्‍तर पर पार्टी के लिए मार्गदर्शन और निर्देशन करने की जिम्‍मेदारी दी गई थी.


शुरुआती दौर में इस समिति में चुने हुए 15 सदस्‍यों को शामिल किया गया था, जिसकी संख्‍या अब धीरे-धीरे बढ़कर 31 तक की जा चुकी है. सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) की अध्‍यक्षता वाली कार्य समिति में 31 सदस्‍य थे. इसके अलावा स्‍थायी आमंत्रित और विशेष आमंत्रित के तौर पर भी 30 से 40 सदस्‍यों को शामिल किया जाता है.


संजय निरुपम ने भंग करने की मांग की थी
कांग्रेस ने 2019 में महाराष्‍ट्र में वैचारिक रूप से विपरीत शिवसेना के साथ गठबंधन किया था. उसके बाद पार्टी के नेता संजय निरुपम ने सार्वजनकि तौर पर कहा था कि सोनिया गांधी को कार्य समिति यानी सीडब्ल्यूसी को भंग कर देना चाहिए, जिसको लेकर काफी विवाद भी हुआ था.


नाराज नेता भी कर रहे इंतजार
कांग्रेस से नाराज चल रहे नेता भी कार्य समिति की सूची आने का इंतजार कर रहे हैं. उन्‍हें उम्‍मीद है कि खरगे की कांग्रेस में उन्‍हें कोई न कोई महत्‍वपूर्ण स्‍थान मिल सकता है. हालांकि G-23 बनाने वाले कई नेताओं ने कांग्रेस से अपनी राह अलग कर ली है. जो कुछ बचे हैं, उन्हें एक उम्‍मीद है कि आने वाले दिनों में किसी न किसी रूप में सम्‍मान मिल सकता है. इसमें सीडब्ल्यूसी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है.


गुटबाजी पर काबू पाना सबसे बड़ी चुनौती
मोदी को मात देने के लिए कांग्रेस विपक्षी एकता को लेकर हर समझौते करने के लिए तैयार है, लेकिन अलग-अलग राज्‍यों में चल रही गुटबाजी को खत्‍म कराने को लेकर पार्टी की ओर से कोई बड़ा कदम नहीं उठाया जा रहा है. राजस्‍थान में गहलोत-पायलट, हरियाणा में हुड्डा-शैलजा, उत्‍तराखंड में हरीश रावत और प्रीतम सिंह के बीच टकराव जारी है. कमोवेश ऐसी ही स्थिति हर राज्‍य में बनी है, जिसके कारण कांग्रेस से जुड़े तमाम नेता अब तक पार्टी छोड़ चुके हैं, लेकिन पार्टी अभी तक स्‍थायी समाधान नहीं तलाश पाई है.


'कार्य समिति को लेकर तेजी से चल रहा काम'
कांग्रेस के प्रवक्‍ता पवन खेड़ा का कहना है कि नई कार्य समिति बनाने को लेकर तेजी से कार्य चल रहा है. जल्‍द ही नई कार्य समिति के सदस्‍यों के नामों का एलान कर दिया जाएगा. लेकिन कितने दिनों के भीतर हो पाएगा, यह बता पाना मेरे लिए संभव नहीं है. यह पार्टी हाईकमान के स्‍तर का मसला है. यह तय है कि सूची जल्‍द सामने आएगी.


'ऐसी कमेटी के बिना पार्टी कैसे ले पाएगी बड़े फैसले?'
कांग्रेस को करीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई का कहना है कि कांग्रेस के लिहाज से कार्य समिति और इलेक्‍शन मैनेजमेंट कमेटी बेहद ही महत्‍वपूर्ण हैं. क्‍योंकि ये दोनों ही कमेटियां ही पार्टी से जुड़े मामलों में फैसला लेती हैं. खरगे के अध्‍यक्ष बनने के 8 महीने बाद भी वर्किंग कमेटी और इलेक्‍शन कमेटी का न बनना चिंताजनक है. 4 महीने बाद तीन राज्‍यों में चुनाव है. उसके बाद लोकसभा का चुनाव है. बीजेपी ने हर राज्‍य में लोकसभा के लिहाज से तैयारी शुरू कर दी है. ऐसे में कांग्रेस के लिए महत्‍वपूर्ण कमेटियां न होना गौर करने वाली बात है. कार्यसमिति के जरिए तमाम राज्यों के विवादों को सुलझाने में भी आसानी होती है.


'हर पार्टी को कुछ ही लोग चला रहे, कमेटी से कोई फर्क नहीं'
वरिष्‍ठ पत्रकार अनिल चमड़िया के अनुसार कांग्रेस का पुर्नगठन हो रहा है. राहुल गांधी वो कांग्रेस नहीं चला रहे, जिसे राजीव, नरसिंहा राव या सोनिया गांधी ने छोड़ी है. राहुल गांधी नए कांग्रेस को चला रहे हैं. कांग्रेस में दलित अध्‍यक्ष होना बड़ी बात है. ऐसे में औपचारिक ढांचा बनने में अभी वक्‍त लगेगा. हो सकता है कि लोकसभा चुनाव तक ढांचा न बने. हालांकि इससे लोकसभा चुनाव में किसी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ेगा. यह भी एक तथ्‍य है कि आज किसी भी पार्टी को कुछ ही लोग चला रहे हैं.


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