दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में एक बड़ा बदलाव हुआ है. यूनिवर्सिटी के लाइब्रेरी से अब वह सिस्टम हटा दिया गया है, जिसके छात्रों का चेहरा दर्ज करने के बाद एंट्री मिलती थी. इस 'फेस रिकग्निशन सिस्टम' के विरोध में लंबे समय से छात्र संघ आवाज उठा रहा था. जेएनयू छात्र संघ (JNUSU) ने इसे 'छात्रों के अधिकारों का हनन बताते हुए' प्रदर्शन किया था. वहीं, यह भी दावा किया गया था कि फेस रिकग्निशन सिस्टम की वजह से यूनिवर्सिटी कैंपस की लोकतांत्रिक परंपरा को नुकसान पहुंच रहा है.
छात्रों का कहना था कि यूनिवर्सिटी में किसी भी तरह की निगरानी होने की व्यवस्था गलत है. इसे हटाया जाना चाहिए. लंबी लड़ाई के बाद यूनिवर्सिटी प्रशासन ने छात्रों के मांग के आगे घुटने टेक दिए हैं. अब इस व्यवस्था के हटाए जाने पर छात्रों ने खुशी जाहिर की है और इसे छात्र समुदाय के संघर्ष की जीत करार दिया है.
छात्रों की जानकारी के बिना लागू हुआ सिस्टम
छात्र संघ ने दावा किया था कि यूनिवर्सिटी प्रशासन ने पहले उन्हें यह आश्वासन दिया था कि किसी भी बड़े फैसले से पहले छात्रों से चर्चा की जाएगी और समिति का गठन कर राय मश्वरा के बाद ही नया सिस्टम लागू किया जाएगा. हालांकि, ऐसा कुछ हुआ नहीं. स्टूडेंट्स का दावा था कि लाइब्रेरियन मनोरमा त्रिपाठी लगातार नया सिस्टम लागू करने और उसे आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही थीं. छात्रों से कोई बात नहीं की गई थी.
छात्रों का कहना है कि नियम लागू करने से पहले न तो कोई समिति बनाई गई और न हीं छात्रों को इसकी जानकारी दी गई. केवल बात छुपाते हुए व्यवस्था को आगे बढ़ाते गए.
'लाइब्रेरी को चेकपोस्ट क्यों बनाया जा रहा'- छात्र
स्टूडेंट्स की ओर से इस बात को लेकर भी नाराजगी थी कि जेएनयू की लाइब्रेरी को 'चेकपोस्ट' में तब्दील कर दिया गया है. यह एक संरक्षित जगह है, जिसको हर छात्र के लिए समान पहुंच बनानी चाहिए. ऐसे में संघ ने छात्रों से अपील की थी कि कैंपस में किसी भी तरह की नियंत्रणकारी व्यवस्था लागू हो तो उसका विरोध करें.