दिल्ली सरकार आज (4 अगस्त) विधानसभा में प्राइवेट स्कूलों की फीस नियंत्रित करने के लिए बिल विधानसभा में पेश कर सकती है. इस बिल का नाम Delhi School Education (Transparency in Fixation and Regulation of Fees) Bill, 2025 है. इसके मुताबिक, दिल्ली के स्कूल 3 साल में एक बार ही फीस बढ़ा सकेंगे. नियमों के उल्लंघन पर 1 लाख से 10 लाख तक का जुर्माना लगाया जाएगा.

बिल के प्रावधानों के तहत न सिर्फ अब दिल्ली के 1677 प्राइवेट स्कूल की फीस सीधा सरकार के नियंत्रण में आएगी, साथ ही स्कूल फीस बढ़ा सकता है या फिर नहीं ये स्कूल स्तरीय कमेटी, सरकार की जिला स्तरीय कमेटी और शिक्षा निदेशालय की राज्य स्तरीय समिति तय करेगी.

इसके अलावा बिल में प्रावधान है कि तीनों समितियों और उसके सदस्यों के खिलाफ न ही जिला कोर्ट में याचिका दायर हो सकती और न ही जिला अदालत कोई फैसला दे सकता है.

नहीं था कोई भी ठोस कानून 

दिल्ली में प्राइवेट स्कूलों द्वारा मनमाने तरीके से फीस बढ़ाने पर कोई भी ठोस कानून नहीं था और सब कुछ शिक्षा विभाग के आदेशों पर चल रहा था, जिसका दिल्ली में प्राइवेट स्कूल पालन नहीं कर रहे थे.

अब तक Delhi School Education Act, 1973 और Delhi School Education Rules, 1973 के तहत जहां प्राइवेट स्कूल नियंत्रित होते थे तो दिल्ली सरकार के Directorate of Education (DoE) के नियमों के मुताबिक प्राइवेट स्कूल हर साल ऑडिट रिपोर्ट पेश करके कारण बताकर सरकार की मंजूरी के बाद ही फीस बढ़ा सकते थे और बिन मंजूरी फीस बढ़ाने पर जुर्माने का प्रावधान था. 

हालांकि, दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश देकर मंजूरी वाले प्रावधान से उन प्राइवेट स्कूलों को बाहर रखा था, जो सरकारी जमीन पर ना बने हो. इसके अलावा अब तक दिल्ली में कोई कानून नहीं था, सिर्फ आदेश था, जिसकी वजह से दिल्ली के प्राइवेट स्कूल अब तक मनमानी करते थे, लेकिन अब दिल्ली सरकार Delhi School Education (Transparency in Fixation and Regulation of Fees) Bill, 2025 लाने जा रही है.

स्कूल लेवल फीस रेगुलेशन कमिटी होगी गठित 

सभी प्राइवेट स्कूलों में स्कूल लेवल फीस रेगुलेशन कमिटी गठित होगी और इस समिति के अध्यक्ष स्कूल प्रबंधन के चेयरपर्सन होंगे, सचिव स्कूल की प्रिंसिपल होंगी, तीन शिक्षक सदस्य होंगे और पांच अभिभावक शामिल किए जाएंगे. इसके अलावा, दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशक का एक प्रतिनिधि निरीक्षक (आब्जर्वर) के रूप में इस समिति में रहेगा.

साथ ही इस स्कूल लेवल फीस रेगुलेशन कमिटी में पांच अभिभावकों का चयन स्कूल की पेरेंट्स टीचर एसोसिएशन के सदस्यों में से लॉटरी प्रणाली के माध्यम से किया जाएगा, ताकि चयन प्रक्रिया निष्पक्ष हो. साथ ही स्कूल लेवल की यह समिति 1 साल के कार्यकाल के लिए गठित होगी और स्कूल फीस को बढ़ाने या उससे संबंधित किसी भी निर्णय को लेने के लिए जिम्मेदार होगी.

अनुसूचित जनजाति समुदाय से होंगे अभिभावक

समिति में जो पांच अभिभावक होंगे, उसमें कम से कम एक अभिभावक अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति समुदाय से होना चाहिए और स्कूल लेवल कमेटी में कुल सदस्यों में से कम से कम दो महिलाएं होनी चाहिए.

सरकार के मुताबिक बिल में प्रावधान किया गया है कि स्कूल लेवल फीस रेगुलेशन कमिटी स्कूल की फीस बढ़ाने से जुड़े निर्णय कुछ मानकों के आधार पर करेगी, जिसमें प्रमुख रूप से यह देखा जाएगा कि स्कूल की इमारत की स्थिति क्या है, खेल का मैदान कैसा है, स्कूल के पास कितनी वित्तीय संपत्ति या राशि उपलब्ध है.

इसके अलावा स्कूल की मौजूदा बुनियादी सुविधाएं कैसी हैं, स्कूल किस ग्रेड में आता है, वह अपने शिक्षकों को कौन-सी पे-कमिशन के तहत वेतन देता है, प्रॉफिट की स्थिति क्या है, लाइब्रेरी की गुणवत्ता कैसी है, क्या स्कूल डिजिटल सुविधाओं से लैस है. इन सभी चीज़ों को देख कर ही फीस बढ़ाने का निर्णय लिया जाएगा.

रिविजन समिति तक का सिस्टम तैयार किया गया

साथ ही अगर किसी को स्कूल लेवल कमेटी का फैसला चैलेंज करना है तो उसके लिए डिस्ट्रिक्ट फीस अपीलेट समिति और रिविजन समिति तक का सिस्टम तैयार किया गया है. डिस्ट्रिक्ट फीस अपीलेट समिति की अध्यक्षता जिले के डिप्टी डायरेक्टर ऑफ एजुकेशन करेंगे.

साथ ही समिति में जोन के डिप्टी डायरेक्टर सदस्य-सचिव होंगे, एक चार्टर्ड अकाउंटेंट शामिल होगा, और एक जिला लेखाकार पदाधिकारी शामिल रहेंगे, जो उस क्षेत्र के खातों और वित्तीय पहलुओं की देखरेख करेगा और इसके अलावा चुने गए दो शिक्षक और दो अभिभावक भी इस समिति का हिस्सा होंगे.

यह समिति जिला स्तर पर फीस बढ़ोतरी से जुड़ी अपीलों की सुनवाई करेगी और मामलों पर 30 से 45 दिनों के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी और अगर अपील करने वाले को जिला समिति के निर्णय से संतोष नहीं होता, तो मामला राज्य स्तर की समिति के पास भेजा जाएगा.

दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग के डायरेक्टर करेंगे अध्यक्षता

राज्य स्तर पर एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया जाएगा, जिसकी अध्यक्षता दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग के डायरेक्टर करेंगे, जिन्हें शिक्षा मंत्रालय द्वारा नामित किया जाएगा साथ ही इस समिति में सात सदस्य शामिल होंगे: एक प्रतिष्ठित शिक्षा विशेषज्ञ , एक चार्टर्ड अकाउंटेंट, लेखा नियंत्रक, निजी स्कूलों से संबंधित एक विशेषज्ञ, अभिभावक और शिक्षा निदेशालय के अतिरिक्त निदेशक.

यह समिति जिला स्तर की समिति द्वारा लिए गए निर्णयों की समीक्षा करेगी और आवश्यक होने पर अंतिम निर्णय सुनाएगी. हर स्कूल में स्कूल स्तर की समिति का गठन 15 जुलाई तक कर लिया जाएगा. इसके बाद, यह समिति 31 जुलाई तक फीस से संबंधित प्रस्ताव तैयार कर प्रस्तुत करेगी और फिर समिति द्वारा तैयार किए गए इस प्रस्ताव पर कमिटी द्वारा 15 सितंबर तक अंतिम निर्णय लिया जाएगा.

अगर समिति की ओर से कोई अतिरिक्त सुझाव नहीं आते हैं, तो प्रस्ताव को 30 सितंबर तक जिला स्तरीय समिति को भेज दिया जाएगा, ताकि वह समय रहते अगली शैक्षणिक सत्र में लागू की जाने वाली फीस पर चर्चा कर निर्णय ले सके.

पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया गया

इससे अभिभावकों को समय रहते यह स्पष्ट रूप से पता चल जाएगा कि फीस बढ़ेगी या नहीं और अगर किसी को इस निर्णय पर आपत्ति या सुझाव है, तो वह अपनी बात समिति के सामने रख सकता है. साथ ही पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया गया है. सभी रिकॉर्ड और बैलेंस शीट अभिभावकों के सामने प्रस्तुत किए जाएंगे.

अब अगर कोई भी स्कूल बिना कमेटी की मंजूरी के फीस बढ़ता है तो उस पर जुर्माना से लेकर स्कूल का नियंत्रण सरकार के पास तक लेने का प्रावधान है.