देशभर में आवारा पशुओं पर हो रहे अत्याचारों में तेजी से बढ़ोतरी को देखते हुए पशु प्रेमियों ने गंभीर चिंता जताई है. सोमवार (24 नवंबर) को ग्रेटर नोएडा की स्वर्ण नगरी स्थित प्रेस क्लब में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में पशु कल्याण से जुड़ी संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने कहा कि पिछले कुछ सालों में पशुओं पर एसिड अटैक, रेप, टॉर्चर, हिट-एंड-रन और ज़हर देकर मारने जैसी घटनाओं में भारी वृद्धि हुई है. सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश को रद्द करने और ठोस कानून लागू करने समेत कई मांगें की गईं हैं.
वहीं पशु अधिकार कार्यकर्ताओं संक्षय बब्बर और जसमीत कौर ने बताया कि गाय, कुत्ते और बिल्लियों जैसे मासूम जानवर भी क्रूरता का शिकार बन रहे हैं. उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा, ''ऐसे मामलों में पुलिस अक्सर एफआईआर दर्ज करने में ढिलाई बरतती है. यहां तक कि यदि मामला दर्ज भी हो जाए, तो आरोपी मात्र 50 रुपये की जमानत पर छूट जाते हैं. कमजोर कानूनों के कारण यह व्यवस्था अपराधियों के लिए वरदान साबित हो रही है.''
'SC के आदेश का गलत अर्थ निकाला जा रहा'
कार्यकर्ताओं ने कहा कि 11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद फीडर्स (जानवरों को खाना खिलाने वालों) के साथ दुर्व्यवहार और हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं. आरोप लगाया गया कि कोर्ट के आदेश का गलत अर्थ निकाला जा रहा है और सोशल मीडिया पर डॉग-बाइट और रेबीज़ से जुड़े मामलों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है, जिससे लोगों में भ्रम और डर फैल रहा है.
वास्तविक केस स्टडी, डॉग-हेट कैंपेन से जुड़े सबूत किए जारी
उन्होंने बताया कि सोशल मीडिया पर वायरल कई पोस्ट, वीडियो और आंकड़े बाद में गलत साबित हुए हैं. सरकारी डेटा के अनुसार देश में रेबीज और मानव-पशु संघर्ष की स्थिति उतनी गंभीर नहीं है, जितनी उसे सोशल मीडिया पर दिखाया जा रहा है. प्रेस कॉन्फ्रेंस में संस्थाओं ने दिल्ली, लखनऊ, गुजरात, फरीदाबाद और अन्य शहरों के वास्तविक केस स्टडी, मेडिकल रिकॉर्ड, वीडियो प्रमाण और डॉग-हेट कैंपेन से जुड़े सबूत भी जारी किए.
संस्था ने की 4 प्रमुख मांगें
- सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश को रद्द किया जाए.
- देश में पशु क्रूरता के खिलाफ अधिक कठोर कानून बनाए जाएं.
- राष्ट्रीय स्तर पर पशु क्रूरता मामलों का व्यापक ऑडिट किया जाए.
- नीति निर्माण में अंतरराष्ट्रीय पशु वेलफेयर संस्थाओं और एक्सपर्ट को शामिल किया जाए.
पशु प्रेमियों ने सरकार से अपील की है कि जानवरों पर बढ़ रही हिंसा को गंभीरता से लेते हुए तुरंत प्रभावी कदम उठाए जाएं, ताकि समाज में सुरक्षा, संवेदना और जागरूकता का वातावरण बनाया जा सके.