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बढ़ती फीस के बीच DPS द्वारका पर आरोप, बच्चों को लाइब्रेरी में बैठाया, क्लास-कैंटीन और बाथरूम तक नहीं जाने दे रहे

DPS Dwarka Fees Hike: दिल्ली HC ने DPS द्वारका को फीस बकाया छात्रों से भेदभाव न करने का निर्देश दिया है. पाया गया कि 9 बच्चे 20 मार्च से लाइब्रेरी में बंद थे, जिन्हें कैंटीन भी नहीं जाने दिया जा रहा.

DPS Dwarka news: दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली पब्लिक स्कूल, द्वारका को उन छात्रों के साथ किसी भी तरह के भेदभाव, उत्पीड़न या अनुचित व्यवहार से रोकने के निर्देश दिए हैं, जिन पर फीस बकाया है. जस्टिस सचिन दत्ता की अदालत ने यह आदेश एक याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया, जिसमें स्कूल पर छात्रों को कक्षा में न बैठने देने और लाइब्रेरी में बंद रखने जैसे गंभीर आरोप लगाए गए थे.

अदालत के सामने पेश की गई निरीक्षण रिपोर्ट में बताया गया कि अभिभावकों ने अनधिकृत फीस वृद्धि, बकाया फीस के कारण छात्रों का उत्पीड़न, और अनैतिक व्यवहार की शिकायतें दर्ज कराईं थीं. इसके आधार पर शिक्षा निदेशालय के आदेश के तहत 3 अप्रैल को  जांच समिति गठित की गई थी और 4 अप्रैल 2025 को दिल्ली के दक्षिण-पश्चिम जिले के डीएम की की अध्यक्षता में गठित समिति ने द्वारका स्थित दिल्ली पब्लिक स्कूल का दौरा किया था. 

20 मार्च से लाइब्रेरी में बैठे थे बच्चे
अदालत में पेश दिल्ली सरकार की निरीक्षण रिपोर्ट के मुताबिक, 4 अप्रैल को सुबह 11.00 बजे जब टीम द्वारका स्थित दिल्ली पब्लिक स्कूल पहुंची तो कमेटी ने पाया कि 9 बच्चों को स्कूल प्रशासन ने 20 मार्च से लाइब्रेरी में बैठाया हुआ है.

क्लास और कैंटीन तक भी नहीं जाने दे रहे
इसके बाद जब जिला अधिकारी की अगुवाई वाली दिल्ली सरकार की टीम ने छात्रों से बात की, जिन्हें लाइब्रेरी में बैठाया गया था तो उन्होंने बताया कि उन्हें क्लास में जाने की परमिशन नहीं है. कैंटीन तक में नहीं जाने दिया जा रहा और साथ पढ़ने वाले बच्चों से भी बातचीत भी नहीं करने दी जाती. 

इतना ही नहीं, इंस्पेक्शन रिपोर्ट के मुताबिक इन बच्चों को शौचालय जाने के लिए भी सिक्योरिटी गार्ड के साथ भेजा जाता है, ताकि वे कहीं और न चले जाएं.

बयान देने को राजी नहीं स्कूल के टीचर्स और प्रिंसिपल
बच्चों से बातचीत करने के बाद जब इंस्पेक्शन करने गई जिलाधिकारी की टीम ने स्कूल स्टाफ से उनका पक्ष जानना चाहा तो डीपीएस द्वारका की वाइस प्रिंसिपल सुष्मा ने कहा कि वह मैनेजमेंट की अनुमति के बाद ही कोई लिखित बयान देंगी. साथ ही, लाइब्रेरियन अंशु ने भी लिखित बयान देने से इनकार किया. इतना ही नहीं, डीपीएस द्वारका की प्रिंसिपल प्रिया नारायण ने मौखिक रूप से कहा कि मामला कोर्ट में लंबित है और कोई भेदभाव नहीं किया जा रहा, लेकिन उन्होंने भी लिखित में कुछ नहीं दिया.

क्लास में पढ़ रहे बच्चों ने भी बताया सच
कोर्ट में पेश की गई इंस्पेक्शन रिपोर्ट में बताया गया कि टीम ने 7वीं, 9वीं और 10वीं क्लास में जाकर छात्रों से बातचीत की. बच्चों ने भी पुष्टि की कि उनके साथ पढ़ने वाले जो बच्चे फीस नहीं दे पाए, उन्हें कक्षा से बाहर रखा गया और लाइब्रेरी में बैठाया गया. इंस्पेक्शन रिपोर्ट में बताया गया कि निरीक्षण के दौरान दिल्ली सरकार के डिप्टी कंट्रोलर ऑफ एकाउंट्स राजेश कुमार नहीं थे. ऐसे में फीस वृद्धि की जांच नहीं हो पाई.

दिल्ली सरकार की टीम ने अपनी निरीक्षण रिपोर्ट में सिफारिश की कि छात्रों को तुरंत नियमित कक्षाओं में शामिल किया जाए. साथ ही फीस वृद्धि संबंधी अगर कोई एप्लीकेशन शिक्षा निदेशालय के पास लंबित है तो उस पर जल्द निर्णय लिया जाए. दिल्ली सरकार के DDE नियमित रूप से स्कूल का निरीक्षण करें.

'ऐसा आचरण स्वीकार नहीं'- हाई कोर्ट
दिल्ली हाई कोर्ट ने इस व्यवहार को 'छात्रों के साथ अपमानजनक और अस्वीकार्य' बताया और कहा कि फीस न भरने की स्थिति में भी स्कूल को छात्रों के साथ ऐसा व्यवहार करने का कोई अधिकार नहीं है. अदालत ने कहा कि जो निरीक्षण रिपोर्ट दाखिल की गई है, वह एक बेहद चिंताजनक स्थिति को उजागर करती है. 

अपने आदेश में अदालत ने स्पष्ट कहा कि ऐसा आचरण स्वीकार्य नहीं है और विद्यालय को अगर फीस की अदायगी को लेकर कोई शिकायत है, तो उसे दिल्ली स्कूल शिक्षा अधिनियम, 1973, और उसके अधीन बने नियमों तथा लंबित न्यायिक कार्यवाही में दिए गए निर्देशों के तहत ही सुलझाया जाना चाहिए.

'बच्चों को प्रताड़ित करना फीस वसूली का साधन नहीं'
अपने आदेश में अदालत ने दो टूक यह भी कहा कि छात्रों को उत्पीड़न या भेदभाव का शिकार बनाना, फीस वसूली का साधन नहीं हो सकता. दिल्ली सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि डीपीएस द्वारका को 8 अप्रैल को कारण बताओ नोटिस (Show Cause Notice) जारी किया गया था, जिसमें पूछा गया है कि क्यों न दिल्ली स्कूल शिक्षा अधिनियम, 1973 की धारा 24(3) एवं नियम 56 के तहत कार्रवाई की जाए और एक सप्ताह में जवाब भी मांगा गया था. साथ ही दिल्ली सरकार ने शिक्षा निदेशालय को निर्देशित किया गया है कि वह नोटिस का निपटारा विधि अनुसार शीघ्र करे.

कोर्ट ने डीपीएस द्वारका को दिए ये आदेश
दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में कहा है कि जब तक मामले में अंतिम निर्णय नहीं हो जाता, तब तक स्कूल ना ही छात्रों को पुस्तकालय में बंद रखेगा, ना ही क्लास में जाने से रोकेगा और ना ही फीस न भरने वाले छात्रों को अलग करेगा. स्कूल बच्चों को अन्य छात्रों से बातचीत करने से रोक नहीं सकता. किसी भी प्रकार का भेदभाव या पक्षपात स्वीकार नहीं किया जाएगा. 

बच्चों को सेक्शन अलॉट करने के निर्देश
कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि डीपीएस द्वारका के जिन छात्रों को अगली कक्षा में प्रमोट किया गया है, उन्हें सेक्शन आवंटित किया जाए और फीस विवाद इस कार्य में बाधा नहीं बनना चाहिए. साथ ही, अदालत ने शिक्षा निदेशालय और संबंधित जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया कि वे नियमित निरीक्षण कर इस आदेश के पालन को सुनिश्चित करें.इस मामले की अगली सुनवाई 5 मई 2025 को निर्धारित की गई है.

शिवांक मिश्रा साल 2020 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं और इस वक्त एबीपी न्यूज़ में बतौर प्रिंसिपल कॉरेस्पॉन्डेंट कार्यरत हैं. उनकी विशेषज्ञता साइबर सुरक्षा, इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग और जनहित से जुड़े मामलों की गहन पड़ताल में है. कनाडा में खालिस्तानी आतंकियों के शरण मॉड्यूल से लेकर भारत में दवा कंपनियों की अवैध वसूली जैसे विषयों पर कई महत्वपूर्ण खुलासे किए हैं. क्रिकेट और फुटबॉल देखना और खेलना पसंद है.
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