कड़कड़डूमा कोर्ट में दिल्ली दंगों के मामले में आरोपी उमर खालिद के वकील ने दलील दी कि यह केस पूरी तरह पुलिस बयानों पर आधारित है. इसमें कोई ठोस या फिजिकल सबूत मौजूद नहीं हैं.

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यह मामला दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल द्वारा UAPA के तहत दर्ज किया गया था. वकील ने कहा कि केस ऐसा है जिसमें केवल बयानों पर भरोसा किया गया है, कोई अन्य सबूत नहीं है.

कोर्ट में वकील ने पेश की दलील

कड़कड़डूमा कोर्ट में उमर खालिद के वकील ने कहा कि घटना के 11 महीने बाद किसी से बयान लेकर ही केस बनाया गया. उन्होंने कहा कि खालिद के खिलाफ न तो कोई पैसा जुटाने का आरोप है और न ही कोई बरामदगी हुई. कुल 751 एफआईआर में सिर्फ एक एफआईआर में उमर खालिद आरोपी हैं.

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वकील ने कोर्ट को बताया कि जिन व्हाट्सऐप ग्रुप्स का जिक्र पुलिस ने किया है, उनमें से DPSG ग्रुप में खालिद ने केवल तीन मैसेज भेजे, जबकि MSJ ग्रुप में उन्होंने कोई संदेश नहीं भेजा. वकील ने कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान महीनों या सालों बाद दर्ज किए गए, जो मामले में संदेह पैदा करते हैं.

पुलिस कार्रवाई पर उठे सवाल

वकील ने सवाल उठाया कि अगर पुलिस को पहले से साजिश की जानकारी थी, तो बयान इतनी देर से क्यों लिए गए. उन्होंने यह भी पूछा कि जो व्यक्ति चक्का जाम और अन्य गतिविधियों में शामिल था, वह गवाह कैसे बन गया और आरोपी क्यों नहीं बना.

अगली सुनवाई के लिए 28 और 29 अक्टूबर की तारीख तय

कड़कड़डूमा कोर्ट ने मामले में अगली सुनवाई के लिए 28 और 29 अक्टूबर की तारीख तय की है. उमर खालिद को दिल्ली दंगा मामले में 13 सितंबर 2020 को गिरफ्तार किया गया था. वे अब तक पांच साल से जेल में हैं. हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी. हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि खालिद और शरजील इमाम की भूमिका गंभीर है क्योंकि उन्होंने सांप्रदायिक भाषणों के जरिए भीड़ को भड़काया.

जमानत की चुनौती सुप्रीम कोर्ट में दायर कर चुका खालिद

हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि ट्रायल सामान्य प्रक्रिया के अनुसार आगे बढ़ेगा. उमर खालिद अब अपनी जमानत की चुनौती सुप्रीम कोर्ट में दायर कर चुके हैं. वकील का कहना है कि अगर मामले में सिर्फ बयानों पर भरोसा किया गया है, तो आरोपियों के अधिकारों की सुरक्षा की दृष्टि से अदालत को गंभीरता से मामला देखना चाहिए.

यह मामला दिल्ली दंगों की जांच और अभियोजन की प्रक्रिया की संवेदनशीलता को उजागर करता है. अदालत में इसे लेकर सत्तारूढ़ और अभियोजन पक्ष के दावे लगातार चुनौती का सामना कर रहे हैं.