जिस लाल किला से देश के प्रधानमंत्री भारत का झंडा हर साल लहराते हैं उस लाल किले की लाल दीवारें अब काली पड़ रही हैं. इन काली पड़ती दिवारों ने ये सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर इतने सालों तक लाल बनी रहने के बाद अब ऐसा क्या हो गया कि इनमें भी बदलाव आने लगा. 

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15 सितंबर 2025 को जारी नई वैज्ञानिक स्टडी ने साफ किया है कि PM2.5, NO2 और SO2 जैसे प्रदूषक सैंडस्टोन पर सल्फेशन और भारी धातुओं के कारण काली परत बना रहे हैं. यूनेस्को की रिपोर्ट और शोधकर्ता मानते हैं कि प्रदूषण कम करने, नियमित सफाई और ग्रीन बेल्ट बनाकर ही इस विश्व धरोहर को बचाया जा सकता है.

ऐतिहासिक महत्व और बढ़ती समस्या

1639 में शाहजहां द्वारा बनवाया गया और 1648 में पूरा हुआ लाल किला आज मुगल स्थापत्य की सबसे पहचान योग्य निशानी है. इसकी 20–23 मीटर ऊंची और 14 मीटर मोटी लाल बलुआ पत्थर की दीवारें करीब 2.4 किलोमीटर लंबी हैं. 2007 में यूनेस्को विश्व धरोहर घोषित होने के बाद से इसे विशेष सुरक्षा मिली है. लेकिन अब वही लाल पत्थर काले धब्बों में बदलते दिख रहे हैं.

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यह काली परत खासकर जफर महल जैसे आंतरिक हिस्सों में और ट्रैफिक वाली दीवारों के पास मोटी हो चुकी है. 2018 में एएसआई ने करीब 2 मीटर मोटी गंदगी की परत हटाई थी, फिर भी प्रदूषण ने समस्या बढ़ा दी.

नई स्टडी का खुलासा

आईआईटी रुड़की, आईआईटी कानपुर, वेनिस की फोस्कारी यूनिवर्सिटी और एएसआई ने मिलकर ‘कैरेक्टराइजेशन ऑफ रेड सैंडस्टोन एंड ब्लैक क्रस्ट टू एनालाइज एयर पॉल्यूशन इम्पैक्ट्स ऑन अ कल्चरल हेरिटेज बिल्डिंग’ नाम से पहली वैज्ञानिक जांच की. शोधकर्ताओं ने किले की अलग-अलग जगहों से रेड सैंडस्टोन और ब्लैक क्रस्ट के सैंपल लिए और इन्हें प्रयोगशाला में टेस्ट किया. इन नतीजों को सीपीसीबी के 2021–2023 के एयर क्वालिटी डेटा से जोड़ा गया. 

रिपोर्ट बताती है कि प्रदूषक रसायन, भारी धातुएं और सल्फेट पत्थर की सतह को कमजोर कर रहे हैं. आश्रय वाले क्षेत्रों में परत 0.05 मिमी और ट्रैफिक वाले इलाकों में 0.5 मिमी तक मोटी हो चुकी है, जिससे किले की नक्काशी और स्थायित्व दोनों पर असर पड़ा है.

समाधान की राह और विशेषज्ञों की राय

रिपोर्ट में कहा गया है कि लाल किले को बचाने के लिए बहुस्तरीय रणनीति जरूरी है. इसमें आसपास ग्रीन बेल्ट विकसित करना, ट्रैफिक का दबाव कम करना, नियमित सफाई और प्रदूषण नियंत्रण मानकों का सख्ती से पालन करना शामिल है.

विशेषज्ञ मानते हैं कि प्रदूषण पर लगाम न लगी तो यह धरोहर आने वाले दशकों में गंभीर नुकसान झेल सकती है. UNESCO ने भी भारत सरकार और दिल्ली प्रशासन को सलाह दी है कि विश्व धरोहर के रूप में लाल किले की सुरक्षा तत्काल प्राथमिकता बने.

यह अध्ययन सिर्फ दिल्ली नहीं बल्कि देश के अन्य ऐतिहासिक स्थलों के लिए भी चेतावनी है कि अगर प्रदूषण पर नियंत्रण नहीं हुआ तो आने वाली पीढ़ियां इन धरोहरों को उसी रूप में नहीं देख पाएंगी.