Delhi Private School Fees: दिल्ली में निजी स्कूलों की मनमानी फीस वसूली पर एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं. इस बीच सुप्रीम कोर्ट के वकील और शिक्षा अधिकार कार्यकर्ता अशोक अग्रवाल ने एक बड़ा खुलासा किया है. उन्होंने बताया कि 2015 में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के कहने पर उन्होंने एक सख्त फीस रेगुलेशन एक्ट का ड्राफ्ट तैयार किया था, लेकिन बाद में केजरीवाल सरकार ने उस पर यू-टर्न ले लिया और एक अलग बिल लाकर निजी स्कूलों को और छूट दे दी.
 
वकील अशोक अग्रवाल से एबीपी न्यूज़ ने खास बातचीत की, जिसमें एक अहम खुलासा हुआ है. अशोक अग्रवाल ने बताया कि स्कूल फीस नियंत्रण का कानून अरविंद केजरीवाल के कहने पर उन्होंने तैयार तो किया था, लेकिन सरकार ने उस कानून पर U-टर्न लेते हुए निजी स्कूलों में लूट को बढ़ावा दिया.
 
अशोक अग्रवाल के बिल में क्या था?
 
अशोक अग्रवाल ने बताया कि उन्होंने जो ड्राफ्ट बिल बनाया था, उसमें कई सख्त प्रावधान थे...
  • कोई भी स्कूल अगर फीस बढ़ाना चाहता है तो उसे पहले एक कमेटी को प्रस्ताव देना होगा.
  • यह कमेटी एक हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में बनेगी.
  • कमेटी यह जांच करेगी कि फीस बढ़ोतरी जायज है या नहीं. अगर बढ़ोतरी का कारण नाजायज पाया गया तो वह प्रस्ताव रिजेक्ट कर दिया जाएगा.
  • अगर कमेटी बढ़ोतरी को मंजूरी देती है तो नई फीस तीन साल तक वैध रहेगी, यानी हर साल मनमानी बढ़ोतरी नहीं हो सकेगी.
  • नियमों का उल्लंघन करने वाले स्कूलों के लिए 6 महीने तक की जेल का प्रावधान भी था.
उस बिल का क्या हुआ?
 
अशोक अग्रवाल ने बताया कि उन्होंने जो ड्राफ्ट दिया था, उसे लागू नहीं किया गया. इसके बजाय केजरीवाल सरकार ने खुद का एक अलग बिल पास किया, जिसमें निजी स्कूलों को और ज्यादा छूट दे दी गई. उन्होंने कहा कि ये नया बिल मानो निजी स्कूलों को लूट का लाइसेंस देने जैसा था.
 
केंद्र सरकार ने नहीं दी मंजूरी
 
अशोक अग्रवाल ने बताया कि हमने इस बिल का विरोध किया, लेकिन केजरीवाल सरकार ने फिर भी इसे पास कर दिया. हालांकि केंद्र सरकार ने इस बिल को मंजूरी नहीं दी और यह लागू नहीं हो सका.
 
नई सरकार को सुझाव
 
वकील अशोक अग्रवाल ने अपील की है कि नई सरकार को एक मजबूत और पारदर्शी कानून बनाना चाहिए, जिससे कि स्कूलों की फीस को रेगुलेट किया जा सके और अभिभावकों को राहत मिले. उनका कहना है कि जब तक कानूनी ताकत नहीं होगी, तब तक निजी स्कूलों को रोक पाना मुश्किल है.
 
आज के समय में शिक्षा एक जरूरत नहीं, बल्कि एक व्यापार बनती जा रही है. अगर सरकारें मजबूत कानून नहीं बनाएंगी तो आम आदमी का बच्चा बेहतर शिक्षा से वंचित रह जाएगा. अशोक अग्रवाल का यह बयान हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम शिक्षा को वाकई सबके लिए सुलभ बना पा रहे हैं?