दिल्ली हाईकोर्ट ने आतंकी संगठन द रेस्सिटेंस फ्रंट के कथित सदस्य अर्सलान फिरोज अहेंगर को जमानत देने से इंकार कर दिया है. हाईकोर्ट के जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की बेंच ने कहा कि आरोपी का प्रभाव और सबूतों से छेड़छाड़ की संभावना ज्यादा है. इस कारण उसे राहत नहीं दी जा सकती.
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा यह नहीं कहा जा सकता कि आरोपी अर्सलान का मारे गए आतंकवादी मेहरान यासीन शल्ला से कोई संबंध नहीं था या उसने स्वयं आतंकवादी गतिविधियों में भाग नहीं लिया. जांच एंजेसी NIA ने लगाया गंभीर आरोप हाईकोर्ट में नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी ने मामले की सुनवाई के दौरान आरोप लगाया कि जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद आतंकी संगठन लश्कर ए तैयबा और उसकी शाखा टीआरएफ ने देश के विभिन्न हिस्सों में अल्पसंख्यकों ,सुरक्षा बलों, नेताओं और अन्य महत्वपूर्ण लोगों को निशाना बनाने की साजिश रची.
इन साजिशों के तहत अर्सलान अहेगर ने सोशल मीडिया पर आतंकवादियों की तस्वीरें शेयर कीं ,कट्टरपंथी विचार फैलाए और कई युवा लड़कों को TRF जैसे आतंकी संगठनों में शामिल होने के लिए उकसाया. जांच एजेंसी एनआईए ने बताया कि आरोपी ने अंशर गजवात उल हिंद और Shaikoo Naikoo जैसे सोशल मीडिया ग्रुप बनाए और फर्जी जीमेल आईडी का इस्तेमाल कर उग्र विचारों का प्रचार किया.
वह फेसबुक, टेलीग्राम, इंस्टाग्राम, ट्विटर और व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म पर डिजिटल रूप से एक्टिव था. जांच एजेंसी NIA ने यह भी बताया कि वह मारे गए आतंकवादी मेहरान यासीन शल्ला के काफी करीब था . जिसकी नवंबर 2021 में मुठभेड़ में मौत हो गई थी. कोर्ट ने कहा आरोप गम्भीर नही दी जा सकती जमानत
अदालत ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि आरोपी का काम UAPA की धारा 18 के अंतर्गत आता है क्योंकि उसने आतंकवादी गतिविधियों को प्रोत्साहित किया और देश में अशांति फैलाने की कोशिश की.
कोर्ट ने कहा रिकॉर्ड पर उपलब्ध तमाम सबूत दर्शाती है कि आरोपी द्वारा साझा की गईं सूचनाएं लोगों को आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के लिए उकसाने वाली थीं. उसने शल्ला की छवियों और वीडियो के माध्यम से आतंकवादी गतिविधियों का महिमामंडन किया और TRF की विचारधारा का प्रचार किया. कोर्ट ने बचाव पक्ष की दलीलो को मनाने से किया इंकार हाई कोर्ट में आरोपी के वकील ने दलील दी थी, कि जांच एजेंसी पास ऐसा कोई स्पष्ट सबूत नहीं है. जिससे TRF से उसका सीधा संबंध साबित हो और इसलिए UAPA की धाराएं उस पर लागू नहीं होतीं. लेकिन कोर्ट ने एनआईए की दलीलों को मानते हुए कहा कि आरोपी का सोशल मीडिया पर इस तरह का व्यवहार देश की सुरक्षा के लिए खतरा है.