दिल्ली हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है, जिसमें तिहाड़ जेल परिसर से आतंकवादी मोहम्मद अफजल गुरु और मोहम्मद मकबूल भट्ट की कब्रें हटाने का अनुरोध किया गया है. याचिका में बताया गया है कि मकबूल भट्ट को फरवरी 1984 में, जबकि अफजल गुरु को फरवरी 2013 में फांसी दी गई थी.
याचिका दायर करने वाले संगठन विश्व वैदिक सनातन संघ का दावा है कि जेल परिसर में इन कब्रों का मौजूद होना और उनका बनाए रखना अवैध और असंवैधानिक है.
'कट्टरपंथियों के लिए बन गया है तीर्थस्थल'
याचिका में कहा गया है कि इन कब्रों की मौजूदगी से तिहाड़ जेल कट्टरपंथियों के लिए एक तरह का तीर्थस्थल बन गया है. आरोप है कि कुछ लोग इन आतंकवादियों की पूजा करने या उनका महिमामंडन करने के लिए यहां इकट्ठा होते हैं.
इससे न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था पर असर पड़ता है, बल्कि यह भारत के संविधान के तहत धर्मनिरपेक्षता और कानून के शासन के सिद्धांतों के खिलाफ भी है. याचिका में यह भी कहा गया है कि इन कब्रों के कारण आतंकवाद को बढ़ावा मिल सकता है.
गुप्त स्थान पर स्थानांतरित हो शव
याचिका में अदालत से यह अनुरोध किया गया है कि यदि आवश्यक हो तो अफजल गुरु और मकबूल भट्ट के शवों को किसी सुरक्षित, नियंत्रित और गुप्त स्थान पर स्थानांतरित किया जाए.
याचिका में यह भी स्पष्ट किया गया है कि इसका उद्देश्य केवल शवों का स्थानांतरण नहीं है, बल्कि जेल परिसर के संभावित दुरुपयोग को रोकना, आतंकवादियों की पूजा-प्रार्थना से जुड़े गलत प्रभावों को समाप्त करना और राष्ट्रीय सुरक्षा व सार्वजनिक व्यवस्था को मजबूत बनाना भी है.
अब दिल्ली उच्च न्यायालय इस याचिका पर सुनवाई करेगा और तय करेगा कि क्या जेल प्रशासन को इन कब्रों को हटाने या स्थानांतरित करने का आदेश देना चाहिए. इस मामले में राष्ट्रीय सुरक्षा, कानून और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण होगा.