दिल्ली हाई कोर्ट ने साल 2002 में विदेशी नागरिकों के अपरहण की आतंकी साजिश के मामले में दोषी नासिर मोहम्मद सुदोजे उर्फ आफताब अहमद को किसी भी प्रकार की राहत देने से इनकार कर दिया. हाई कोर्ट ने नासिर मोहम्मद की समय पूर्व रिहाई की याचिका को खारिज करते हुए साफ कहा कि लंबी कैद एक अहम कारण हो सकता है, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा और समाज के व्यापक हित से ऊपर नहीं हो सकता है.

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दिल्ली हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी 

दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस संजीव नरूला ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा, ''चार विदेशी नागरिकों का अपहरण मात्र अपराध नहीं था बल्कि ये भारत की संप्रभुता और इंटरनेशनल छवि को चोट पहुंचाने वाली सोची समझी आतंकी साजिश थी. यह घटना भारत की घरेलू सुरक्षा पर हमला थी और वैश्विक स्तर पर देश की साख को धूमिल करने वाली थी. ऐसे में समाज और राष्ट्र की सुरक्षा सर्वोपरि है.'' 

निचली अदालत ने दी थी फांसी की सजा

नासिर मोहम्मद सुदोजे को साल 2002 में स्पेशल कोर्ट ने आईपीसी की धारा 121A, 122 और 124 A, टाडा एक्ट और विदेशी अधिनियम के तहत दोषी ठहराया था और मौत की सजा सुनाई गई थी. हालांकि साल 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने दोषी की सजा को उम्र कैद में बदल दिया था. अब तक वह 26 साल से जेल में बंद है. 

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दोषी ने सजा समीक्षा बोर्ड के फैसले को दी थी चुनौती

दिल्ली हाई कोर्ट में दोषी की तरफ से पेश वकील ने दलील दी थी कि दिल्ली सरकार की 2004 की नीति के मुताबिक 25 साल की अधिकतम सजा पूरी होने पर उसे रिहा किया जाना चाहिए. लेकिन दिल्ली पुलिस ने इस दलील का विरोध करते हुए कहा कि सुदोज़े के आतंकी उमर सईद शेख से गहरे संबंध रहे हैं. 

आतंकी उमर वही आतंकी है जिसकी रिहाई साल 1999 के आईसी 814 विमान अपहरण कांड में हुई थी. दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि दूसरा अपराध बेहद गंभीर श्रेणी का है. यह ना तो निजी दुश्मनी थी और ना ही लालच का मामला बल्कि भारत सरकार को झुकाने और आतंकी संगठन हरकतें उल अंसार की मांगों को मनवाने का षड्यंत्र था. हाईकोर्ट ने इसे कानून के शासन और राज्य की सुरक्षा पर सीधा हमला बताया. 

दिल्ली HC ने राहत देने से किया इनकार 

दिल्ली हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए साफ किया की उम्र कैद के दोषी को केवल नीति के तहत विचार का अधिकार है. लेकिन रिहाई का अधिकार नहीं है. लंबे कारावास के बावजूद इस मामले में राष्ट्रीय सुरक्षा और समाज की भलाई कहीं अधिक अहम है. लिहाजा दिल्ली हाई कोर्ट ने दोषी को किसी भी प्रकार से राहत देने से मना कर दिया.