Delhi: दिल्ली परिवहन निगम (DTC) ने सार्वजनिक परिवहन के लिए अपने बेड़े की बढ़ती मांग को देखते हुए नए शैक्षणिक सत्र से शहर के स्कूलों को बसें उपलब्ध कराना बंद कर दिया है. अधिकारियों ने बुधवार को यह जानकारी दी. परिवहन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि परिवहन विभाग और डीटीसी के वरिष्ठ अधिकारियों ने यात्रियों के लिए बसों की बढ़ती आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया. उन्होंने कहा कि स्कूलों को इस बाबत पहले से सूचित किया गया है. अधिकारी ने कहा, ‘‘डीटीसी बच्चों को ले जाने के लिए अपनी 350 से अधिक बसें स्कूलों को उपलब्ध करा रही है. अब बसें वापस ले ली गई हैं और दिव्यांग बच्चों की परिवहन सुविधा के मद्देनजर कुछ स्कूलों को केवल 8-10 बसें उपलब्ध कराई गई हैं.’’
अधिकारी ने कहा कि सरकार सार्वजनिक परिवहन के लिए पर्याप्त संख्या में बसें उपलब्ध कराने पर ध्यान केंद्रित कर रही है. इस बीच, स्कूलों और अभिभावकों ने डीटीसी के फैसले का विरोध किया है. निजी गैर-सहायता प्राप्त स्कूलों की कार्य समिति के महासचिव भारत अरोड़ा ने कहा कि इसके कई संबद्ध स्कूल छात्रों को लाने-ले जाने के लिए डीटीसी बसों पर निर्भर हैं. अरोड़ा ने कहा, ‘‘हमने दिल्ली सरकार से निजी स्कूलों के लिए डीटीसी बस सेवा को प्राथमिकता के आधार पर बहाल करने का अनुरोध किया है. यह एक चुनौतीपूर्ण स्थिति है क्योंकि स्कूलों के पास नई बसें खरीदने के लिए अतिरिक्त धन नहीं है.’’
दिल्ली अभिभावक संघ की अध्यक्ष अपराजिता गौतम ने कहा, ‘‘ यह दिल्ली सरकार का अच्छा कदम नहीं है. कोविड के दौरान कई परिवार आर्थिक दिक्कतों का सामना कर रहे हैं और ऐसे समय में डीटीसी द्वारा स्कूलों से बसें हटाने के फैसले से उन पर और अधिक आर्थिक बोझ पड़ेगा.’’ दिल्ली में वर्तमान में 7,200 से अधिक सार्वजनिक परिवहन बसें हैं, जिनमें डीटीसी संचालित 3,912 और ‘दिल्ली इंटीग्रेटेड मल्टी मॉडल ट्रांजिट सिस्टम’ (डीआईएमटीएस) संचालित 3,293 क्लस्टर बसें शामिल हैं. आधिकारिक अनुमान के अनुसार, शहर को अपनी सार्वजनिक परिवहन जरूरतों को पूरा करने के लिए 11,000 बसों की आवश्यकता है.
अधिकारियों ने कहा कि स्कूलों को पिछले साल सितंबर और फिर जनवरी में बसों की कमी के बारे में फिर से सूचित किया गया था और उनसे वैकल्पिक व्यवस्था करने का आग्रह किया गया. इस फैसले का स्कूलों और अभिभावकों ने विरोध किया था. स्कूलों ने डीटीसी के फैसले पर सवाल उठाते हुए इसे दिल्ली उच्च न्यायालय में भी चुनौती दी थी. अधिकारियों ने कहा कि सरकार ने स्कूलों को बसें उपलब्ध कराने में असमर्थता के पीछे सार्वजनिक परिवहन की आवश्यकता का हवाला दिया था.