Coal Scam Case: दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट 2017 के एक मामले में पूर्व राज्य मंत्री संतोष कुमार बगरोदिया, पूर्व राज्यसभा सांसद विजय दर्डा , उनके पुत्र देवेंद्र दर्डा और सीबीआई के पूर्व कानूनी सलाहकार के. सुधाकर को सभी आरोपों से बरी कर दिया. स्पेशल सीबीआई जज अरुण भारद्वाज ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष के पास आरोप साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं.
क्या है पूरा मामला ? सीबीआई का आरोप था कि उसके पूर्व निदेशक रंजीत सिन्हा (जिनका 2021 में निधन हो गया) और उनके सहयोगी के. सुधाकर ने बगरोदिया और दर्डा परिवार के साथ मिलकर साल 2012 के कोयला आवंटन घोटाले की जांच को प्रभावित करने की साजिश रची. इसके तहत आरोप था कि सिन्हा ने जांच फाइलों में हेराफेरी कर दर्डा और बगरोदिया को कानूनी कार्रवाई से बचाने का प्रयास किया.
राउज एवेन्यू कोर्ट ने क्या कहा? 1 संतोष बगरोदिया को 2017 में ही एएमआर आयरन एंड स्टील मामले में बरी कर दिया गया था. अदालत ने कहा कि इस के बाद सीबीआई का यह आरोप कि सिन्हा ने उन्हें बचाने की कोशिश की यह दलील ख़ारिज हो जाता है . कोर्ट ने कहा कि बगरोदिया शुरू से ही निर्दोष थे. अदालत ने सिर्फ़ उनकी निर्दोषता की पुष्टि की.
2. विजय दर्डा और देवेंद्र दर्डा पर अदालत ने कहा कि दर्डा परिवार की रंजीत सिन्हा से हुई मुलाकातों का जांच पर कोई असर नहीं पड़ा. यदि साजिश होती, तो सिन्हा उनके खिलाफ चार्जशीट ही दाखिल नहीं करते. जज ने कहा सिन्हा ने अपने पद का दुरुपयोग नहीं किया. देवेंद्र दर्डा के खिलाफ चार्जशीट दाखिल होना साबित करता है कि उन्हें कोई विशेष छूट नहीं मिली.
3. के. सुधाकर आरोप था कि उन्होंने जांच रिपोर्ट में बदलाव कर आरोपियों को बचाया. लेकिन अदालत ने कहा कि सुधाकर ने अपनी कानूनी राय बदलने के अलावा कोई गलत कदम नहीं उठाया. कोर्ट ने कहा सुधाकर ने आरोपियों से कोई गुप्त बातचीत नहीं की. सिन्हा ने उनकी राय को माना भी नहीं, इसलिए साजिश का आरोप निराधार है.
क्या है कोयला घोटाला का यह मामला? यह मामला 2012 के कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाले से जुड़ा है, जिसमें कंपनियों को बिना नीलामी के कोयला खदानें आवंटित करने में अनियमितताएं पाई गई थीं. सीबीआई का आरोप था कि एएमआर कंपनी को बांदर कोयला ब्लॉक आवंटित करते समय तत्कालीन प्रधानमंत्री कार्यालय के निर्देशों की अनदेखी की गई. कोर्ट में दाखिल चार्जशीट के मुताबिक पीएम मनमोहन सिंह के आदेश के बावजूद फाइल उन्हें नहीं भेजी गई और बगरोदिया ने गलत तरीके से बैठक कर आवंटन को मंजूरी दिलाई.
अदालत ने सभी आरोपियों के खिलाफ साजिश का कोई सबूत नहीं पाया और कहा कि सीबीआई जांचकर्ताओं की अनुपस्थिति में मुलाकातें या फोन कॉल्स आपराधिक साजिश साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं.