दिल्ली हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि किसी विवाहित अधिकारी का किसी दूसरी महिला से संबंध रखना और उसे अभद्र संदेश भेजना सेना के अधिकारी के लिए बेहद अनुचित आचरण है. दिल्ली हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी उस मामले में की जिसमें केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के एक सब इंस्पेक्टर पर महिला सहकर्मी को अशोभनीय संदेश भेजने और परेशान करने का आरोप था.

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अदालत ने कहा, जांच और पुनरीक्षण प्राधिकारी ने सही पाया कि याचिकाकर्ता एक वर्दीधारी बल का सदस्य होने के नाते पहले से शादीशुदा था और उसे किसी अन्य महिला के साथ संबंध रखने या अभद्र संदेश भेजने का कोई मतलब नहीं था.


सजा के खिलाफ की थी कोर्ट में अपील


महिला सहकर्मी को अशोभनीय संदेश भेजने और परेशान करने का आरोप के मामले में जांच के बाद जांच के बाद अधिकारी को दो साल के लिए वेतन कटौती की सजा दी गई थी. इसके खिलाफ उसने अदालत में अपील दायर की थी. लेकिन हाई कोर्ट ने यह कहते हुए उसकी याचिका खारिज कर दी कि उसे पहले ही बहुत हल्की सजा दी गई है. 


दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि इस दौरान न तो उसे कोई वेतन वृद्धि मिलेगी और यह कमी आगे की बढ़ोतरी पर भी असर डालेगी. जांच में सामने आया कि अधिकारी ने न केवल महिला कर्मचारी को अनुचित संदेश भेजे बल्कि एक बार उसके घर जाकर गलत इरादे से बात करने की भी कोशिश की थी. महिला की शिकायत पर विभागीय जांच बैठाई गई और समिति ने उसके खिलाफ आरोप साबित पाए.


दिल्ली हाई कोर्ट का अहम आदेश 


दिल्ली हाई कोर्ट में मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस सुभ्रमण्यम प्रसाद और जस्टिस विमल कुमार यादव की बेंच ने कहा कि वर्दीधारी बलों में सेवा करने वालों से उच्च स्तर के व्यव्हार की उम्मीद की जाती है और ऐसे व्यक्ति का यह काम अफसरों की गरिमा के खिलाफ है. 


दिल्ली हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान यह भी साफ किया कि जांच प्रक्रिया में प्राकृतिक न्याय के सभी सिद्धांतों का पालन किया गया और अधिकारी के बचाव में रखे गए अस्पष्ट और आधारहीन तर्कों को सही तौर पर खारिज किया गया. 


हाई कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जांच में नेचुरल जस्टिस के सभी नियमों का पालन किया गया था और अधिकारी के बचाव में दी गई बातें बिना ठोस आधार की थीं. अदालत ने कहा कि वर्दीधारी सेवाओं में अनुशासन सबसे अहम है और ऐसा आचरण किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं हो सकता.