Devendra Yadav News: दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष देवेन्द्र यादव ने दिल्ली में आयुष्मान भारत योजना के क्रियान्वयन को लेकर बीजेपी सरकार पर तीखा हमला बोला है. उन्होंने कहा कि इस योजना को लागू करने में सरकार ने करोड़ों रुपये प्रचार पर खर्च कर दिए, लेकिन जमीन पर इसकी हालत बेहद कमजोर है. यादव के अनुसार, 10 अप्रैल को शुरू की गई इस योजना से अब तक महज 93 अस्पताल ही जुड़े हैं.

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जबकि दिल्ली में सैकड़ों निजी अस्पताल मौजूद हैं और अधिकतर बड़े अस्पताल इससे दूरी बनाए हुए हैं. उन्होंने कहा कि योजना की शुरुआत के समय भव्य उद्घाटन समारोह आयोजित किया गया था, जिसमें केन्द्रीय मंत्री जेपी नड्डा और हर्ष मल्होत्रा को बुलाया गया. लेकिन योजना को जमीनी स्तर पर सफलतापूर्वक लागू करने में सरकार नाकाम रही.

3 करोड़ की आबादी वाली राजधानी में बने महज 3,63,524 आयुष्मान कार्ड

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देवेन्द्र यादव का आरोप है कि बीजेपी सरकार ने इस योजना को भी अपनी प्रचार नीति का हिस्सा बना दिया है. यादव ने स्पष्ट किया कि निजी अस्पतालों को सरकार से तय की गई इलाज और जांच की दरें स्वीकार नहीं हैं, क्योंकि ये दरें बाजार दरों की तुलना में केवल 30-40 प्रतिशत हैं. इसके चलते अस्पताल प्रबंधन योजना से जुड़ने से हिचक रहा है.

विशेषज्ञों के हवाले से उन्होंने बताया कि यही कारण है कि बड़े अस्पताल इस योजना से दूर हो रहे हैं. उन्होंने राजधानी की करीब 3 करोड़ आबादी की तुलना में केवल 3,63,524 आयुष्मान कार्ड बनने को सरकार की नाकामी करार देते हुए कहा कि, अब तक केवल 17,318 मरीजों को इस योजना के तहत अस्पताल में भर्ती किया गया, जो अपने आप में दर्शाता है कि योजना कितनी सीमित दायरे में रह गई है.

सरकारी अस्पतालों में इंफ्रास्ट्रक्चर की भारी कमी- देवेन्द्र यादव

यादव ने आरोप लगाया कि चाहे AAP की सरकार रही हो या अब बीजेपी की सरकार, दोनों ही गरीबों को सस्ती और समय पर स्वास्थ्य सेवाएं देने में असफल रही हैं. उन्होंने कहा कि अस्पतालों को पेमेंट मिलने में देरी हमेशा से बड़ा मुद्दा रहा है, और यही कारण है कि निजी क्षेत्र योजना में रुचि नहीं दिखा रहा.

उन्होंने चेताया कि अगर सरकार की यही नीति रही तो वह दिन दूर नहीं जब दिल्ली में आयुष्मान योजना औपचारिक तौर पर खत्म हो जाएगी. उन्होंने यह भी कहा कि दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में जनसंख्या के अनुपात में इंफ्रास्ट्रक्चर की भारी कमी है, ज्यादातर अस्पतालों में डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिकल स्टाफ, जांच मशीनें और जरूरी दवाइयों की कमी बनी रहती है.

यादव ने कहा कि, अगर सरकार वाकई इस योजना को सफल बनाना चाहती है, तो उसे पहले अपने 38 सरकारी अस्पतालों को दुरुस्त करना होगा और 11 केंद्रीय अस्पतालों में प्राथमिकता के आधार पर इलाज सुनिश्चित करना चाहिए, ताकि गरीबों को वास्तव में इस योजना का लाभ मिल सके.