दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी (AAP) में शामिल हुए मशहूर शिक्षक अवध ओझा अब पूरी तरह राजनीति से दूर हो चुके हैं. अपनी छोटी-सी राजनीतिक पारी के बाद ही उन्होंने संन्यास की घोषणा कर दी थी. अब एक पॉडकास्ट में उन्होंने इस फैसले को जीवन का सबसे अच्छा निर्णय बताया है. उनका कहना है कि राजनीति छोड़ने के बाद वह पहले से ज्यादा खुश हैं क्योंकि अब मन की बात कहने की पूरी आजादी है.
खुलकर नहीं रख पा रहे थे अपनी बात
अवध ओझा ने साफ कहा कि राजनीति में रहते हुए उनके लिए सबसे बड़ी मुश्किल यह थी कि वह खुलकर अपनी बात नहीं कह पा रहे थे. उन्होंने बताया कि पार्टी लाइन की वजह से हर बयान सोच-समझकर देना पड़ता था, जबकि वह स्वभाव से बेहद साफगोई रखने वाले व्यक्ति हैं.
उन्होंने कहा, "पहली बात तो बोलना बंद हो गया था. पार्टी लाइन के बाहर नहीं बोल सकते. हम बोलेंगे नहीं तो मर जाएंगे. अब मैं इतना अच्छा महसूस कर रहा हूं. आज मुझे यह नहीं है कि कोई फोन करके कहेगा कि क्या बोलना है. अब तो वही बोलेंगे जो हमारा मन कहेगा."
अवध ओझा का इशारा उस इंटरव्यू की ओर भी था, जिसमें पार्टी कार्यकर्ताओं ने बीच में दखल देकर बातचीत को रुकवा दिया था. उस समय उन्होंने मजबूरी में कहा था कि पार्टी लाइन वही तय करेगी और वह उसी के मुताबिक बोलेंगे.
'राजनीति का रास्ता सही नहीं'
अवध ओझा ने बताया कि चुनाव लड़ने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि राजनीति उनके लिए सही रास्ता नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि वह किसी भी दूसरी पार्टी, खासकर भाजपा में शामिल होने की चर्चा को पूरी तरह खारिज करते हैं. उन्होंने कहा कि भैया मैं राजनीति ही नहीं करूंगा. दूर रहूंगा, बहुत खुश हूं.
ओझा ने कहा कि अब वह कोचिंग और पढ़ाने के काम में लौट आए हैं, और यह वही दुनिया है जिसमें वह खुद को सबसे सहज महसूस करते हैं.
उन्होंने उस इंटरव्यू का जिक्र करते हुए कहा, 'अच्छा बताओ, वह इंटरव्यू कितना अच्छा चल रहा था. भगवान बचाए राजनीति से दादा.' उन्होंने बताया कि उनके कई विचार ऐसे थे जिन पर वह खुलकर बोलना चाहते थे, लेकिन राजनीतिक दबाव के चलते ऐसा नहीं कर पाए.
AAP में शामिल होकर पटपड़गंज से लड़ा था चुनाव
अवध ओझा दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया की छोड़ी हुई सीट पटपड़गंज से आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े थे. लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. चुनाव के बाद से ही वह पार्टी की गतिविधियों से दूर दिखने लगे थे और फिर उन्होंने पिछले दिनों राजनीति से संन्यास की घोषणा कर दी.
ओझा ने बताया कि चुनाव लड़ना एक सपना था, इसी उत्कंठा में वह राजनीति में आए थे. लेकिन अब वह मानते हैं कि राजनीति उनके स्वभाव के अनुरूप नहीं है, और अपने पुराने पेशे शिक्षण में लौटकर वह ज्यादा खुश हैं.