दिल्ली विधानसभा में बने कथित फांसीघर के नवीनीकरण पर खर्च को लेकर मचे विवाद के बीच पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को विधानसभा की विशेषाधिकार समिति ने तलब किया है. इस समन के खिलाफ दोनों नेताओं ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की जिसे विधानसभा सचिवालय ने भ्रमित करने वाली करार दिया है. फिलहाल दिल्ली हाई कोर्ट 24 नवंबर को मामले की अगली सुनवाई करेगा.

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वकील की दलील: समिति को कार्रवाई का अधिकार नहीं

दिल्ली हाई कोर्ट में आप की ओर से पेश वरिष्ठ वकील शादन फरासत ने दलील दी कि फांसीघर का मामला विधानसभा के विधायी कामकाज से जुड़ा नहीं है इसलिए विशेषाधिकार समिति को इस पर कार्रवाई का अधिकार नहीं है. उन्होंने कहा फांसीघर विधानसभा के जरूरी कामकाज का हिस्सा नहीं है. यह सिर्फ दबाव डालने की कोशिश है. इस पर जज ने सवाल किया कि फांसीघर विधानसभा परिसर में ही है, तो क्या सदन को अपने परिसर पर नियंत्रण नहीं है.

विधानसभा वकील ने किया विरोध

दिल्ली हाई कोर्ट में विधानसभा की ओर से पेश वरिष्ठ वकील जयंत मेहता ने दलील देते हुए कहा कि यह याचिका जल्दबाजी में दायर की गई है और सिर्फ तथ्यों की जांच के लिए समिति को जिम्मेदारी दी गई है. उन्होंने बताया कि चार लोगों को नोटिस भेजा गया था पर अदालत केवल AAP नेताओं की याचिका पर सुनवाई कर रही है.

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मामला और पृष्ठभूमि

यह मामला 22 अगस्त 2022 का है जब केजरीवाल और सिसोदिया ने विधानसभा परिसर में फांसी घर का उद्घाटन किया था. यह संरचना स्वतंत्रता संग्राम और शहीदों के बलिदान का प्रतीकात्मक स्मारक बताई गई थी. बीजेपी विधायक प्रद्युम्न सिंह राजपूत की अध्यक्षता वाली विशेषाधिकार समिति 13 नवंबर को बैठक कर फांसीघर की असलियत की जांच करेगी. जिसके बाद विशेषाधिकार समिति ने 9 सितंबर 2025 को दोनों नेताओं को नोटिस जारी किया और 4 नवंबर को पेश होने के लिए कहा.

दरअसल सितंबर में विधानसभा सत्र के दौरान स्पीकर विजेंद्र गुप्ता ने आरोप लगाया था कि आम आदमी पार्टी सरकार ने ब्रिटिश काल के फांसीघर को जेल जैसी थीम में बदलने के लिए करीब एक करोड़ रुपये खर्च किए. इस जगह पर स्वतंत्रता सेनानियों की मूर्तियां, लोहे की सलाखें और प्रतीकात्मक फंदे लगाए गए हैं.