दिल्ली में सर्दी के मौसम से पहले एक स्टडी में गंभीर और चिंता में डालने वाली बात सामने आई है. धुंध के एक और दौर की आशंका के बीच, घरों के अंदर की हवा में फंगल कण डब्ल्यूएचओ की सुरक्षा सीमा से 12 गुना अधिक मिले हैं, जिससे त्वचा की एलर्जी, श्वसन संबंधी समस्याएं पैदा हो रही हैं. एक स्टडी में यह पता चला है.

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दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्यवती कॉलेज, जामिया मिल्लिया इस्लामिया और अमेरिका की ‘साउथ डकोटा स्टेट यूनिवर्सिटी’ द्वारा किए गए स्टडी से यह भी पता चला है कि बैक्टीरिया का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की सुरक्षा सीमा से 10 गुना अधिक दर्ज किया गया.

‘फ्रंटियर्स इन पब्लिक हेल्थ, 2025’ में प्रकाशित स्टडी में कहा गया है कि लंबे समय तक उच्च फफूंद और जीवाणु सांद्रता के संपर्क में रहने से दिल्ली के कई हिस्सों में घर के अंदर की हवा लगभग उतनी ही हानिकारक हो जाती है, जितनी बाहर की धुंध.

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अधिकांश फंगल कण 2.5 माइक्रोन से भी छोटे

स्टडी में यह भी पाया गया कि अधिकांश फंगल कण 2.5 माइक्रोन से भी छोटे थे, जो फेफड़ों में गहराई तक प्रवेश कर श्वसन तंत्र को स्थायी क्षति पहुंचा सकते थे. इसमें एक स्पष्ट मौसमी पैटर्न देखा गया. सर्दियों से फफूंद का स्तर लगातार बढ़ता गया और सितंबर से नवंबर के बीच, यानी दिल्ली में धुंध छाने से ठीक पहले के मौसम में यह लगभग 6,050 सीएफयू प्रति घन मीटर के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया.

सर्दियों से गर्मियों तक बैक्टीरिया का स्तर बढ़ता गया

स्टडी के अनुसार, सर्दियों से गर्मियों तक बैक्टीरिया का स्तर बढ़ता गया, जो अगस्त में चरम पर था, और फिर सर्दियों में कम होता गया. लगभग 33 फीसदी निवासियों ने बार-बार सिरदर्द की, 23 फीसदी ने आंखों में जलन की शिकायत की, 22 फीसदी ने लगातार खांसी और सांस लेने में तकलीफ का अनुभव किया, और 18 फीसदी छींक और एलर्जिक राइनाइटिस (जिसे हे फीवर भी कहा जाता है) से पीड़ित थे. शोधकर्ताओं ने बताया कि लगभग 15 फीसदी ने त्वचा में जलन और खुजली की शिकायत की.

महिलाओं में त्वचा में जलन की दर अधिक पाई गई

शोधकर्ताओं ने कहा, 'बच्चे और युवा सबसे ज़्यादा असुरक्षित समूह बनकर उभरे हैं. स्टडी में पाया गया कि 12 साल से कम उम्र के लगभग 28 फीसदी बच्चों और 18 से 30 वर्ष की आयु के 25 फीसदी युवा वयस्कों ने सांस लेने में तकलीफ़, खांसी या एलर्जी से संबंधित लक्षणों की शिकायत की.' उन्होंने बताया कि महिलाओं में आंखों और त्वचा में जलन की दर भी अधिक पाई गई, जो त्वचा और आंखों से संबंधित सभी शिकायतों का लगभग 60 फीसदी है. ऐसा संभवतः इसलिए है क्योंकि वे अधिक समय घर के अंदर ही रहती हैं.

स्टडी ने निष्कर्ष निकाला कि घर के अंदर का प्रदूषण, विशेष रूप से फंगल बायोएरोसोल से उत्पन्न प्रदूषण, दिल्ली में जारी वायु गुणवत्ता संकट में एक 'अदृश्य लेकिन बड़े स्वास्थ्य जोखिम' को दिखाता है.