Narayanpur : 'आत्माओं का घर' सुनने में जरूर अटपटा सा लगे, लेकिन यह सच है. छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के अबूझमाड़ में आत्माओं का घर होता है, जहां यहां के ग्रामीण इन आत्माओं की पूजा करते हैं, साथ ही अपने परिवार की खुशहाली के लिए उनसे दुआ मांगते हैं. खास बात यह है कि आत्मा के घर में महिलाओं और युवतियों का जाना निषेध होता है. आदिवासी के घर में शादी हो या कोई तीज, त्यौहार, इन आत्माओं का आशीर्वाद लेना मुख्य होता है, दरअसल यहां के आदिवासी ग्रामीण आत्मा का घर बनाते हैं और यहां एक कमरे में मृतहांड यानी मिट्टी की बनी हुंडियों को रखते हैं, जिसमें आत्मा का बसेरा होता है, जिसे यहां के ग्रामीण 'आना कुड़मा' कहते हैं, जिसका मतलब आत्मा का घर होता है. दरअसल बस्तर में आदिवासी घरों में मृत परिजनों की आत्मा को भी घर देने की परंपरा है, सैकड़ों साल पुरानी इस परंपरा को आज भी यहां के आदिवासियों ने जीवित रखा है.

हंडियों के अंदर होती है पूर्वजों की आत्मा

बस्तर के विशेष जानकार शिवकुमार पांडे बताते हैं कि खासकर बस्तर संभाग के नारायणपुर के अबूझमाड़ और बीजापुर जिले के घने जंगलों के बीच अंदरूनी गांवों में इस तरह के आत्माओं का घर देखने को मिलता है, यहां रहने वाले आदिवासी ग्रामीण अपने परिवार में मृत लोगों के लिए आत्मा का घर बनाते हैं, और यहां पूजा पाठ भी करते हैं. खासकर शादी-ब्याह, तीज- त्यौहार और नयी फसल उगने के समय आत्मा के घर में विशेष पूजा पाठ की जाती है, ऐसी मान्यता है कि इस आत्मा के घर में उनके पूर्वज बसते हैं, जिनके मरने के बाद शरीर तो मिट जाती है लेकिन उनकी आत्मा इसी घर में निवास करती है. ग्रामीणों की इस आत्मा के घर के प्रति गहरी आस्था जुड़ी हुई है, हालांकि अपने नियम के पक्के आदिवासी इस आत्मा के घर में महिलाओं और युवतियों और बच्चों का प्रवेश निषेध किए हुए हैं. इसके अलावा कभी रात के वक्त इस आत्मा के घर में कोई प्रवेश नहीं करता है. आत्माओं के घर के रखरखाव को लेकर आदिवासी विशेष सावधानी बरतते हैं. ऐसी मान्यता है कि हंडियों के भीतर पूर्वजों की आत्माओं को रखा जाता है.

आदिवासी साल भर करते हैं आत्मा के घर में पूजा

आदिवासी नेता और इस परंपरा के जानकार देवलाल दुग्गा बताते हैं कि खेतों में नई फसल आने पर सबसे पहले आत्मा के घर में ही चढ़ाया जाता है, जिसे अपने पूर्वजों का घर कहा जाता है, यहां के आदिवासी मानते हैं कि उनके पूर्वज माता- पिता, दादा, परदादा का जीव उनके साथ साक्षात उनके साथ मौजूद रहता है, इसलिए साल भर उनकी पूजा पाठ की जाती है. ऐसी भी मान्यता है कि अगर नई फसल आने पर 'आना कुड़मा' (आत्मा का घर) में चढ़ावा अर्पित नहीं किया जाता है तो उस घर और गांव में विपत्ति आ सकती है,और इस विपदा से बचने के लिए दोषी ग्रामीण अपने गलती स्वीकार करके पूजा पाठ कर क्षमा मांगता है. हिंदू मान्यताओं के मुताबिक आदिवासी पीतर या पितृपक्ष नहीं मानते हैं, लेकिन अपने पूर्वजों की पूजा पूरे रीति रिवाज से करते हैं और उनका आशीर्वाद आदिवासियों के लिए सबसे प्रमुख होता है. इसलिए इन आत्माओं के लिए घर बनाकर उनकी पूजा पाठ कर उन्हें विशेष दर्जा दिया जाता है.

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