Chhattisgarh News: विश्व पृथ्वी दिवस हर साल 22 अप्रैल को मनाया जाता है. आज हम आपको छत्तीसगढ़ के वन प्रेमी की कहानी बताने जा रहे हैं. बस्तर में कहावत है 'पानी बिना मछली और जंगल बिना आदिवासी की कल्पना नहीं की जा सकती.'


बुजुर्ग आदिवासी ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अनोखा कारनामा अंजाम दिया है. दामोदर कश्यप ने ग्रामीणों के सहयोग से 400 एकड़ जमीन को विशाल जंगल में बदल दिया. बस्तर के संघ करमरी गांव में रहने वाले दामोदर कश्यप बताते हैं, "400 एकड़ जमीन को जंगल में बदलना आसान नहीं था. दृढ़ इच्छाशक्ति की बदौलत काम को अंजाम दिया."


पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अनोखा काम


दामोदर 1970 में 12वीं की पढ़ाई के बाद गांव पहुंचे. उन्होंने देखा कि गांव के पीछे की हरी भरी जमीन पर एक भी पेड़ नहीं है. वन विभाग ने बहुत सारे पेड़ काट दिए थे. बाकि बचे पेड़ों को गांव वालों ने साफ कर दिया था. उन्होंने पेड़ों को बचाने और ग्रामीणों को जागरूक करने का फैसला किया. दामोदर बताते हैं कि काम आसान नहीं था. शुरुआत में ग्रामीणों का विरोध झेलना पड़ा. विरोध के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी. 1977 में सरपंच बनने के बाद दामोदर मिशन से पीछे नहीं हटे. उन्होंने मौसम के अनुकूल पौधों को लगाने का काम शुरू किया. पौधे लगाने से ज्यादा बड़ी चुनौती संरक्षण की थी. इसलिए उन्होंने ग्रामीणों के लिए ठेंगा पाली का नियम बनाया.


बुजुर्ग आदिवासी ने जंगल में बदली जमीन


ठेंगा मतलब (डंडा) और पाली मतलब (पारी) नियम के तहत गांव के तीन सदस्य रोजाना जंगलों की सुरक्षा करने लगे. डंडे को कपड़े से लपेट कर देव का रूप दिया गया. जंगल की सुरक्षा में नहीं जाने वाले ग्रामीणों पर अर्थदंड भी लगाया जाने लगा. जंगलों को नुकसान पर पंचायत अर्थदंड देती. दामोदर के लगातार प्रयास से ग्रामीणों का भी हौसला बढ़ने लगा. बुलंद हौसले की बदौलत गांव के आसपास 400 एकड़ में घना जंगल तैयार हो गया. उन्होंने बताया कि जंगल को देखने वन विभाग के अधिकारी भी आते हैं. खास बात है कि आज तक उनके जंगलों में कभी आग नहीं लगी है. जंगल और पर्यावरण संरक्षण के प्रति समर्पित होने के बावजूद दामोदर कश्यप को पहचान नहीं मिल पाई.




हालांकि छत्तीसगढ़ की 9वीं के सामाजिक विज्ञान की किताब में दामोदर पर आर्टिकल है. दामोदर आज देश भर में पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्थाओं से चर्चा करते हैं. चर्चा का केंद्र बिंदु पेड़ों को बचाने के उपायों पर होता है. प्रकृति के लिए समर्पण भाव को देखते हुए स्विट्ज़रलैंड और फिलीपींस में दामोदर को सम्मानित किया जा चुका है. उन्होंने तेजी से काटे जा रहे जंगलों की कटाई पर चिंता जताई है. दामोदर कहते हैं कि जंगल के बिना जिंदगी की कल्पना नहीं की जा सकती. जंगल बचेंगे तो हम भी बचेंगे. इसलिए लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक होना जरूरी है.


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