Surguja News: 21वीं सदी के इस वैज्ञानिक युग में भी समाज में अंधविश्वास इस कदर कायम है कि लोग इसके चक्कर में पड़कर अपनी जान गंवा रहे है. ग्रामीण इलाकों में आज भी किसी के ऊपर गाज गिरने पर घायल व्यक्ति को पहले उपचार के लिए अस्पताल न ले जाकर गोबर में गाड़ दिया जाता है. ग्रामीणों इलाकों में ऐसी मान्यता है कि गाज आकाशीय बिजली से पीड़ित व्यक्ति को गोबर में गाड़ने से उसका प्रभाव कम हो जाता है. हालांकि, ऐसे ही तौर तरीके अपनाने की वजह से कई लोगों की जानें जा चुकी है.
इसके अलावा बारिश के मौसम में सर्पदंश की घटनाएं बढ़ जाती है. ऐसे में गांव इलाकों में रहने वाले लोग सांप काटे व्यक्ति को जागरूकता के अभाव में बैगा, गुनिया के पास झाड़-फूंक करवाने के लिए ले जाते है. इसको लेकर भी ग्रामीण परिवेश में मान्यता है कि सर्पदंश पीड़ित को बैगा के पास ले जाने पर झाड़-फूंक से सांप का जहर निकल जाता है. हालांकि, ऐसे मामलों में कम ही लोगों की जान बच पाती है.
झाड़-फूंक के कारण गवानी पड़ी जानछत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में भी सांप काटने के बाद उसका जहर उतारने के लिए झाड़-फूंक का सहारा लेने का मामला सामने आया है. जिला मुख्यालय अंबिकापुर शहर के लगे ग्राम रनपुर कला में सर्पदंश पीड़ित को अस्पताल ले जाने के बजाए परिजन घर में ही उसका झाड़-फूंक कराते रहे. करीब पांच घंटे झाड़-फूंक कराने के बाद जब उसकी तबियत में सुधार नहीं हुआ और वह अचेत होने लगी. तब परिजन उसे मेडिकल कॉलेज अस्पताल, अम्बिकापुर लेकर पहुंचे. जहां इलाज के दौरान उसने दम तोड़ दिया. पुलिस ने बताया कि रनपुरकला निवासी मानकुंवर बाई पति रामबिलास जाति गोंड (46 वर्ष) 20 जुलाई की रात खाना खाने के बाद जमीन पर बिस्तर लगा सोई थी. देर रात करीब ढाई बजे उसके पैर में कुछ काटने का एहसास हुआ, तो वह चौंक कर उठ गई. शोर मचाए जाने पर परिजन जब मौके पर पहुंचे तो देखा कि उसके पैर के समीप जहरीला सांप है. परिजनों ने सांप को एक जाली में ढक दिया और गांव के बैगा को लेने चले गए.
स्थिति में सुधार नहीं होने पर ले गए अस्पतालपुलिस ने बताया कि रात करीब ढाई बजे महिला सर्पदंश की शिकार हुई थी. परिजन गांव के एक बैगा को लेकर घर आए थे और करीब पांच घंटे तक महिला का झाड़फूंक कराते रहे. सुबह सात बजे जब महिला की स्थिति में सुधार नहीं हुआ और वह अचेत होने लगी, तब उसे मेडिकल कॉलेज अस्पताल लेकर पहुंचे. जहां उपचार के दौरान उसने दम तोड़ दिया. इधर डॉक्टरों ने बताया कि अगर महिला को सही समय पर उपचार मिलता तो संभवत उसकी जान बचाई जा सकती थी. पांच घंटे विलंब से आने के कारण महिला के शरीर में जहर पूरी तरह से फैल चुका था. जिससे वह कोमा में चली गई थी और उपचार के दौरान उसने दम तोड़ दिया.
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