Chhattisgarh News: कहते हैं किसी कलाकार द्वारा बनाई कलाकृतियां उसके व्यक्तित्व का आइना होती हैं. अतः उसके द्वारा सृजित कला संसार को, उस कलाकार के जीवन को जाने बिना समझना दुष्कर है. यह परिस्थितियां ही होती हैं जो कलाकार की सोच और उसकी संवेदनाओं को जागातीं हैं, उन्हें व्यक्त करने हेतु उकसाती हैं. जीवन के विभिन्न आयामों में कलाकार की मनः स्थिति भी भिन्न–भिन्न होती है. जिसका प्रभाव उसकी कला में परिलक्षित होता रहता है. 

भित्ति कला में दीवार पर उकेरी जाती हैं आकृतियां

बता दें कि छत्तीसगढ़ के सरगुजा की सोनाबाई की कला को भी उनकी जीवन परिस्थियों से अलग करके नहीं समझा जा सकता. सोनाबाई का जन्म सरगुजा जिले के गणेशपुर गांव (कैनापारा) में एक रजवार कृषक परिवार में हुआ था. रजवार समुदाय एक गैर आदिवासी कृषक समुदाय है. जो आर्थिक रूप से विपिन्न नहीं होते, उनके पास अच्छी–खासी खेती होती है और अपेक्षाकृत बड़े घर होते हैं. रजवार स्त्रियां घरों को बहुत साफ़–सुथरा रखती हैं तथा उन पर छुही मिट्टी (सफ़ेद मिट्टी) से लिपाई करती हैं.

रजवार लिपाई विशिष्ट प्रकार से की जाती है. सूती कपड़े के टुकड़े को छुही मिट्टी के घोल में डुबाकर उससे दीवार पर पोंछा लगाया जाता है. फिर उस पर हाथ की उंगलियों से धारियां खींची जाती हैं. विभिन्न प्रकार से धारियां खींचकर दीवार पर पैटर्न बनाए जाते हैं. लिपाई से पहले गोबर-मिट्टी के गारे से दीवार पर कुछ आकृतियां उकेरी जाती हैं. यह वह गृहसज्जा है जो लगभग प्रत्येक रजवार कन्या करना जानती है. सोनाबाई भी इसमें दक्ष थी. उनके पास भित्ति अलंकरण द्वारा गृह सज्जा की एक पारम्परिक पृष्ठभूमि थी, पर इससे आगे की यात्रा उन्होंने स्वयं की प्रतिभा और लगन के बल पर की थी.

Bijapur Naxal Attack: नक्सली हमले में घायल जवान ने बताई मुठभेड़ की आपबीती, जानें- कैसे शहीद हुए असिस्टेंट कमांडेंट

1980 के दशक में सरकार की खोज में सामने आया सोना बाई का टैलेंट

भित्ति कला में देशभर में ख्याति प्राप्त कर चुकी सोना बाई का जीवन सरगुजा के लखनपुर विकासखण्ड अंतर्गत पुटपुटरा नामक गांव में बीता. जहां से उन्होंने इस कला की शुरुआत की थी. सोना बाई का विवाह मात्र 15 वर्ष की उम्र में हो गया था. ये स्वभाव से ही अंतरमुखी थी और ज्यादातर समय घर में ही बिताती थी. सन 1953 में सोना बाई ने बेटे को जन्म दिया. जिनका नाम दरोगा राम है. दरोगा राम जब बड़े हुए तो उसके खेलने के लिए ये शुरू में मिटटी के खिलोने बनाने लगी. क्योंकि घर के पुरुष सदस्य खेती बाड़ी करने के लिए के लिए खेतों में चला जाया करते थे. तो घर में अकेली हो जाने के कारण वो अपने इस एकांत समय में बेटे के लिए मिटटी के खिलौने बनाने लगी और काफी दिनों तक यही क्रम चलता रहा. 

सन 1980 के दशक में जब मध्य प्रदेश सरकार द्वारा भोपाल में भारत भवन का निर्माण कराया गया, तो उस समय सरकार ने कार्यक्रम चालू किया की राज्य में जितने भी हस्तशिल्प के कारीगर या कलाकार हैं. उन्हें खोज कर राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय स्तर पर लाने का प्रयास किया जाये. इसी क्रम में सन 1982 में एक टीम छत्तीसगढ़ के दौरे पर आई. जिसकी अगुआई मुश्ताक खान के रहे थे. जब वो रायगढ़ और बिलासपुर होते हुए सरगुजा के दौरे पर पहुंचे, तब मेंड्राकला के एक कुम्हार ने उन्हें बताया की आप लोग को पुटपुटरा गांव ज़रूर जाना चाहिए. वहां सोना बाई नाम की एक महिला है, जो भित्ति कला चित्र बहुत वर्षो से बना रही है. उसके बताये हुए रास्ते के आधार पर जब टीम सोनाबाई के घर पहुंची. तो उनके कला को देखकर कर सभी आश्चर्यचकित रह गई.

अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया कर चुकीं थीं दौरा

भारत भवन की टीम के खोज के बाद सोनाबाई को पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नहीं पड़ी. वो आगे जाकर इतिहास के पन्नो में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो गई. इनकी इस कला का प्रदर्शनी भोपाल के भारत भवन में हुआ. जहां इन्हें राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई. जिसके लिए उस समय के तात्कालिक राष्ट्रपति दिवंगत श्री ज्ञानी जेल सिंह के कर कमलों द्वारा सन 1983 राष्ट्रपति सम्मान से नवाजा गया. फिर मध्य प्रदेश सरकार ने इन्हें सन 1986 में तुलसी सम्मान देकर इनके प्रतिभा को सम्मानित किया. उसी वर्ष सोना बाई को अमेरिका के प्रतिष्ठित संस्थान सैन डिएगो के मिन्गेई इंटरनेशनल म्यूजियम में वर्कशॉप के लिए आमंत्रण मिला. जहां ये 42 दिनों तक रहकर अपने कला का प्रदर्शन किए और बहुत सारे छात्रों को इस कला के बारे में प्रशिक्षण दिए. अमेरिका से वापस आने के बाद सोना बाई ने मध्य प्रदेश सरकार द्वारा शुरू किये गए कार्यक्रम के तहत 20 छात्रों को भित्ति कला का ट्रेनिंग देना शुरू किया. जो इनकी कला को आगे बढ़ा सकें. 

सन 1998 के दौरान ये Austraila के Brisbane गई. जहां वर्कशॉप लेकर छात्रों को इस कला के बारे में बताई. 2002 में भारत के तात्कालिक राष्ट्रपति दिवंगत ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वारा सोना बाई को शिल्प गुरु के ख़िताब से नवाजा गया. तथा छत्तीसगढ़ सरकार ने सन 2004 में छत्तीसगढ़ राज्य सम्मान से सम्मानित किया.

अमेरिका के लेखक ने लिखा सोनाबाई पर किताब

सोनाबाई का 2007 में हार्ट स्ट्रोक से निधन हुआ. बता दें की सोना बाई के कार्यो और कला के सम्मान में छत्तीसगढ़ सरकार ने 2015 में एक संग्राहलय का निर्माण कराया. परन्तु अभी तक इसका  उद्घाटन नहीं हुआ है. जब इनके पुत्र दरोगा राम से बातचीत की गयी, तो उन्होंने सरकार से मदद की गुहार लगाई कि इस संग्रहालय को जल्दी से शुरू करें. ताकि इनके कला के बारे में ज्यादा से ज़्यादा लोग जान सकें.

वहीं 2009 में अमेरिका के लेखक स्टेफेन पि. हुय्लेर ने सोना बाई से सम्बंधित एक पुस्तक लिखा है, जिसका नाम है "Sonabai: Another Way Of Seeing". इस पुस्तक में इन्होंने सोना बाई के सभी अनछुए पहलुओं को उल्लेखित किया है. सोना बाई कहने को तो अशिक्षित महिला थी. परन्तु इनके कला की प्रसिद्धि आज पूरे विश्व में है. इनसे सीख कर इनके इस कला विरासत को इनके पुत्र दरोगा राम और बहु राजेन बाई इस कला को आगे बढ़ा रहे है. सोना बाई के गांव में रहने वाली पार्वती बाई भी भित्ति कला चित्र को आगे बढ़ाने का कार्य कर रही है. जिसे लोकल भाषा में सरगुजिया कला के नाम से भी जाना जाता है.

Chhattisgarh News: इनामी नक्सली जनमिलिशिया कमांडर सोमारू चढ़ा पुलिस के हत्थे, इन बड़ी वारदातों में था शामिल