Bastar News: भारत देश में लाल आतंक का गढ़ है, जिसे लाल गलियारा या रेड कॉरिडोर (Red Corridor) कहा जाता है, इस रेड कॉरिडोर से सबसे ज्यादा प्रभावित मध्य पूर्वी और दक्षिणी भारत के क्षेत्र हैं. वर्तमान में लगभग 9 राज्यों के 60 जिले लाल आतंक से प्रभावित हैं. दरअसल इन प्रभावित जिलों को रेड कॉरिडोर, लाल गलियारा (Red Corridor) या लाल आतंक का गढ़ इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये क्षेत्र माओवाद (Maoism) से प्रभावित है, इन क्षेत्रों को नक्सलियों का गढ़ कहा जाता है. पिछले 5 दशकों में इन क्षेत्रों में ऐसी भयंकर घटनाएं हुई हैं जिनमें हजारों लोगों की जान चली गई है. इन घटनाओं में खासकर बड़ी संख्या में अर्ध सैनिक बलों ने अपनी जान की आहूति दी है. 


60 से 30 जिलों में सिमटा नक्सलवाद
हालांकि पिछले 10 सालों की तुलना में नक्सलवाद काफी बैकफुट पर है और धीरे-धीरे सिमटते हुए साल 2021 में 60 जिलों की जगह 30 जिलों में ही रह गया है ये जिले बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के अंतर्गत आते हैं. ये सभी जिले आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र हैं और जंगल व पहाड़ियों से घिरे हुए हैं. ऐसे में नक्सली इन जगहों को सेफ जोन समझकर अपना  ठिकाना बनाते हैं. हालांकि तेलंगाना में अब नक्सलवाद काफी बैकफुट पर है लेकिन छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, ओडिशा, पश्चिम बंगाल के साथ ही बिहार में भी नक्सलियों की दहशत अभी भी कायम है और इन इलाक़ों में नक्सली सक्रिय होकर एक के बाद एक बड़ी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं.


देश के 60 जिले हैं प्रभावित
देश के 9 राज्य उड़ीसा, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और मध्य दक्षिणी और पूर्वी भागों से भारत के क्षेत्रों को शामिल करने वाले मध्य भारत के बीच में इस क्षेत्र को रेड कॉरिडोर माना जाता है, ये पूरा इलाका नक्सलियों के गढ़ के नाम से मशहूर हैं, इन इलाकों में अपने पैंठ जमाए बैठे नक्सलियों का विरोध पिछले 50 सालों से जारी है. शुरुआत में इन नक्सलियों को स्थानीय लोगों का समर्थन प्राप्त था और ये उनसे हथियार और बंदूक हासिल करने में सक्षम थे. इसके बाद इन्होंने शस्त्रागार से पुलिस की बंदूकें और अन्य गोला बारूद चोरी करना शुरू कर दिया. यह रेड कॉरिडोर का मुख्य स्रोत है. 


लिट्टे (उग्रवादी संगठन) ने शुरुआत में माओवादियों को प्रशिक्षित किया जिसके बाद नेपाली स्थानीय लड़ाकू  हथियारों, रणनीतियों और प्रशिक्षण कार्यक्रम और कई अन्य सामरिक परमाणु हथियारों का भी आदान-प्रदान नक्सलवादियों को करते आ रहा है. सबसे ज्यादा इस नक्सलवाद से स्थानीय जनता प्रभावित हुई. इस क्षेत्र के रहने वाले निम्न स्तर के लोग नक्सलवाद से असुरक्षा की वजह से माओवादी विद्रोह जैसे हिंसक विद्रोह में शामिल हो गए हैं, दरअसल रेड कॉरिडोर मुख्य रूप से आंतरिक सुरक्षा जोखिमों से ग्रस्त है क्योंकि इसे स्थानांतरित करना आसान है और यह सुरक्षित परिवहन की अनुमति देता है. घने जंगल और खराब कनेक्टिविटी इस कॉरिडोर को छिपाने में सहायक होता है. माओवादी संगठन गोरिल्ला वार लड़ाकों के रूप में जाने जाते हैं.


बीते 10 सालों से सिमट रहा नक्सलवाद का दायरा
रेड कॉरिडोर को रेड जोन भी कहा जाता है. यह वह क्षेत्र है जहां नक्सली माओवादी विद्रोह का सबसे मजबूत अस्तित्व है यानि भारत के मध्य दक्षिणी और पूर्वी भारत सहित 9 राज्य और  बिहार, छत्तीसगढ़ ओड़िसा और झारखंड में माओवाद सबसे ज्यादा शक्तिशाली है. रेड कॉरिडोर इन 9 राज्यों के अंतर्गत ही आता है. नक्सलियों उपेक्षित कृषि मजदूरों और गरीबों के लिए बेहतर भूमि अधिकारों और  रोजगार के लिए पुलिस, रसूखदार आदिवासी, नेता और सरकारी कर्मचारियों को बार-बार निशाना बनाते हैं.


महाराष्ट्र के 36 जिलों में लाल आतंक 
भारत में वर्तमान में महाराष्ट्र के 36 जिले हैं जो नक्सलियों से सबसे ज्यादा प्रभावित है और रेड कॉरिडोर का हिस्सा हैं. इसके अलावा छत्तीसगढ़ के 14 जिले नक्सल प्रभावित हैं, हालांकि छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के खिलाफ लड़ी जा रही निर्णायक लड़ाई से नक्सलवाद काफी बैकफुट पर है. इसके अलावा तेलंगाना राज्य में भी ग्रेहाउंड पुलिस के द्वारा चलाए गए ऑपरेशन से भी काफी हद तक तेलंगाना का क्षेत्र नक्सल मुक्त हो चुका है लेकिन अभी भी देश के 9 राज्य के कई जिले लाल आतंक से प्रभावित हैं और इन क्षेत्रों में हजारों की संख्या में अर्धसैनिक बलों की तैनाती की गई है. कश्मीर के बाद सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ के बस्तर, बिहार, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में अर्धसैनिक बलों की तैनाती है जो इस रेड कॉरिडोर कहे जाने वाले इलाकों में तैनात होकर नक्सलियों से लोहा ले रहे हैं.


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