Chhattisgarh News: साल वनों का द्वीप कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ के बस्तर में 15 से अधिक प्रकार के वनोंपज पाए जाते हैं. यहां वनोपज ही हजारों आदिवासियों के जीवन यापन का सहारा है. आज भी बस्तर के ग्रामीण अंचलों के हाट बाजार में बस्तर में मिलने वाली सभी वनोंपज देखने को मिलते हैं. यही वजह है कि दूसरे राज्यों से बस्तर घूमने आने वाले पर्यटक इन हाट बाजार का जरूर भ्रमण करते हैं. बस्तर कलेक्टर विजय दयाराम ने भी जिले के पुष्पाल में लगने वाले साप्ताहिक हाट बाजार का दौरा किया.

Continues below advertisement

कलेक्टर विजय दयाराम ने साप्ताहिक हाट बाजार का दौरा करते हुए स्थानीय ग्रामीण महिलाओं से बातचीत कर उनसे वनोपज और घर में जैविक पद्धति से उगाने वाले साग सब्जी, स्थानीय दैनिक उपयोगी वस्तुओं आदि के बारे में जानकारी ली. वही इस बाजार में कुछ महिलाएं देसी हल्दी की भी बिक्री करने पहुंची हुई थी. साल वनो के बीच जैविक रूप से आदिवासी ग्रामीणों के द्वारा टिकरा भूमि में हल्दी उगाई जाती हैं ये हल्दी औषधि गुणों से परिपूर्ण होती है.

औषधि के रूप में भी करते हैं हल्दी का इस्तेमाल

Continues below advertisement

बस्तर कलेक्टर ने भी खुद एक ग्रामीण महिला से हल्दी खरीद कर इसकी तारीफ करते हुए बस्तर की हल्दी को पहचान दिलवाने का आश्वासन दिया. इस दौरान वहां मौजूद ग्रामीणों ने बताया कि स्थानीय लोग देसी हल्दी का उपयोग खाने के साथ ही औषधि के रूप में भी करते हैं. ग्रामीण अंचलों में इस हल्दी का वैवाहिक और मृत्यु संस्कार में उपयोग किया जाता है. ग्रामीण अलग-अलग फसलों की पैदावार के साथ ही हल्दी की जैविक खेती बाड़ी या टिकरा भूमि में भी करते हैं.

सालों से देसी हल्दी की जैविक खेती कर रहे ग्रामीण

दरअसल, बस्तर कलेक्टर विजय दयाराम विकसित भारत संकल्प यात्रा का जायजा लेने के लिए जिले के जगदलपुर ब्लॉक के पुष्पाल ग्राम पंचायत पहुंचे हुए थे. इस भारत संकल्प यात्रा का आयोजन स्थानीय हाट बाजार के पास किया गया था. जिसमें सभी तरह के शासकीय योजनाओं की जानकारी ग्रामीणों को एलईडी प्रचार वाहन के माध्यम से दी जा रही थी और विभागों की ओर से स्टॉल लगाकर हितग्राही मूलक योजनाओ से जोड़ने का कार्य किया. 

‘बस्तर की हल्दी को भी मिलेगी पहचान’

बस्तर कलेक्टर विजय दयाराम ने कहा कि बस्तर में पाए जाने वाले अलग-अलग वनोपज के साथ जैविक रूप से ग्रामीणों की ओर से उगाए जाने वाली देसी हल्दी को भी छत्तीसगढ़ में पहचान मिल सकती है. ऐसे में ग्रामीण अंचलों में उगाई जाने वाली इस हल्दी को पूरे प्रदेश में पहचान दिलाने के लिए जल्द ही योजना बनाकर बस्तर के अलग-अलग बाजारों में भी उपलब्ध कराया जाएगा. अगर उत्पादन सही रहा तो इसको भी वनोपज की तरह खरीदी की जाएगी. बस्तर में एशिया की सबसे बड़ी इमली मंडी है और यहां से देश-विदेश में इसका निर्यात किया जाता है, अगर हल्दी की भी अच्छी पैदावार होती है तो निश्चित तौर पर यह ग्रामीणों के लिए आय का एक जरिया बनेगा. 

यह भी पढ़ें: Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ में अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती को 'सुशासन दिवस' के रूप में मनाएगी सरकार, किसानों को देगी ये सौगात