बिहार में सीएम पद के लिए नीतीश कुमार का नाम तो लगभग तय था. सस्पेंस बीजेपी के डिप्टी सीएम को लेकर था. लेकिन पार्टी ने पुराने चेहरों को ही रिपीट करके सबको चौंका दिया. दो दिनों से आधा दर्जन नेताओं के नाम डिप्टी सीएम की रेस में चल रहे थे. लेकिन बीजेपी ने पुरानी जोड़ी को ही जिम्मेदारी दे दी. सवाल ये कि बीजेपी की इस सरप्राइज के पीछे कौन सी थ्योरी है?

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नीतीश कुमार के नाम से पर्दा तो मंगलवार को ही उठ गया था. सस्पेंस बीजेपी के नेताओं को लेकर था कि डिप्टी सीएम कौन बनेगा ? सुबह जब बीजेपी विधायक दल की बैठक शुरू हुई तो सस्पेंस का पारा हाई रहा . बैठक के अंदर से तरह तरह की खबरें बाहर आती रही. दोपहर 12 बजकर बीस मिनट पर खबर निकली कि कोई बदलाव नहीं हुआ है. बीजेपी ने सम्राट चौधरी को विधानमंडल दल का नेता और विजय सिन्हा को उपनेता चुना. 

बीजेपी ने पुराने दोनों नेताओं को रिपीट क्यों किया?

बीजेपी ने इन्हीं दोनों के नेतृत्व में बिहार में बीजेपी ने ऐतिहासिक जीत हासिल की. इन दोनों को नेता चुनकर बीजेपी ने देश-प्रदेश को संदेश दिया है कि बीजेपी मेहनत का इनाम देती है. अगर सम्राट चौधरी को बीजेपी हटा देती तो विपक्ष के उम्र विवाद वाले आरोप को दम मिलता, बीजेपी ने आरोप को कमजोर किया. सम्राट चौधरी को नेता चुनकर बीजेपी ने संदेश दिया है कि बिहार में पार्टी का भविष्य उनके हाथ में है. दोनों को रिपीट करके पार्टी ने पुराना जातीय संतुलन बनाए रखा है, असंतोष की गुंजाइश नहीं पनपने दी है. सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा को नेता चुनकर बीजेपी ने 'मंडल' और 'कमंडल' दोनों को फिर से साधे रखा है. इन दोनों के साथ नीतीश कुमार की ट्यूनिंग बेहतर है लिहाजा उनको भी खुश रखा गया है.

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2020 में जब बीजेपी ने प्रयोग के तौर पर सुशील मोदी की जगह तार किशोर प्रसाद और रेणु देवी को डिप्टी सीएम बनाया था तब नीतीश सहज नहीं थे. बाद में उन्होंने पाला भी बदल लिया था. आगे ऐसी कोई गुंजाइश न रहे बीजेपी ने इसका ख्याल रखा है.

सम्राट चौधरी: बीजेपी के भविष्य!

सम्राट चौधरी महज सरप्राइज नहीं हैं. उनकी इस भूमिका को अब बीजेपी के भविष्य के तौर पर देखा जा रहा है. सम्राट चौधरी उस कुशवाहा जाति से आते हैं जो बिहार में यादवों के बाद दूसरी सबसे बड़ी ओबीसी जाति है. कुशवाहा जाति की ताकत बिहार के साथ-साथ यूपी में भी बेहद अहम है. गौर करने वाली बात ये भी कि यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य भी सम्राट की बिरादरी से ही आते हैं, जिन्हें बीजेपी ने बिहार में पर्यवेक्षक बनाया था. 

सुशील मोदी के बाद ये पहली बार हुआ है जब सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा की जोड़ी को बीजेपी ने उप मुख्यमंत्री के रूप दोहराया है. सम्राट चौधरी के पास पूरे 35 साल का राजनीतिक अनुभव है. यानी उन्हें बिहार में लालू और नीतीश युग की राजनीति का लंबा तजुर्बा है. वो बीजेपी से पहले सूबे की दोनों प्रमुख क्षेत्रीय पार्टी आरजेडी और जेडीयू में भी रह चुके हैं. इस तरह से सम्राट विरोधी और सहयोगी दोनों की कमजोरी और मजबूती से अच्छी तरह वाकिफ हैं.

सम्राट चौधरी को जब बीजेपी ने पहली बार डिप्टी सीएम बनाया तो हर किसी के मन में यही सवाल था कि वो नीतीश कुमार के साथ तालमेल कैसे बनाएंगे? क्योंकि तब वो बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष थे और उन्होंने महागठबंधन के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को कुर्सी से नहीं हटाने तक पगड़ी नहीं उतारने की कसम खाई थी. लेकिन उप मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री के रूप में सम्राट चौधरी सीएम नीतीश कुमार के हमसाया बन गए..उन्होंने बतौर वित्त मंत्री पहला बजट पेश किया तो नीतीश ने खड़े होकर सम्राट को गले लगाया.

सम्राट चौधरी ने बाद में अयोध्या में मुंडन और सरयू स्नान कर पगड़ी भी उतारी. इस तरह से उन्होंने अपनी कसम की लाज भी रखी और नीतीश कुमार का लिहाज भी रखा.

चुनावी मौसम में नीतीश कुमार ने फ्री बिजली से लेकर महिला रोजगार योजना जैसी कई लाभार्थी योजनाएं शुरू कीं. बतौर वित्त मंत्री बिहार के खजाने के रखवाले के रूप में सम्राट ने मुख्यमंत्री का बखूबी साथ दिया. सम्राट गरम तेवर के नेता माने जाते हैं. लेकिन चुनाव के दौरान जन सुराज के प्रशांत किशोर ने जब उन पर फर्जी डिग्री से लेकर हत्या जैसे गंभीर आरोप लगाए तब भी वो बेसब्र नहीं हुए और एक मंझे नेता की तरह बेहद तरीके से पूरे मामले को हैंडल किया. 

45843 वोटों से जीते हैं सम्राट

विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने सम्राट चौधरी को मुंगेर जिले की तारापुर सीट से उम्मीदवार बनाया तो उन्होंने आरजेडी के अरुण कुमार को 45843 वोट के बड़े अंतर से शिकस्त दी. अपनी सीट ही नहीं स्टार प्रचारक के नाते सम्राट ने पूरे बिहार में बीजेपी और एनडीए के लिए जबरदस्त मेहनत की. 

भूमिहार जाति से आते हैं विजय सिन्हा

सम्राट पिछड़ी जाति से आते हैं तो विजय भूमिहार जाति से आते हैं, जो बीजेपी का कोर वोट बैंक है. इस चुनाव में सबसे ज्यादा भूमिहार विधायक बीजेपी से ही चुन कर आए हैं. ऐसे में पार्टी ने इसका मान रखते हुए विजय सिन्हा का सम्मान भी कायम रखा है. 

1990 के बाद बिहार की राजनीति में सवर्णों के लिए सत्ता के शिखर पर पहुंचना सपना हो गया था. लेकिन बीजेपी ने दशकों बाद जनवरी 2024 में इस मिथक को तोड़कर विजय सिन्हा को उप मुख्यमंत्री बनाया. इससे पहले उन्हें पार्टी ने नेता विपक्ष और स्पीकर भी बनाया था. विजय कुमार सिन्हा लखीसराय से पांचवीं बार विधायक बने हैं. उन्होंने इस बार कांग्रेस के अमरेश कुमार को 24940 वोट से हराया है. बड़ी बात ये कि विजय सिन्हा के प्रतिद्वंदी भी भूमिहार जाति से ही थे यानी लखीसराय के भूमिहारों ने भी कांग्रेस के बजाय बीजेपी उम्मीदवार पर ही भरोसा जताया.

बीजेपी के पास सबसे ज्यादा भूमिहार विधायक

बिहार में इस बार 25 भूमिहार विधायक जीत कर आए हैं. इनमें से सबसे ज्यादा बीजेपी से ही 12, जेडीयू से 8, एलजेपी रामविलास, आरएलएम और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा से 1-1 और RJD के 2 विधायक शामिल हैं. 

बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह भूमिहार ही थे लेकिन उनके बाद इस जाति के किसी नेता को फिर ये कुर्सी नसीब नहीं हुई. दशकों बाद बीजेपी ने लगातार दूसरी बार भूमिहार जाति से आने वाले विजय सिन्हा को उप मुख्यमंत्री बनाया है तो इसके पीछे संदेश साफ है कि बीजेपी पिछड़े और अगड़े को साथ लेकर चलेगी. इस चुनाव में एनडीए के 83.3 फीसदी सवर्ण उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की तो महागठबंधन के सिर्फ 4.8 प्रतिशत अगड़े उम्मीदवार ही जीत हासिल कर सके.