पटना: प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबराय (Bibek Debroy) ने अपने लेख में लिखा है कि हमारा मौजूदा संविधान काफी हद तक 1935 के भारत सरकार अधिनियम पर आधारित है. उनके लेख के बाद जेडीयू और आरजेडी ने हमला बोला है. आरजेडी सांसद मनोज झा (Manoj Jha) ने गुरुवार (17 अगस्त) को कहा कि बिबेक देबराय की जुबान से बुलवाया गया है. ठहरे हुए पानी में कंकड़ डालो और अगर लहर पैदा कर रही तो और डालो और फिर कहो कि अरे ये मांग उठने लगी है.


जेडीयू ने कहा- बिबेक देबराय के बयान ने हैरान कर दिया


जेडीयू के राष्ट्रीय सचिव राजीव रंजन प्रसाद ने कहा कि अनेक संविधान संसोधनों के जरिए संविधान का जो मूल चरित्र है उसको बदलने की कोशिश बीजेपी ने अनेक अवसरों पर की है, लेकिन जो ताजा बयान बिबेक देबराय का है वह बीजेपी, आरएसएस के घृणित सोच को फिर सामने ला दिया है. बिबेक देबराय के बयान ने हैरान कर दिया.


राजीव रंजन ने कहा कि इस तरह की कोशिशों को भारत कभी स्वीकार नहीं करेगा. भारत का संविधान दुनिया का सर्वश्रेष्ठ संविधान है. बिबेक देबराय चाटुकारिता कर रहे हैं. आर्थिक नीतियों पर वह विचार व्यक्त नहीं कर पाते कभी, लेकिन दूसरे क्षेत्रों के विषयों पर चर्चा करते हैं जिसकी जानकारी उनको नहीं है. 


बिबेक देबराय ने लेख में क्या लिखा?


बता दें प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबराय ने अपने लेख में लिखा है कि हमारा मौजूदा संविधान काफी हद तक 1935 के भारत सरकार अधिनियम पर आधारित है. 2002 में संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए गठित एक आयोग द्वारा एक रिपोर्ट आई थी, लेकिन यह आधा-अधूरा प्रयास था. कानून में सुधार के कई पहलुओं की तरह यहां और दूसरे बदलाव से काम नहीं चलेगा.


यह भी कहा है कि हमें पहले सिद्धांतों से शुरुआत करनी चाहिए जैसा कि संविधान सभा की बहस में हुई थी. 2047 के लिए भारत को किस संविधान की जरूरत है? कुछ संशोधनों से काम नहीं चलेगा. हमें ड्रॉइंग बोर्ड पर वापस जाना चाहिए और पहले सिद्धांतों से शुरू करना चाहिए, यह पूछना चाहिए कि प्रस्तावना में इन शब्दों का अब क्या मतलब है. समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, न्याय, स्वतंत्रता और समानता हम लोगों को खुद को एक नया संविधान देना होगा.


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