बिहार की राजनीति में अक्सर चेहरे बदलते रहे, गठबंधन बदलते रहे, समीकरण बनते-बिगड़ते रहे लेकिन दो नेता ऐसे हैं, जिनके चेहरे लगभग हर सरकार में एक जैसे दिखाई दिए, बिजेंद्र प्रसाद यादव और श्रवण कुमार. नीतीश कुमार ने बिहार के 10वें मुख्यमंत्री बने और उनके दो सबसे पुराने साथी, फिर से मंत्री मंडल में शामिल हैं.

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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब भी शपथ ली, इन दोनों नेताओं का नाम मंत्रिमंडल में लगभग तय रहा. एक बार फिर गांधी मैदान में हुए शपथ ग्रहण समारोह में नीतीश के साथ-साथ इन दोनों दिग्गज नेताओं ने भी मंत्री पद की शपथ ली और चर्चा का केंद्र बने रहे.

सुपौल के चिर-परिचित नेता बिजेंद्र प्रसाद यादव

सुपौल विधानसभा सीट पर 79 वर्षीय बिजेंद्र प्रसाद यादव का जलवा इस बार भी कायम रहा. जेडीयू के इस कद्दावर नेता ने 2025 के विधानसभा चुनाव में लगातार 9वीं बार जीत हासिल कर ली.

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उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार मिन्नतुल्लाह रहमानी को 30803 वोटों के बड़े अंतर से हराया. कुल 109085 वोट हासिल करने वाले यादव के सामने अन्य प्रत्याशियों की चुनौती बहुत छोटी साबित हुई.

सुपौल सीट को जेडीयू का गढ़ माना जाता है और इसके केंद्र में हमेशा से एक ही नाम रहा है बिजेंद्र प्रसाद यादव. साल 2000 से लगातार वे जेडीयू के टिकट पर जीतते आए हैं.

आजादी के बाद सुपौल लंबे समय तक कांग्रेस का मजबूत गढ़ रहा. पहली बार 1952 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार लहटन चौधरी जीते. 1967 से लेकर 1972 तक भी सीट कांग्रेस के पास रही. लेकिन 1990 के बाद यह इतिहास बदला और राजनीतिक समीकरण पूरी तरह पलट गए.

साल 1990 में पहली बार जनता दल के टिकट पर बिजेंद्र प्रसाद यादव विधायक बने. इसके बाद 1995 में दोबारा जीते. साल 2000 आते-आते उन्होंने जेडीयू का दामन थामा और फिर 2005, 2010, 2015 और 2020 में भी जीत दर्ज की.

नालंदा के मजबूत स्तंभ श्रवण कुमार

दूसरे साथी हैं श्रवण कुमार, जिन्हें बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार का सबसे भरोसेमंद साथी माना जाता है. वे लगातार नीतीश सरकारों का हिस्सा रहे हैं और कई प्रमुख विभाग संभाल चुके हैं.

20 अगस्त 1957 को नालंदा जिले में जन्मे श्रवण कुमार ने स्थानीय स्कूलों में पढ़ाई की. 1977 में बिहारशरीफ के एसपीएम कॉलेज से इंटर पास किया. राजनीति में आने से पहले वे खेती और सामाजिक कामों में सक्रिय थे.

उनकी राजनीतिक शुरुआत जेपी आंदोलन से हुई. 1994 में समता पार्टी बनी तो उसी दिन से वे नीतीश कुमार के साथ हो गए और यह साथ आज तक कायम है.

लगातार 8 बार विधायक

श्रवण कुमार ने पहली बार 1995 में समता पार्टी के टिकट पर नालंदा से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इसके बाद 2000, 2005, 2010, 2015 और 2020 हर चुनाव में उन्होंने जीत दोहराई. वे लगातार 8 बार विधायक चुने जा चुके हैं. नालंदा विधानसभा सीट उनकी मजबूती का ऐसा केंद्र बनी, जिसे जेडीयू का सुरक्षित गढ़ माना जाता है.

कई अहम विभागों की जिम्मेदारी

बीते वर्षों में श्रवण कुमार ने ग्रामीण विकास, संसदीय कार्य, खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण और समाज कल्याण जैसे अहम मंत्रालयों का कार्यभार संभाला है. उनकी छवि एक सरल, जमीन से जुड़े और भरोसेमंद नेता की है.

नीतीश के दोनों ‘हमसफर’ क्यों हैं खास?

नीतीश कुमार के राजनीतिक सफर में ये दोनों नेता सिर्फ मंत्री नहीं, बल्कि ऐसे साथी साबित हुए जिन्हें हर कठिन समय में उनका साथ निभाया. चाहे गठबंधन टूटे, नए बने, सत्ता बदले या राजनीतिक माहौल गर्माए, बिजेंद्र प्रसाद यादव और श्रवण कुमार हमेशा नीतीश कुमार के साथ रहे.

नीतीश कुमार की हर सरकार में इनका होना, इस बात का प्रमाण है कि बिहार की राजनीति में अनुभव, भरोसा और निरंतरता का कोई विकल्प नहीं. राजनीति की इस उठापटक में जब कई नेता आते-जाते रहते हैं, वहीं ये दोनों नेता बीते तीन दशकों से अपनी मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं.

दोनों ही अपने-अपने क्षेत्रों के निर्विवाद नेता हैं, और दोनों ही नीतीश कुमार के लिए सबसे स्थायी और भरोसेमंद साथी. इस बार भी वही तस्वीर दिखी. नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने और उनके दो सबसे पुराने साथी, फिर से मंत्री मंडल में शामिल.