जैसे जैसे खरमास खत्म होने का दिन करीब आ रहा है वैसे वैसे बिहार की सियासत में बदलाव की सुगबुगाहट तेज होती जा रही है. पटना में जेडीयू हेडक्वार्टर के गेट पर दो नए पोस्टर लगे हैं जो बिहार में चर्चा को नए सिरे से आगे बढ़ा रहे हैं. इन दोनों पोस्टरों पर नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार की तस्वीर लगी हुई है. वैसे तो निशांत की सियासी पारी के डेब्यू को लेकर चर्चा पिछले कई महीनों से हो रही है लेकिन अब लग ऐसा रहा है जैसे कि चर्चा पर मुहर लगने जा रही है.
पोस्टर सिर्फ पार्टी मुख्यालय के बाहर नहीं लगाये गये हैं. पटना के अलग अलग चौक चौराहों पर भी इसे लगाया गया है. यहां तक की सीएम हाउस के एंट्री प्वाइंट पर भी ये पोस्टर लगाये गये हैं. जेडीयू के नेता और प्रवक्ताओं की तरफ से भी अब खुलकर कहा जा रहा है कि निशांत को राजनीति में आना चाहिए.
जेडीयू ने निशांत को पार्टी ने लाने की तैयारी कर ली- सूत्र
बिहार और जेडीयू के सियासी इतिहास के पन्नों को जब पलटेंगे तो पाएंगे कि जेडीयू में प्रवक्ता वही बोलते हैं जो नीतीश कुमार के मन में होता है या नीतीश कुमार करने जा रहे होते हैं. एबीपी न्यूज़ के पास सूत्रों के हवाले से पुख्ता जानकारी है कि नीतीश कुमार और उनके रणनीतिकारों ने निशांत को पार्टी में लाने की तैयारी कर ली है. 13 दिसंबर से जेडीयू ने सदस्यता अभियान शुरू किया है.
निशांत कुमार को क्या जिम्ममेदारी मिलेगी?
अब सवाल है कि निशांत अगर राजनीति में आते हैं तो क्या नीतीश कुमार पार्टी अध्यक्ष की कुर्सी छोड़कर बेटे को जिम्मेदारी देंगे? क्या निशांत को मंत्री बनाकर सरकार में शामिल करेंगे? या निशांत को नीतीश सीधे बिहार का मुख्यमंत्री बना देंगे, जैसा कि पार्टी के नेता मांग कर रहे हैं. या इन तीनों के अलावा कोई और विकल्प तो नहीं सोच रखा होगा?
वैसे तो नीतीश कुमार परिवारवादी राजनीति के विरोधी रहे हैं. लेकिन जिस तरह से जेडीयू में नीतीश के बाद कौन का वैक्यूम क्रिएट हुआ है उसके बाद सीएम के करीबियों का मानना है कि निशांत को उत्तराधिकारी बनाया जाना चाहिए. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष या कार्यकारी अध्यक्ष बनाने में शायद कोई दिक्कत न आये. लेकिन मंत्री और मुख्यमंत्री का जब सवाल आएगा तो सियासी शूचिता को लेकर नीतीश पर सवाल उठ सकते हैं.
बीजेपी क्या चाहती है?
सूत्रों की मानें तो बीजेपी का राष्ट्रीय नेतृत्व भी चाहता है कि निशांत को जल्द से जल्द राजनीति में लाया जाये. लेकिन इसकी वजह क्या है? दरअसल, बिहार में जेडीयू के 85 विधायक हैं. विधान परिषद में 20 MLC हैं. लोकसभा के 12 और राज्यसभा के 4 सांसद हैं. इसके अलावा बिहार में करीब 15-16 फीसदी वोट बैंक ऐसा है जिस पर बीते 20 सालों से जेडीयू यानी नीतीश की मजबूत पकड़ है.
नीतीश कुमार के सक्रिय नहीं रहने पर उनका वोट बैंक पूरी तरह बीजेपी में शिफ्ट हो ही जाएगा इसकी संभावना नहीं दिखती है. ऐसे में नीतीश की विरासत अगर बेटे निशांत के हाथ में आती है तो महिला वोट और अति पिछड़ी जातियों का वोट भावनात्मक आधार पर उनके साथ जुड़ा रह सकता है. निशांत के न आने और जेडीयू के कमजोर होने पर इस वोट बैंक के आरजेडी और प्रशांत किशोर की तरफ शिफ्ट होने का 'डर' है. जेडीयू को बचाने और आगे की राजनीति तय करने के लिए नीतीश और बीजेपी दोनों को ही निशांत को लाना होगा.