Neha Singh Rathore: पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद बीते गुरुवार (24 अप्रैल, 2025) को पहला मौका था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के मधुबनी से आतंकियों को चेतावनी दी कि उन्हें धरती के अंतिम छोर तक खदेड़ेंगे. उनका पता लगाया जाएगा और सजा दी जाएगी. इस पर अब लोकगायिका नेहा सिंह राठौर की प्रतिक्रिया आई है. उन्होंने वीडियो जारी कर इसका कनेक्शन बिहार चुनाव से जोड़ दिया है.

नेहा सिंह राठौर ने कहा, "कश्मीर में आतंकी हमला हुआ और उसके फौरन बाद मोदी जी ने आज बिहार में रैली कर दी. बिहार के मंच से ही पाकिस्तान को धमका दिया और जनता ने भी ताबड़तोड़ तालियां पीट दी. जो लोग भी मोदी जी की पॉलिटिक्स और बिहार की हालत को समझते हैं उन्हें खूब समझ में आ रहा है कि पाकिस्तान को धमकी देने के लिए मोदी जी को बिहार क्यों आना पड़ा? उन्हें बिहार इसलिए आना पड़ा ताकि बिहार की जनता से राष्ट्रवाद के नाम पर वोट बटोरा जा सके. बिहार की जनता के मुद्दों को फिर से साइड किया जा सके." 

'ईमानदारी से चुनाव हो तो…'

नेहा सिंह राठौर ने आगे कहा, "मोदी जी और उनके साथ वालों को काम के नाम पर तो वोट मिलना नहीं है. क्योंकि काम कुछ हुआ नहीं है. भ्रष्टाचार इतना हुआ है कि अगर ईमानदारी से चुनाव हो तो बहुतों की जमानत जब्त हो जाए. बिहार चुनाव में उन्हें या तो हिंदू-मुसलमान के नाम पर वोट मिल सकता है या भारत-पाकिस्तान के नाम पर, तीसरा कोई रास्ता नहीं है." 

बिहार के लोगों को जागरूक करते हुए नेहा ने कहा, "मैं जो कहने जा रही हूं उसे ध्यान से समझिए और गांठ बांध लीजिए. बिहार में चुनाव आने वाला है. अगर बिहार चुनाव पहलगाम मुद्दे पर लड़ा गया तो चुनाव से रोजगार और परीक्षाओं का मुद्दा गायब कर दिया जाएगा. पेपर आउट और बाकी भ्रष्टाचार के मुद्दे साइड कर दिए जाएंगे. जानते हैं इससे क्या होगा? बिहार का युवा गरीबी और बेरोजगारी के दुष्चक्र में फंसा रह जाएगा. वो प्रवासी मजदूर बनने की राह पर आ जाएगा. फिर सूरत, अहमदाबाद, पंजाब, मुंबई जैसे शहरों को सस्ता लेबर मिलेगा."

केंद्र सरकार पर हमला करते हुए उन्होंने कहा कि ये दुष्चक्र साल-दो साल में नहीं रचा गया है. दशकों लगे हैं. बड़े-बड़े हाकिमों का दिमाग लगा है. इसके बाद जाकर बिहार के अच्छे-अच्छे अभिमन्यु दिल्ली में गार्ड बनकर गालियां खा रहे हैं. आपको क्या लगता है सबकुछ ऐसे ही हो जाता है? केंद्र की सरकार बनाने में बिहार की बहुत बड़ी भूमिका है. बिहार के तमाम नेता हैं जिनके बिना दिल्ली की सरकार पैदल हो जाए, लेकिन इन लोगों ने बिहार में कितने कारखाने लगवाए? कितने कॉलेज और विश्वविद्यालय खुलवाए? न खुलवाए हैं न खुलवाएंगे. क्योंकि ऐसे हो गया तो सूरत और अहमदाबाद को सस्ते मजदूर कहां से मिलेंगे?

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