Bihar News: राजनीति रणनीतिकार के रूप में पहचान बनाने वाले और कई राज्यों के चुनाव में सफल होने वाले प्रशांत किशोर अपनी राजनीतिक पारी में फेल होते नजर आ रहे हैं. उनका आगाज तो सुर्खियों में रहा, लेकिन अंजाम धीरे-धीरे फ्लॉप साबित होता दिख रहा है. बीते शुक्रवार को पटना के गांधी मैदान में पीके के पार्टी जनसुराज की ओर से बिहार बदलाव रैली का आयोजन किया गया, लेकिन रैली एक तरह से फ्लॉप साबित हो गई.

जन सुराज की रैली में गांधी मैदान का 30% हिस्सा भी नहीं भरा. हालांकि उन्होंने इसका ठीकरा राज्य सरकार और प्रशासन पर मढ़ा है. लेकिन राजनीतिक रूप से देखा जाए तो क्या प्रशांत किशोर बिहार की राजनीति में फिसड्डी साबित हो रहे हैं.

‘राजनीति कोई कॉर्पोरेट धंधा नहीं’प्रशांत किशोर की रैली में भीड़ नहीं जुटने के बाद बिहार की अन्य राजनीतिक दलों के नेता तंज कसने लगे हैं. पूर्णिया सांसद पप्पू यादव ने पीके की रैली को लेकर एक्स पर पोस्ट करके लिखा कि "राजनीति कोई कॉर्पोरेट धंधा नहीं, जानता को सिर्फ पैसे के सहारे भ्रम में डाल कर राजनीति नहीं हो सकती है. पटना के गांधी मैदान में पुनः यह सिद्ध कर दिया कि जो जनता के लिए लड़ेगा, उनके बीच रहेगा, वही उनके दिलों पर राज करेगा.

‘रैली पूरी तरह फ्लॉप हो गई’वही बीजेपी प्रवक्ता प्रभाकर मिश्रा ने कहा कि प्रशांत किशोर की बिहार बदलाव रैली बदहाल रैली साबित हुई है. जनता ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कामों को देखा है जो जंगल राज से बिहार उबरा था. अब जनता किसी के झांसे में नहीं आने वाली है. उनकी रैली पूरी तरह फ्लॉप हो गई.

120 दिनों तक पदयात्रा करेंगे प्रशांत किशोरहालांकि प्रशांत किशोर अभी हार मानने वाले में से नहीं है. उन्होंने रैली के बाद घोषणा किया है कि इस रैली में लाखों लोग आने वाले थे लेकिन प्रशासन के उदासीन रवैये और जाम के कारण नहीं आ पाए तो अब हम उनके पास जाएंगे. अब हम बिहार बदलाव यात्रा करने वाले हैं जो 10 दिनों के अंदर शुरुआत करेंगे और यह यात्रा 120 दिनों की होगी. इसमें सभी विधानसभा क्षेत्र के सभी प्रखंडों में हम जाएंगे और जनता को बिहार के बदलने की बात करेंगे.

‘खुद में बदलाव करने की जरूरत’अब बिहार विधानसभा चुनाव से पहले प्रशांत किशोर की यह नई यात्रा बिहार की राजनीति में कितना बदलाव कर पाएगी इस पर राजनीति विशेषज्ञ और वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार पांडे ने कहा कि जो स्थितियां कल देखी गई है उससे यही लग रहा है कि प्रशांत किशोर को खुद में बदलाव करने की जरूरत है. प्रशांत किशोर तीन परीक्षा में फेल हो चुके हैं. पहली परीक्षा उनकी उपचुनाव थी इसमें वह एक सीट भी नहीं जीत पाए. दूसरी परीक्षा पटना यूनिवर्सिटी चुनाव था जिसमें अपने प्रत्याशी तो उतारे लेकिन उनका एक भी प्रत्याशी जीत नहीं सका और तीसरी परीक्षा कल गांधी मैदान में थी वे आधा गांधी मैदान भी भरने में वह कामयाब नहीं हुए.

उन्होंने कहा कि प्रशांत किशोर 2 अक्टूबर 2022 से पद यात्रा किए है और 2 अक्टूबर 2024 को खत्म करके पार्टी का निर्माण किया. 2 साल उन्होंने पदयात्रा किया, इसके बावजूद उन्हें किसी भी चीज में सफलता नहीं मिली है तो 3 महीने में क्या उन्हें सफलता मिलेगी.

‘हर हाल में जातिगत राजनीति होती है’अरुण पांडे ने कहा कि बिहार और उत्तर प्रदेश ऐसा राज्य है जहां हर हाल में जातिगत राजनीति होती है. प्रशांत किशोर राजनीति पारी की शुरुआत में बड़े-बड़े दावे किए. उन्होंने 40 मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारने की बात कही, 75 महिला को टिकट देने की बात कही लेकिन जाति कौन होगा किस क्षेत्र में किस जाति से चुनाव लड़ा जाएगा इस पर उन्होंने बात नहीं की.

बिहार के लोग जाति में गोल बंद हैं, जाति के आधार पर ही वोटिंग होती है ऐसे में प्रशांत किशोर का राजनीतिक फंडा कहीं ना कहीं फ्लॉप होता साबित हो रहा है. वे राजनीति रणनीतिकार रहे हैं लेकिन खुद राजनीति करना और रणनीतिकार बनना दोनों में अंतर होता है.

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