बिहार सरकार में ग्रामीण कार्य विभाग मंत्री अशोक चौधरी मुश्किलों में फंस गए हैं. शिक्षा मंत्री सुनील कुमार ने साफ कर दिया है कि उनके नाम को लेकर कई गड़बड़ियां सामने आ रही हैं. इसी वजह से नीतीश सरकार ने उन्हें असिस्टेंट पॉलिटिकल साइंस प्रोफेसर के पद पर नियुक्त करने से रोक दिया है.

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शिक्षा मंत्री सुनील कुमार ने अशोक चौधरी के प्रोफेसर की नियुक्ति को लेकर कहा कि नियुक्तियां आयोग करता है. हमने मामला आयोग को भेज दिया है कमीशन ही अपना मंतव्य देगा. हमने उनकी नियुक्ति की समीक्षा की है. इसके बाद उनसे रिपोर्ट मांगी गई है, क्योंकि कई बातें ऐसी हैं, जिनमें कमियां पाई गई हैं. 

मामले पर क्या बोले शिक्षा मंत्री?

शिक्षा मंत्री ने कहा कि इस पर हम लोगों ने गहराई से देखा है और कुछ विसंगतियां हम लोगों ने देखी हैं. इसके लिए उनसे मन्तव्य मांगा है. आयोग इसका जवाब देगा कि उनकी नियुक्ति होने में क्या कमियां है. सुनील कुमार के बयान के हिसाब से यह साफ हो चुका है कि अशोक चौधरी का पॉलिटिकल साइंस प्रोफेसर बनना मुमकिन नहीं दिख रहा.

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अशोक चौधरी पिछले जून में पॉलिटिकल साइंस प्रोफेसर के लिए इंटरव्यू पास करने वाले 274 उम्मीदवारों में से एक थे. यह इंटरव्यू बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग (BSUSC) द्वारा पहली बार इस पद का विज्ञापन देने के पांच साल बाद हुआ था. 

अशोक चौधरी को पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय आवंटित किया गया था

सूत्रों के अनुसार अशोक चौधरी को 17 अन्य उम्मीदवारों के साथ पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय आवंटित किया गया था, लेकिन यह प्रक्रिया रोक दी गई. जो वजह सामने आ रही है, वह यह है कि वह दो नामों का इस्तेमाल करते हैं. उन्होंने अपने एजुकेशनल सर्टिफिकेट में अशोक कुमार और अपने चुनावी हलफनामे में अशोक चौधरी लिखा है. 

विश्वविद्यालय सेवा आयोग के एक सूत्र के अनुसार नाम में गड़बड़ी ही उनकी नियुक्ति रोकने का मुख्य कारण है. प्रारंभिक जांच के दौरान उनके एजुकेशनल सर्टिफिकेट दिखे थे, लेकिन अंतिम जांच में दो नाम सामने आए.

उच्च शिक्षा विभाग के एक अधिकारी के अनुसार अशोक चौधरी का मामला नाम में गड़बड़ी सहित कुछ स्पष्टीकरणों की कमी के कारण विभाग के पास लंबित है. अशोक चौधरी को छोड़कर अन्य उम्मीदवारों को पिछले महीने 10 राज्य विश्वविद्यालयों में की गई 4 हजार नई नियुक्तियों के हिस्से के रूप में नियुक्ति पत्र मिल गए थे.