बिहार चुनाव में एनडीए गठबंधन ने 202 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत हासिल किया, जबकि महागठबंधन सिर्फ 35 सीटों पर सिमट कर रह गया. महागठबंधन में आरजेडी ने 25 तो कांग्रेस ने 6 सीटें जीती हैं. इस चुनाव में कांग्रेस और महागठबंधन को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा. 

Continues below advertisement

कांग्रेस ने इस बार 60 सीटों पर प्रत्याशी घोषित किए थे. इसमें से सिर्फ 6 पर ही जीत दर्ज की. साथ ही चुनावों में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 8.71 रहा. पिछले चुनाव में यह 9.6 फीसदी था. साल 2020 के चुनाव में कांग्रेस 19 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी, जबकि 2015 में 27 और 2010 में सिर्फ 4 सीटों पर जीत दर्ज की थी. इस बार के खराब प्रदर्शन के पीछे कई कारण रहे हैं. आइए समझते हैं कि आखिर किस वजह से कांग्रेस को इतनी कम सीटों से संतोष करना पड़ा.

कांग्रेस की हार का पहला कारण

कांग्रेस की इस बुरी हार पर राजनीतिक एक्सपर्ट्स का मानना है कि बिहार में कांग्रेस का सामाजिक आधार मजबूत नहीं है. इसी वजह से पार्टी को इस बार के चुनाव में इस स्थिति का सामना करना पड़ा. पार्टी मजबूत सामाजिक आधार नहीं होने के वजह से सिर्फ 6 सीटों पर सिमट कर रह गई.

Continues below advertisement

कांग्रेस की हार के दूसरे कारण पर एक नजर

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक कांग्रेस की हार का दूसरा कारण वैचारिक चुनौतियां रहा. पार्टी के सामने बड़ी चुनौती यह है कि जनता कांग्रेस की विचारधारा से नहीं जुड़ पा रही. कांग्रेस की विचारधारा को बिहार के लोगों ने इस चुनाव में सिरे से खारिज कर दिया. बता दें बीजेपी हिंदुत्व के मजबूत एजेंडे पर चुनाव लड़ती आ रही है और कई चुनावों में जीत दर्ज की है.

कांग्रेस के चुनावी मुद्दे एक तरफ वैचारिक हैं, लेकिन उनमें भावानात्मक जुड़ाव नजर नहीं आता. जिससे वह लोगों को जोड़ने में कामयाब नहीं हो पाती.

इस तीसरी वजह से हुआ भारी नुकसान

इस चुनाव में कांग्रेस की हार का मुख्य कारण गठबंधन में तालमेल की कमी भी सामने आया है. चुनाव के समय से ही गठबंधन के सहयोगी दलों में सीटों को लेकर खींचतान चल रही थी. महागठबंधन में न तो तालमेल नजर आया और न ही विश्वास दिखा. इस चुनाव में कांग्रेस और आरजेडी के बीच तालमेल की कमी दिखाई दी. राजनीतिक एक्सपर्ट्स के मुताबिक कांग्रेस बिहार में संगठन को मजबूत और गठबंधन के साथ तालमेल कर पाने में असमर्थ रही. 

उम्मीदवारों का चयन बनी हार की चौथी बड़ी वजह

इस चुनाव में कांग्रेस कमजोर संगठन के रूप में दिखाई दिया. साफ दिखाई दिया की पार्टी का न कोई मजबूत कैडर है और न ही मजबूत कार्यकर्ता हैं. राजनीतिक एक्सपर्ट्स के मुताबिक उनका मानना है कि पिछले कुछ चुनावों में पार्टी की स्थिति बेहद कमजोर हुई है. राजनीतिज्ञ ने पार्टी के केंडिडेट सेलेक्शन पर भी सवाल खड़े करते हैं. सही उम्मीदवारों का चयन न होने की वजह से भी कांग्रेस को इस शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा. 

पार्टी की हार का पांचवा और आखिरी कारण

कांग्रेस की हार का पांचवा कारण विश्लेषकों के अनुसार ने नैरेटिव न गढ़ पाना भी है. बिहार चुनाव में पार्टी ने वोट चोरी और SIR के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया और वही पार्टी का नैरिटव भी नजर आया, लेकिन जनता को इन मुद्दों से जोड़ने में पार्टी नाकाम रही. कांग्रेस एक प्रभावशाली नैरेटिव नहीं गढ़ पाई. इन मुद्दों का कोई असर बिहार चुनाव में नहीं दिख पाया. इन्हीं कारणों की वजहों से कांग्रेस को इस अप्रत्याशित हार का मूंह देखना पड़ा. 

बता दें, कांग्रेस की ओर से बिहार में 1990 के बाद से कोई भी मुख्यमंत्री नहीं बना, पार्टी लंबे से समय से सत्ता से दूर है. कांग्रेस का यह खराब प्रदर्शन 1980 के बाद बिहार में हुआ है. अपनी इस हार पर कांग्रेस नेताओं की ओर से चुनाव आयोग पर सवाल उठाए जा रहे हैं.