बिहार की राजधानी पटना के मशहूर पारस अस्पताल में जिस तरीके से चंदन मिश्रा की हत्या हुई, उसने राजधानी पटना में ही 27 साल पहले हुए उस हत्याकांड की याद दिला दी है, जिसमें लालू यादव के मंत्री को सरेआम अस्पताल में ही गोलियां मारी गई थीं.

मंत्री का नाम था बृजबिहारी प्रसाद जो पहले लालू यादव और फिर राबड़ी देवी की सरकार में विज्ञान-प्रौद्योगिकी मंत्री थे. इसके बावजूद हत्यारों ने उन्हें सरेआम अस्पताल के परिसर में ही गोली मार दी थी और फिर बड़े आराम से वो फरार हो गए थे.

सुबह-शाम लगाते थे दरबार

ये वारदात है 13 जून 1998 की. तब बृजबिहारी प्रसाद के खिलाफ सीबीआई ने भ्रष्टाचार का केस दर्ज किया था, जिसकी वजह से उन्हें कैबिनेट से हाथ धोना पड़ा था. इलाज के लिए वो पटना के इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइन्सेज यानी कि आईजीएमएस में भर्ती थे. सुबह-शाम जनता दरबार भी लगाते थे.

हत्याकांड का तफ्सील से किताब में जिक्र

तब बृजबिहारी प्रसाद और बिहार के ही एक और बाहुबली आनंद मोहन के बीच की दुश्मनी से बिहार का बच्चा-बच्चा वाकिफ था. यूपी पुलिस के अधिकारी और एसटीएफ जैसी संस्था के गठन के वक्त के अहम किरदार आईपीएस राजेश पांडेय ने अपनी किताब वर्चस्व में इस हत्याकांड का तफ्सील से जिक्र किया है.

उत्तर प्रदेश में पहली बार एसटीएफ का किया गया था गठन

राजेश पांडेय के मुताबिक आनंद मोहन ने बृजबिहारी प्रसाद को निपटाने का प्लान बनाया. और इसके लिए आनंद मोहन ने उत्तर प्रदेश के अपने वक्त के सबसे बड़े गैंगेस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला को पटना बुलाया. ये वही श्रीप्रकाश शुक्ला था जिसने कभी मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को भी मारने की सुपारी ले ली थी और जिसका आतंक इतना बढ़ गया था कि उसे मारने के लिए उत्तर प्रदेश में पहली बार एसटीएफ का गठन किया गया था.

बकौल राजेश पांडेय, श्रीप्रकाश शुक्ला आनंद मोहन के लिए काम करने को तैयार हो गया. उसने अस्पताल की रेकी की, देखा कि बृजबिहारी प्रसाद के साथ पूरा इंतजाम है, बीस-पच्चीस गनर हैं, सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता है और ऐसे में बृजबिहारी प्रसाद को मारना कतई आसान नहीं है.

तो श्रीप्रकाश शुक्ला खुद मरीज बनकर अस्पताल में भर्ती हो गया. जुगाड़ से उसको अस्पताल के फर्स्ट फ्लोर पर ही प्राइवेट वार्ड भी मिल गया, जहां बृजबिहारी प्रसाद एडमिट थे. उसने अपने दो आदमी भी तीमारदार के तौर पर अस्पताल में बुला लिए. बृजबिहारी प्रसाद के लोगों से कहा कि उसका दिल का ऑपरेशन होना है तो लोग उससे सहानुभूति भी जताने लगे. और इस सहानुभूति का फायदा उठाकर श्रीप्रकाश बृजबिहारी प्रसाद के लोगो के नजदी आ गया.

हर रोज की तरह लॉन में आ गए टहलने

बृजबिहारी प्रसाद की हर हरकत पर नजर रखी. उसने सिर पर गमछा बांधा, अस्पताल की चादर लपेट ली और लॉन में टहलने निकल गया. बृजबिहारी प्रसाद के लोगों से परिचय हो ही गया था तो किसी ने उसे रोका-टोका नहीं. कुछ और भी मरीज वहां टहल रहे थे. इस दौरान बृजबिहारी प्रसाद भी हर रोज की तरह लॉन में टहलने आ गए. उन्हें टहलता देख श्रीप्रकाश वापस लौट गया. और फिर तय किया कि अगले दिन यानी कि 13 जून को वो बृजबिहारी प्रसाद को मार देगा.

बृजबिहारी प्रसाद की मौके पर ही मौत हो गई थी

तो 13 को श्रीप्रकाश शुक्ला फिर से नीचे उतरा. उसने ग्लूकोज की ड्रिप लगा रखी थी. बोतल और पाइप उसके एक और साथी ने पकड़ी थी. कंबल ओढे़ था जिसके नीचे उसने एके-47 छिपा रखी थी. आधे घंटे के अंदर ही रोज की तरह बृजबिहारी प्रसाद भी लॉन में आए. और उन्हें देखते ही श्रीप्रकाश शुक्ला ने एके 47 की पूरी मैगजीन बृजबिहारी प्रसाद पर खाली कर दी.

जब तक बृजबिहारी प्रसाद के लोग कुछ समझते श्रीप्रकाश के दो और साथियों अनुज और सुधीर ने पिस्टल से फायर करना शुरु कर दिया और बड़े आराम से अस्पताल की रेलिंग फांदकर बाहर निकल गए. वहां पहले से एक गाड़ी खड़ी थी, तीनों उसमें बैठे और फरार हो गए. बृजबिहारी प्रसाद की मौके पर ही मौत हो गई थी.

इस वारदात को बीते हुए 27 साल से ज्यादा का वक्त बीत चुका है. लेकिन 17 जुलाई को पारस अस्पताल में शेरू गैंग के कहने पर तौफीक और उसके साथियों ने जिस तरह से चंदन मिश्रा की हत्या की, उसने बृजबिहारी प्रसाद की हत्या की याद दिला दी है.

कहने वाले तो ये भी कह रहे हैं कि वो तो श्रीप्रकाश शुक्ला था, जिसके लिए कोई भी हत्या मुश्किल नहीं थी. लेकिन तौफीक और उसके साथियों ने सीसीटीवी होने के बावजूद जितना बेखौफ होकर इस वारदात को अंजाम दिया है, ये बृजबिहारी प्रसाद की हत्या से भी भयावह है.