पटना: तीन मई 2023 को हाईकोर्ट के निर्देश के बाद बिहार में जातीय जनगणना पर रोक लग गई थी. हाईकोर्ट की ओर से सरकार को कहा गया था कि अब तक जो भी डेटा कलेक्ट किए गए हैं उसे सुरक्षित रखें. कोर्ट की ओर से सुनवाई के लिए तीन जुलाई की तारीख दी गई थी. आज अब फिर से सरकार की ओर से इस पर दलीलें पेश की जाएंगी. 

हाईकोर्ट की ओर से लगी रोक के बाद बिहार सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी लेकिन यहां भी सुनवाई नहीं हुई थी. सुप्रीम कोर्ट की ओर से कहा गया था कि अगर पटना हाईकोर्ट में तीन जुलाई को सुनवाई नहीं होती है तो फिर इस पर आगे सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी. बता दें कि बिहार सरकार की याचिका में अपील की गई थी कि तीन जुलाई से पहले सुनवाई की जाए. 

बिहार सरकार पर संविधान के उल्लंघन का आरोप

याचिकाकर्ताओं द्वारा याचिका में कहा गया है कि बिहार सरकार के पास जातियों को गिनने का अधिकार नहीं है. ऐसा करके सरकार संविधान का उल्लंघन कर रही है. जातीय गणना में लोगों की जाति के साथ-साथ उनके कामकाज और उनकी योग्यता का भी ब्यौरा लिया जा रहा है. ये उसकी गोपनियता के अधिकार का हनन है. जातीय गणना पर खर्च हो रहे 500 करोड़ रुपये भी टैक्स के पैसों की बर्बादी है.

कब-कब क्या हुआ प्वाइंट में समझें

  • बिहार में सात जनवरी से जातीय जनगणना शुरू हुई.
  • 15 अप्रैल से इसके दूसरे फेज की शुरुआत हुई थी.
  • 21 अप्रैल को मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया.
  • 27 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हाईकोर्ट जाएं.
  • हाईकोर्ट ने दो और तीन मई 2023 को सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था.
  • चार मई को पटना हाईकोर्ट की ओर से जातीय जनगणना पर रोक लगा दी गई.
  • हाईकोर्ट की ओर से सुनवाई के लिए 3 जुलाई की तारीख दी गई.
  • इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार की ओर से तीन जुलाई से पहले सुनवाई के लिए याचिका दायर की गई जिसे कोर्ट ने स्वीकार नहीं किया.

बता दें कि जातीय जनगणना का लगभग 80 फीसद काम पूरा हो गया है. सात जनवरी से गणना शुरू हुई थी. 15 मई 2023 तक इसे पूरा किया जाना था लेकिन हाईकोर्ट से रोक लग जाने के कारण यह नहीं हो सका है. आज सोमवार की दोपहर बाद सुनवाई होनी है.

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