चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कई नेताओं को चुनावी जीत दिलाई, लेकिन अपने पहले ही चुनावी इम्तिहान में उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा है. बिहार में तीसरे मोर्चे और एक राजनीतिक विकल्प के रूप में प्रचारित उनकी ‘जन सुराज पार्टी’, अंदरूनी इलाकों के चुनावी संग्राम में खाता भी नहीं खोल पाई. हालांकि जन सुराज की हार में ‘जीत’ छिपी है. दरअसल प्रशांत किशोर ने खुद पहली बार चुनाव लड़ा. उनकी रैलियों में भारी भीड़ भी नजर आई. हालांकि नीतीश कुमार जैसे राजनीति के धुरंधरों के सामने वे कमतर पड़ गए और जनता उन पर इतनी विश्वसनियता नहीं दिखा पाई. बावजूद इसके वे कहीं ना कहीं जनता के दिल में छाप जरूर छोड़ गए हैं जो उनके लिए हार के बाद भी जीत के समान है. वहीं कई चुनाव एक्सपर्ट का भी मानना है कि लोग प्रशांत किशोर को मौका जरूर देंगे. 

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नरेश अरोड़ा को उम्मीद प्रशांत को लोग मौका देंगेचुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने भविष्यवाणी की थी उनका जन सुराज या तो "अर्श पर" होगी या "फर्श पर" होगी और उनकी पार्टी के लिए कोई मध्य बिंदु नहीं होगा. फिलहाल बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद जन सुराज फर्श पर आ चुकी है लेकिन आने वाले समय में ये पार्टी अर्श पर पहुंचने का पूरा माद्दा रखती है. कई एक्सपर्ट का भी यही मानना है कि ये हार प्रशांत किशोर के लिए किसी छिपी हुई जीत जैसी है.

बता दें कि चुनाव रणनीतिकार और एमडी डिजाइन बॉक्स के एमडी नरेश अरोड़ा ने कहा है, “उन्होंने बहुत मेहनत की है इस पर किसी को सशंय नहीं रखना चाहिए. हिंदुस्तान का इतिहास है कि लोग राजनीतिक तौर पर बहुत सचेत रहते हैं, हो सकता है पहली बार में मौका देने में हिचक रहे हों लेकिन हो सकता है लोग उन्हें और समय देना चाहते हैं. वो लोगों के बीच में गए, मुद्दो पर बात की लोग उन्हें मौका जरुर देंगे." 

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जन सुराज पार्टी का वोट प्रतिशत कितना रहा? प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने बिहार की 243 सीटों में से 238 पर चुनाव लड़ा. हालांकि उसे एक भी सीट नहीं मिली लेकिन जन सुराज को तकरीबन 15 लाख वोट मिले हैं. जिसका मतलब है कि इस पार्टी का वोट प्रतिशत करीब  3%  है. यह वोट शेयर बताता है कि पार्टी ने बिहार के मतदाताओं के एक बड़े वर्ग पर कुछ तो असर किया है. खास तौर पर  युवा और पहली बार वोट देने वाले वर्ग पर इसका प्रभाव नजर आ रहा है.  कुल मिलाकर, यह न तो विजेता रही, न हारी, न ही खेल बिगाड़ने वाली रही, बल्कि ये एक नॉन-प्लेयर साबित हुई. हालांकि, इसने NOTA (नोटा) से बेहतर प्रदर्शन किया, जिसे 1.8% वोट मिले हैं. 

प्रशांत किशोर के उठाए मुद्दे बनेंगे अब जनता की आवाजवहीं एबीपी के वरिष्ठ संवाददाता मनोज मुकुल का कहना है, "प्रशांत किशोर ने बिहार चुनाव में जो मुद्दे उठाए थे वे जायज थे और अब एनडीए को उन्हें एड्रेस करना पड़ेगा. लोग उन मुद्दों पर अब चर्चा करेंगे क्योंकि प्रशांत किशोर बेशक हार गए लेकिन जनता के मन में उन्होंने कई सवाल जरूर खड़े कर दिए हैं."

जन सुराज को बेशक बिहार विधान सभा चुनाव में इस बार हार का मुंह देखना पड़ा है. लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि लाखों लोग कतारों में खड़े रहे और प्रशांत किशोर की पार्टी को अपने कीमती वोट दिए. बस प्रशांत किशोर के पास ऐसी ही लाखों उम्मीदें हैं. हो सकता है कि वह खुद को इस बार हारा हुआ पाएं, लेकिन ये कहीं ना कहीं राजनीति में उतरे इस नए खिलाड़ी की एक एक शानदार शुरुआत है जो आगे जीत में बदल सकती है.