बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद राष्ट्रीय जनता दल ने विधायक दल के नेता का फैसला कर लिया है.राजद ने यह जिम्मेदारी तेज प्रताप यादव को दी है. यानी बिहार विधानसभा में तेजस्वी, एक बार फिर नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में होंगे. हालांकि वह इस जिम्मेदारी के लिए तैयार नहीं थे. सूत्रों का दावा है कि लालू प्रसाद यादव के निर्देश और विधायकों के मान मनौव्वल के बाद तेजस्वी यह जिम्मेदारी लेने को तैयार हुए.
वर्ष 2020 के चुनाव के बाद जब तेजस्वी नेता प्रतिपक्ष बने थे तब उनके पास विधायकों की अच्छी संख्या थी और पार्टी ने चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया था. ऐसे मे नेता प्रतिपक्ष रहते हुए भी उनके लिए विधानसभा और पार्टी दोनों में परिस्थितियां अनुकूल थीं. हालांकि 14 नवंबर को संपन्न हुए चुनाव में 2020 के मुकाबले 50 सीट काम पाकर राजद 25 पर सिमट गई है. ऐसे में तेजस्वी के सामने मुश्किलें कम नहीं होंगी.
आइए आपको बताते हैं कि तेजस्वी के सामने इस बार बतौर नेता प्रतिपक्ष क्या चुनौतियां होंगी-
तेजस्वी के सामने इस बार विधानसभा में विपक्ष का असर बनाए रखना आसान नहीं होगा. इस बार पूरा महागठबंधन 35 सीटों पर सिमट गया है. वहीं भारतीय जनता पार्टी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन 200 से अधिक सीटों के साथ विधानसभा पहुंचा है. ऐसे में तेजस्वी के सामने एक ओर जहां राजद के विधायकों को एकजुट रखना चुनौती होगी वहीं सदन में विपक्ष को साथ लाना भी उनके लिए आसान नहीं होगा.
राजद नेता को न सिर्फ विधानसभा में पार्टी को एकजुट रखना होगा बल्कि पार्टी के बाहर परिवार को भी साथ लाना होगा. चुनाव से पहले तेज प्रताप के निष्कासन और परिणाम बाद रोहिणी समेत अन्य बहनों के घर छोड़कर जाने के फैसले के बाद परिवार को भी एकजुट रखने का जिम्मा लगभग उन्हीं पर होगा.
तेजस्वी के जिन करीबी लोगों पर उनके परिवार और पार्टी के लोग गंभीर आरोप लगा रहे हैं उन पर या तो एक्शन लेना होगा या आसपास के लोगों को मनाना होगा. साथ ही कोई बीच का रास्ता निकालना होगा ताकि न उनके करीबी उनसे दूर जाएं और न ही पार्टी - परिवार के बीच दूरियां बढ़ें. साथ ही उन्हें अपने करीबियों पर पार्टी और परिवार के फैसलों में दखल देने की सीमाएं भी तय करनी होंगी.
क्या नीतीश कुमार ही होंगे बिहार के अलगे CM? विजय सिन्हा के बयान से सियासी हलचल तेज
मौजूदा चुनाव तक राजद और उसके नेताओं को खुद के बारे में यह तय अवधारणा थी कि वह एमवाई यानी मुस्लिम और यादव वोटों के सहारे चुनाव में अच्छी पकड़ बनाए रखेंगे. हालांकि AIMIM के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए ऐसा प्रतीत हो रहा है कि राजद का यह किला इस चुनाव में ज्यादा दरक गया है. ऐसे में उसे भी सहेजना, तेजस्वी की जिम्मेदारी है.
2025 के चुनाव में राजद नेता ने युवाओं और महिलाओं से तमाम वादे किए थे, हालांकि इस चुनाव में इन वादों पर जनता ने भरोसा नहीं किया. ऐसे में उन्हें अभी से आगामी चुनावों के लिए एक स्पष्ट रणनीति बनानी होगी ताकि जनता उन पर एतबार कर सके.