Patna News: बिहार विधानसभा के चुनाव में अब महज 9 महीने बचे हैं तो सभी दलों की ओर से जातीय गोलबंदी की तैयारी में शुरू हो चुकी है. इसी वर्ष की शुरुआत में सबसे पहले बीजेपी के नेता प्रमोद चंद्रवंशी ने अति पिछड़ा वोट बैंक साधने के लिए पटना में चंद्रवंशी एकता रैली की. तो 9 फरवरी को पटना में आरजेडी विधायक रणविजय साहू की अगवाई में तेली साहू हुंकार रैली की गई. अब पटना के मिलर स्कूल मैदान में आगामी 19 फरवरी को कुर्मी एकता रैली की जाएगी.
31 साल पहले नीतीश ने की थी कुर्मी चेतना रैली
कुर्मी एकता रैली के मुख्य आयोजक बीजेपी के अमनौर विधायक कृष्ण कुमार मंटू पटेल है, लेकिन बिहार की सियासत में यह रैली काफी चौंकाने वाला रैली है. क्योंकि जिस जाति की रैली हो रही है उस जाति से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आते हैं जो पिछले 20 वर्षों से लगातार बिहार के मुख्यमंत्री बने हुए हैं और बिहार के राजनीतिक इतिहास को दोहराया जाए तो 31 वर्ष पूर्व 12 फरवरी 1994 को पटना के गांधी मैदान में कुर्मी चेतना रैली की गई थी. इसके मुख्य अगुवा थे वर्तमान के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार.
उस समय नीतीश कुमार लालू प्रसाद यादव के साथ थे और लालू प्रसाद मुख्यमंत्री थे. इस रैली में उन्होंने लालू के साथ रहते हुए भी ललकारा था और उसका प्रतिफल नीतीश कुमार को मिला था. 1994 में ही नीतीश कुमार नवंबर महीने में लालू से अलग हुए थे और 1995 में वह समता पार्टी के बैनर तले चुनाव लड़े थे और पहली बार अकेले चुनाव मैदान में आते हुए भी सात सीट जीते थे. महज उसके 10 सालों की मेहनत के बाद वह 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री बन गए.
अब सवाल उठने लगा है कि एनडीए नेताओं की ओर से इस रैली के आयोजन करने की क्या जरूरत पड़ गई, जब बिहार के मुखिया ही इस जाति के हैं. इस पर विधायक कृष्ण कुमार मंटू पटेल ने कहा कि हम अपने समाज को एकता में बांधने के लिए यह रैली कर रहे हैं. मंटू पटेल ने कहा कि इस रैली में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को आमंत्रित किया गया है, लेकिन वह प्रगति यात्रा के कारण आने में असमर्थता जाहिर की है, लेकिन उन्होंने कहा है कि हमारी संवेदना है. नीतीश कुमार तो नहीं आएंगे लेकिन जेडीयू बीजेपी और एनडीए के सभी दलों के कुर्मी, कुशवाहा, धानुका,पटेल जातियों के कई नेता उपस्थित जरूर होंगे.
कुर्मी, कुशवाहा को एकजुट करने की तैयारी
उन्होंने कहा कि सभी दलों एवं सामाजिक संगठन एवं प्रबुद्ध व्यक्तियों को आमंत्रित किया गया है. यह रैली कोई राजनीतिक रैली के बैनर तले रैली नहीं है. यह एक समाज की रैली है. जब उससे पूछा गया कि आपके समाज में बिखराव का डर सताने लगा है तो उन्होंने कहा कि इस रैली में राजनीति बातें नहीं होने वाली है. हम लोग सिर्फ अपने समाज को एकजुट करेंगे.
इस रैली के आयोजन के लिए रविवार को मंटू पटेल ने एक संवाददाता सम्मेलन किया था, जिसमें जेडीयू के पूर्व एमएससी रहे और कुर्मी जाति से आने वाले वाल्मीकि सिंह सहित जेडीयू और बीजेपी के कई कर्मी, धानुक, कुशवाहा समाज के नेता थे. मंटू पटेल ने तो खुलकर नहीं बताया लेकिन यह साफ है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में कहीं ना कहीं नीतिश कुमार को वोट बैंक में बिखराव की भनक जरूर लगी है. लालू प्रसाद यादव नीतीश कुमार के वोट बैंक में सेंधमारी करने में कामयाब हुए है. यही वजह है कि शाहाबाद कहे जाने वाले दक्षिण बिहार के अधिकांश लोकसभा सीटों पर एनडीए को हार का सामना करना पड़ा.
औरंगाबाद, काराकट जो नीतीश कुमार की खास वोट बैंक वाली सीट मानी जाती थी, उन जगहों से भी एनडीए को हार मिली. तो अब नीतीश कुमार पर्दे के पीछे रहकर इस रैली के माध्यम से अपने समाज को एकजुट करने की मुहिम में जुटे हैं. इस रैली में किसी पार्टी का नाम तो नहीं दिया गया है लेकिन साफ है कि पर्दे के पीछे रहकर एनडीए अब 31 साल पहले वाली एकजुटता फिर से लाने में जुट गई है. अगर पहले की तरह एक बार फिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का वोट बैंक बरकरार हो गई तो 2010 की बिहार विधानसभा चुनाव के का रिजल्ट की तरह 2025 का रिजल्ट होने में कोई बड़ी बात भी नहीं होगी.
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