Patna News: बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर अभी से ही राजनीतिक सरगर्मियां तेज हैं. एनडीए और विपक्षी महागठबंधन के साथ-साथ चुनावी रणनीतिकार से राजनेता बने जन सुराज पार्टी के संयोजक प्रशांत किशोर भी पूरी तरह चुनावी मोड में हैं. हाल ही में उन्होंने पटना के गांधी मैदान में जनसुराज की एक रैली का आयोजन किया था, जिसे बदलाव रैली नाम दिया गया. हालंकि ये रैली बहुत सफल नहीं रही. अब पीके से जुड़ी नई खबर ये है कि नीतीश कुमार के पुराने साथी रहे और बिहार के पूर्व शिक्षा मंत्री वृषिण पटेल भी उनके साथ आ गए हैं.

जन सुराज पार्टी में गए वृषिण पटेल 

नीतीश कुमार की पार्टी को छोड़कर मांझी की हम पार्टी और उसके बाद आरजेडी ज्वाइन करने वाले वृषिण पटेल अब जन सुराज से जुड़ गए हैं. पिछले लोकसभा चुनाव से पहले ही उन्होंने आरजेडी से इस्तीफा दिया था. अब उनको पीके के साथ देखा गया है. सूत्रों के अनुसार वो जन सुराज पार्टी में शामिल हो गए हैं. प्रशांत किशोर के साथ वृषिण पटेल की फोटो सोशल मीडिया पर सामने आई है. 

पटेल स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार से आते हैं और एक समय उन्हें सीएम नीतीश कुमार के बाद राज्य में दूसरे सबसे ताकतवर कुर्मी नेता माना जाता था. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेहद करीबी थे. वे वैशाली विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. वे एक बार सीवान से सांसद भी चुने गए थे. 

2005 में वृषिण पटेल नीतीश कुमार के राज्य मंत्रिमंडल में शामिल हुए. 2015 की शुरुआत में उन्होंने नीतीश कुमार का साथ छोड़ दिया और जीतनराम मांझी के साथ आ गए. 2020 विधानसभा चुनाव हुए तो जीतन राम मांझी और नीतीश कुमार के बीच गठबंधन हो गया और एक बार फिर वृषिण पटेल हम छोड़ कर लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल में शामिल हो गए. करीब 5 साल तक आरजेडी में रहे और अब पीके की पार्टी में शामिल हो गए हैं.

बिहार की जनता के लिए नया विकल्प

अब सवाल ये है कि क्या नीतीश कुमार के घोर विरोधी बन चुके प्रशांत किशोर जेडीयू के पुराने नेताओं को भी अपने साथ लाने की कोशिश में लगे हैं. वैसे तो पीके हर सभा में ये कहते नजर आते हैं कि वो बिहार की जनता को नया विकल्प देना चाहते हैं. वो बिहार की जनता के भविष्य और नौजवानों का विकास चाहते हैं. पलायन रोकने और नौकरी देने की बात करते हैं, जिस मुद्दे पर नीतीश सरकार सबसे ज्यादा जवाबदेह है. इन सब के बावजूद जनता का वो समर्थन आज भी उन्हें नहीं दिखता, जिसकी उम्मीद पीके कर रहे थे. उपचुनाव से लेकर पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में भी वो टिक नहीं पाए, लेकिन उम्मीद उनकी अभी भी खत्म नहीं हुई है, क्योंकि मेन टारगेट तो बिहार विधानसभा चुनाव है. 

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