बिहार की राजधानी पटना स्थित कुम्हरार विधानसभा क्षेत्र ऐसी सीट है जो चुनावी मैदान नहीं, बल्कि उस गौरवशाली मगध साम्राज्य की आत्मा है, जहां से भारत का सबसे बड़ा साम्राज्य शुरू हुआ था. पहले इस विधानसभा सीट को 'पटना सेंट्रल' के नाम से जाना जाता था, जिसकी स्थापना 1977 में हुई थी. बीजेपी ने अरुण कुमार सिन्हा की जगह इस बार (2025) संजय गुप्ता को उम्मीदवार बनाया है. वहीं कांग्रेस ने इस सीट से इंद्रदीप कुमार चंद्रवंशी को उम्मीदवार बनाया है. 

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कुम्हरार विधानसभा सीट के बारे में जानिए

2008 के परिसीमन के बाद इसका नाम बदलकर कुम्हरार कर दिया गया. यह पटना नगर निगम के आठ वार्ड और पटना ग्रामीण ब्लॉक के एक क्षेत्र को मिलाकर बना है और यह पूरी तरह शहरी क्षेत्र में आता है. पटना सेंट्रल (अब कुम्हरार) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए एक ऐसी शक्ति है, जिसे जीतना विपक्ष के लिए लगभग असंभव रहा है. यहां बीजेपी ने पहली बार 1980 में जीत दर्ज की और केवल 1985 के चुनाव को छोड़कर, जब कांग्रेस से हार का सामना किया, तब से यह सीट लगातार बीजेपी के पास है.

इस किले को बीजेपी के कद्दावर नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने सबसे पहले मजबूती दी. उन्होंने 1990 से 2000 तक, यानी लगातार तीन बार, पटना सेंट्रल से जीत हासिल की. उनके बाद, अरुण कुमार सिन्हा ने इस सीट पर अपनी पकड़ मजबूत की और लगातार पांच बार विधायक चुने गए हैं.

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पिछले 35 वर्षों से यह सीट बीजेपी के लिए एकतरफा मुकाबला बनी हुई है. 2020 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी के अरुण कुमार सिन्हा ने राष्‍ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के धर्मेंद्र कुमार को बड़े अंतर से मात दी थी. अरुण कुमार सिन्हा को 81,400 वोट मिले, जबकि धर्मेंद्र कुमार को 54,937 वोट हासिल हुए.

बीजेपी की जीत का अंतर भी उल्लेखनीय रहा है. 2010 में 67,808 वोटों से, 2015 में 37,275 और 2020 में 26,463 मतों से जीत मिली थी. इसी तरह लोकसभा चुनावों में भी बीजेपी ने कुम्हरार में 2014 में 64,033, 2019 में 62,959 और 2024 में 47,149 मतों की बढ़त हासिल की है. यह सीट पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है.

कायस्थ वोट जीत में निर्णायक साबित

दशकों से, कायस्थ वोट बैंक ही भाजपा की जीत में निर्णायक साबित हुआ है. कायस्थों के अलावा, यहां भूमिहार और अति पिछड़ा वर्ग के वोट भी काफी ज्यादा संख्या में हैं. जातियों की बात करें तो यादव, राजपूत, कोयरी, कुर्मी, ब्राह्मण और मुस्लिम वोटर भी इस विधानसभा सीट में अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हैं. 2020 के आंकड़ों के अनुसार, अनुसूचित जाति के मतदाता 7.21 प्रतिशत और मुस्लिम मतदाता 11.6 प्रतिशत थे. अब तक विपक्ष इस सीट पर जगह बनाने में नाकाम रहा है. 

यह वह पवित्र भूमि है, जहां कभी शक्तिशाली पाटलिपुत्र नगरी बसी थी, जिसने सदियों तक पूरे उपमहाद्वीप पर शासन किया. राजा बिंबिसार के पुत्र अजातशत्रु ने जब राजधानी को राजगीर से यहां स्थानांतरित किया, तब से लेकर चाणक्य के मार्गदर्शन में चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा मौर्य साम्राज्य की नींव रखने तक, पाटलिपुत्र सत्ता का केंद्र रहा. बाद में, सम्राट अशोक की राजधानी भी यही बनी, जिनका साम्राज्य अफगानिस्तान से लेकर बांग्लादेश तक फैला था.