इस बार बिहार चुनाव ने नया इतिहास लिख दिया है. जी हां, बिहार की राजनीति का जो इतिहास रहा है उसमें ऐसा पहली बार हुआ है कि कहीं भी मतदान के दौरान या चुनावी रैलियों के दौरान कोई हिंसा नहीं हुई वहीं रिकॉर्ड 67.13 प्रतिशत मतदान किया गया. इसके अलावा बिहार में किसी भी बूथ पर दोबारा मतदान की जरूरत ही नहीं पड़ी और मतदान के दौरान  हिंसक घटनाओं या मौत का आंकड़ा भी शून्य रहा.

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बिहार चुनाव में इस बार लिखा गया नया अध्याय

बिहार विधानसभा चुनाव के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि मतदान के दिन किसी की भी मौत नहीं हुई और किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में पुनर्मतदान की जरूरत नहीं पड़ी. आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले विधानसभा चुनावों में राज्य में हिंसा हुई थी तो वहीं कुछ मौतें भी हुईं और कई निर्वाचन क्षेत्रों में फिर से चुनाव भी कराने पड़े थे.

काला रहा है पिछला इतिहास!

आंकड़ों के अनुसार, 1985 के चुनावों में 63 मौतें हुई थीं और 156 मतदान केंद्रों पर पुनर्मतदान का आदेश दिया गया था. वहीं साल 1990 के चुनावों के दौरान, चुनाव संबंधी हिंसा में 87 लोग मारे गए थे. साल 1995 में, तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त टी एन शेषन ने अप्रत्याशित हिंसा और चुनावी कदाचार के कारण बिहार चुनावों को चार बार स्थगित करने का आदेश दिया था.

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2005 में भी हुई थी हिंसक घटनाएं, 660 केंद्रों पर हुआ था पुनर्मतदान

आपको ये भी बता दें कि आंकड़ों के अनुसार, 2005 में हिंसा और कदाचार के कारण 660 मतदान केंद्रों पर पुनर्मतदान हुआ था. बिहार में इस साल दो चरणों में विधानसभा चुनाव हुए और इसके लिए मतगणना जारी है. फिलहाल एनडीए गठबंधन 202 और महागठबंधन 35 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है. अगर आंकड़ा यही रहा तो बिहार में एक बार फिर एनडीए सरकार बनने का रास्ता साफ है. एक और चर्चा इस बात की भी है कि बिहार में इस बार जदयू या आरजेडी नहीं बल्कि बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है.

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